सोमवार, 25 दिसंबर 2017

दिखावे की रश्में- मंगला सिंह युवराजपुर गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

दिखावे की रश्में- 25-03-1999

ये जहरीली कैसी हवा चल रही है
घुटन में हर एक जिंदगी पल रही है

बारूदों की ढेर पर आज हम खड़े है
कहा थे चले हम कहा चल पड़े है
लिपटी कफन में ये जिंदी सी लाशें
जिधर देखिये बस चिता जल रही है

ममता का मंदिर सुहागन का आँगन
शहीदों की धरती बनी को अभागन
पावन धरा से विखेरें अमन को
वो रघुकुल की रीति कहा चल रही है

न सोये न जागे न लेते हुए हम
न यादो को उनके समेटे हुये हम
लगाने चले चिताओ के मेले
देखावे के रश्में हमे छल रही है

ओहदे की लालच वजुदों से नफरत
है सोने की लंका में रावण की सोहरत
आओ जरा फिर से सोचे विचारे
ये अपनी ही करनी हमे खल रही है

रचनाकार - मंगला सिंह
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर
+91 9452756159




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