रविवार, 20 अक्तूबर 2024

सूर्य वंदना :रचना डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश

सूर्य वंदना :

उदित हो मार्तंड
अंधेरा हो खंड-खंड
जागरण का धुन बजे
काली रात की भीत पर
प्रकाश का मंच सजे
टूटे निद्रा का घमंड
उदित हो मार्तंड

कलियों पर फूलों पर
हरित पर्ण शूलों पर
उड़ चले बगूलों पर
उगो-उगो भास्कर
नाव के मस्तूलों पर
नदियों के उसूलों पर
दातून नीम बबूलों पर

जागो हे दिनमान
भोर का फैले वितान
तितलियों की आहट से
मधुबन में फिर हो हलचल
मधुपों की गुनगुनाहट से
पौधों से मिले किसान
जागो हे दिनमान

डाॅ एम डी सिंह



बुधवार, 16 अक्तूबर 2024

शब्दविलीन हो जाएं चलिए डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश

शब्दविलीन हो जाएं चलिए

प्रेम-मोहब्बत की बातों में
नटखट सी दिखती रातों में
चलिए कुछ हलचल करते हैं
सुप्त हुए रिश्ते- नातों में

जूलियट किसलिए रूठी है
लैला भी क्यों कर झूठी है
रांझा भी नाराज चल रही
मैना की नजर अनूठी है

फिर से हुआ रोमियो जाए
मजनू फिर घर वापस आए
उड़े नींद हीरे की फिर से
तोता ,मैना पर भरमाए

वैलेंटाइन को दिल देकर
वैलेंटाइन का दिल लेकर
शब्दविलीन हो जाएं चलिए
मनसरोवर में भीग भेकर

डॉ एम डी सिंह



रविवार, 13 अक्तूबर 2024

अवध में राम जनमलें चइता डॉक्टर एम डी सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश

चइता

बजत बा बधाई दशरथ के भवनवा हो रामा
अवध में राम जनमलें

पाके पूत दशरथ मन फफाइल
कउशिल्या क अघाइल कोंखवा हो रामा
अवध में राम जनमलें

परजा खुश चउआ चुरुंग छरकलैं
सूरुज चमकलैं भलही॔ टहकोरवा हो रामा
अवध में राम जनमलें

सबही नाचत सबही गावत बा
कैकेई झुलावत हईं पलनवा हो रामा
अवध में राम जनमलें

देवता फुल बरसावटत बाड़ैं 
विष्णु अइलैं जगत बन ललनवा हो रामा
अवध में राम जनमलें 

डाॅ एम डी सिंह



ग़ज़ल डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

ग़ज़ल 

रातें देखी हैं सहर भी देखेंगे
तेरी बातों का असर भी देखेंगे

आए हैं हम देखने पर उतर जो 
नजारे ही नहीं नजर भी देखेंगे

हर गली-नुक्कड़ हर मोड़ पर तेरा 
गुरूर ही नहीं सबर भी देखेंगे

दरो-दीवार चाहे सलाखें दिखा 
ख़िदमत बस नहीं कहर भी देखेंगे

अबे सुन यार ग़ज़लगो आज तेरा
दीवान भी हम बहर भी देखेंगे

सहर-सुबह, सबर- संतोष, 
ख़िदमत- आव-भगत
दरो दीवार- घर द्वार, 
सलाखें -जेल ,कहर- आतंक
ग़ज़लगो- ग़ज़ल गाने वाले
दीवान- गजल संग्रह
बहर- शेर की एक-एक लाइन का तरीका

डाॅ एम डी सिंह



फगुनहटा रचना डॉक्टर एम डी सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश

फगुनहटा

दिनवा हउवै अबले बदराइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल

सियार सिवाने लउके लगलैं
खरहा खर में छउंके लगलैं
पिल्ली छहगो पिल्ला दिहलसि
मनई रहि-रहि ठउंके लगलैं

सरसों पक्कल न रहिला लदराइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल

ऊंखि छोड़ि दिहले सिवान बा
गदरा धइ लिहले दुकान बा
बेतुक क दई पाथर पड़लैं
मूड़ थाम बइठल किसान बा

गोंहू लरकल जउवो सुरकाइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल

हइदेखा ना अजब तमाशा
लसराइल बा अबो कुहासा
अजुए जरावल जाई सम्मत
बुन्नी फोड़ति बाय बताशा

लवना- पल्लो कुल्ही मेहराइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल


फगुनहटा- फागुन में चलने वाली हवा
बदराइल- बादलों से भरा हुआ
हेराइल- खोया हुआ, सिवान- गांव की सरहद
खरहा- खरगोश,खर- घास,छंउके लगलैं- कूदने लगे
पिल्ली- कुतिया,ठंउकना- ठिठकना
रहिला- चना,लदराना- पेट का भरपूर हो जाना
गदरा -हरी मटर, दई- इंद्र देवता,मूड़-सर
लरकना - लोट जाना, सुरकाइल- जिसके दानों को बिना डंठल तोड़े मुट्ठी से खींच लिया गया हो
लसराइल- गोंद की तरह चिपक जाना
सम्मत- होलिका, बुन्नी- बारिश की बूंदे
लवना-पल्लो- जलावन की लकड़ी और पत्तियां
मेहराइल- नम हो जाना

डॉ एम डी सिंह


जिंदगी रचना डॉक्टर एम डी सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश

जिंदगी

होती नहीं यार कभी फेल जिंदगी
है हार जीत की नियत खेल जिंदगी

चढ़ते-उतरते भीड़ हम मंजिलों के
दौड़ रही पटरियों पर रेल जिंदगी

छोड़ना न चाहे कोई स्वप्न में भी
ऐसी है खूबसूरत जेल जिंदगी

अंधडों से लड़ कर भी बुझ नहीं रहे
भर रही है दीप-दीप तेल जिंदगी

रच रही मृत्यु नई रोज साजिशें
है मगर फिर भी हेला हेल जिंदगी

डॉ एम डी सिंह



तो अच्छा पुरुष का पुरुष होना स्त्री का स्त्री डॉ एम डी सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश

तो अच्छा

पुरुष का पुरुष होना
स्त्री का स्त्री
दिखना भी वैसे ही
जीना भी उसी तरह
स्तृत्व और पौरुष दोनों के लिए
जैव संरचनात्मक परिपूर्णता की
आधारभूत परिकल्पनाएं
निष्क्लेष बनी रहें निरंतर तो अच्छा

स्त्रियां पुरुष सा होना क्यों चाहतीं
पुरुष स्त्री सा दिखने को लालायित क्यों
जननी होना अथवा जनक
जीवन के आधारभूत प्रतिष्ठान
कम ज्यादा किसका सम्मान
प्रकृति प्राकृतिक रहे तो अच्छा

स्वभाव समभाव से उलझ रहा क्यों
स्वभाव सदैव गुरुतर है
समभाव ईर्ष्यापूरित
सम होने की लालसा कैसी
स्व जैसा भी हो
दिग दिगंत में रहे प्रज्वलित
गर्व अपने होने का रहे तो अच्छा

उद्विग्न तुम क्यों सखी
उत्तप्त तुम क्यों सखे
जग तुम, तुम सा
सरल सहज
अनवरत रहे तो अच्छा

डॉ एम डी सिंह


देख रही जनता चुपचाप : डॉ एम डी सिंह

देख रही जनता चुपचाप :

विचारो की तलवार खींच कर
विकारों की सलवार फींच कर

डटे हुए मझधार में अब तक
नौका और पतवार भींच कर

दलों के सिपहसालार अनहद
दिखा रहे शब्द हुंकार मीच कर

सब देख रही जनता चुपचाप
उगाते खरपतवार सींच कर

वह रस्सी ढूंढ रहे हैं नेता
ला सके जो सरकार घींच कर
डाॅ एम डी सिंह



अपने मन से लड़े कभी क्या - डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

अपने मन से लड़े कभी क्या ?

अपनी कही बात पर अड़ना बहुत सरल है
अपनी गढ़ी सड़क पर चलना बहुत सरल है
अपनी मनमानी पर लड़ना बहुत सरल है
अपने मन से लड़े कभी क्या ?

जिन्दों के घर जिंदे कितने गिना कभी क्या
हंसतों के घर हंसी कितनी सुना कभी क्या
अपनों में है अपना कौन चुना कभी क्या
खुद पचड़े में पड़े कभी क्या ?

हम दास मलूका के अजगर क्यों लगते हैं
हम मुरदा राहों के रहबर क्यों लगते हैं
हम डाउन संबंधों के सरवर क्यों लगते हैं
इस उलझन में गड़े कभी क्या ?

बात पते की बतला जाना बहुत सरल है
बात-बात पर कसमें खाना बहुत सरल है
सपनों को सपने दिखलाना बहुत सरल है
आप फ्रेम में जड़े कभी क्या ?
डाॅ एम डी सिंह


छोड़ मोबाइल खेलों खेल - डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

खेलो खेल :

चोर पुलिस और जेलर जेल
छोड़ मोबाइल खेलो खेल

राजू राघव रघ्घू रहमान
सोनी सिद्धू पिंकी सलमान
यह पहले बनेंगे चोर सभी
सिपाही बने आज मुस्कान

टीचर जेलर पढ़ाई जेल
छोड़ मोबाइल खेलो खेल

फिर चोर सभी छुप जाएंगे
कहीं दिखे पकड़े जाएंगे
जब पुलिस पकड़ कर लाएगी
सब कविता एक सुनाएंगे

न सुना सके तो होंगे फेल
छोड़ मोबाइल खेलो खेल

डाॅ एम डी सिंह



जीने के लिए तो एक खतरा काफी है- डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश

सूर्ख जर्द कमजोर न एक तगड़ा काफी है
हलाल होने को तो एक बकरा काफी है

हुस्न की फिराक में है तो बचके रह यार
दिल चाक करने में एक नखरा काफी है

दुश्मनी की दीवार गिरानी तुझे तो लड़
दोस्ती के लिए तो एक झगड़ा काफी है

सुन बे शराबी तुझे पता नहीं हो शायद
मदहोशी के लिए एक कतरा काफी है

मार डालेगी तुझे ये खुशियों की चाहत
जीने के लिए तो एक खतरा काफी है

सूर्ख - लाल
जर्द - पीला
चाक करना- टुकड़े-टुकड़े करना
डाॅ एम डी सिंह



राम जीवात्मा है- डाॅ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

राम !

मन-दशानन रावण है
मनपुरी-मस्तिष्क-लंका का शासक
राम जीवात्मा है
देंह-देश-अयोध्या का राजा

सीता जिसकी चेतना है
इंद्रियों की स्वामिनी
उठा ले गया जिसे हर कर मन-रावण
कर उत्कट धनुर्धर जीवात्मा राम को विह्वल

कदम-कदम चल रहा साथ
लक्ष्यक-लक्ष्मण है तंत्रिका तंत्र का स्वामी
भरण-पोषण का भार भरत पर छोड़
सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रतिरक्षक
सेनापति शत्रुघ्न को सौंप
भटक रहे दोनों वन-कोशिकाओं में

उर धरे रम्यक राम को प्रस्तुत
हनुमान ब्रह्म है
मन नगरी लंका तक ले जाने को उत्सुक

घेरे जिसकी सीमाओं को
इच्छाओं का अथाह सागर
उठ रहीं जिसमें विकराल
आशंकाओं-चिंताओं की लहरें

कर समित सागर को
स्थापित कर परमब्रह्म शिव स्वयंभू 'मैं' को
आह्वाहित कर अंतरशक्ति दुर्गा को
कर प्रचंड प्रहार रावण पर
विजयी हो बनेगा
चक्रवर्ती सम्राट
राम !

(कल विजयदशमी के दिन अपने मित्र विंध्याचल पर्वत के पास चला गया। सुबह से शाम तक उसके साथ राम चर्चा और उसके-अपने हाल-चाल में इस तरह व्यस्त हुआ कि किसी को विजयदशमी की बधाई न दे सका। क्षमा करें,)
डाॅ एम डी सिंह



शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भारत माता के प्रति भावना क्या है 🚩

RSS की प्रार्थना का हिन्दी में अनुवाद ... पढ़ो और सोचिये  कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भारत माता के प्रति भावना क्या है 🚩

1. नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोsहम्। 🚩
हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है। 🚩

2. महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।। १।। 🚩
हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ। 🚩

3. प्रभो शक्ति मन्हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता, इमे सादरं त्वाम नमामो वयम् त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं, शुभामाशिषम देहि तत्पूर्तये। 🚩
हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! हम हिन्दूराष्ट्र के सुपुत्र तुझे आदर सहित प्रणाम करते है। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे। 🚩

4. अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम, सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्, श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं, स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।। २।। 🚩
हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये। ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये। 🚩

5. समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं, परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा, हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राsनिशम्। 🚩
उग्र वीरव्रती की भावना हम में उत्स्फूर्त होती रहे, जो उच्चतम आध्यात्मिक सुख एवं महानतम ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने का एकमेव श्रेष्ठतम साधन है। तीव्र एवं अखंड ध्येयनिष्ठा हमारे अंतःकरणों में सदैव जागती रहे। 🚩

6. विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्, विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्। परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।। ३।। ।। भारत माता की जय।। 🚩
हे माँ  तेरी कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो। भारत माता की जय।.. 🚩

अब आप ही विचार करे कि RSS की विचारधारा कैसी है... 🚩🚩
नफरत और घृणा का चश्मा उतार कर संघ को देखने की कोशिश करें। साथ ही संघ को समझना है तो संघ की शाखाओं में आकर समझें।
संघ ने कभी यह दावा नहीं किया वो हिंदू समाज का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि यह समझता है कि संघ समाज का हिस्सा है और राष्ट्रीय मुद्दों के लिए समाज ही प्रतिनिधित्व करता है। । संघ व्यक्ति निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। समाज को दोष देना निष्क्रिय लोगों का काम है संघ चाहता है व्यक्ति निर्माण के रास्ते में समाज शक्तिशाली, संगठित एवं राष्ट्र के लिए काम करने वाला हो। जो संघ को साधारणतया नहीं समझता है वह भी जातिवाद का लांछन तो कभी नहीं लगाता क्योंकि वह जानता है किस संघ में जातिवाद कोई स्थान नहीं है। व्हाट्सएप पर पोस्ट करने वाले को एक साधारण आदमी जितना ज्ञान होना तो आवश्यक है।



शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

शिवशंकर -माधव कृष्ण ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

शिवशंकर

-माधव कृष्ण

लेकर सबका दुःख सीने में विष घोर हलाहल पीने में
क्या खूब मजा है, देखो तो! शिवशंकर बनकर जीने में

सब कुछ है मन आसक्त नहीं
सब स्वीकृत कुछ बेवक्त नहीं
ऋषि मूर्ख पुरातन अधुनातन
सुर असुर शक्त या शक्त नहीं.
यह एकमेव सत्ता विभक्त
कुछ स्वामिभक्त कुछ अंधभक्त
कुछ अनुरक्तों की श्रेणी में
कुछ खोये हैं बनकर विरक्त.
मैं सबमें हूँ सब मुझमें हैं मैं सबसे हूँ सब मुझसे हैं
हम एकरूप हैं, भेद कहाँ अंगूठी और नगीने में...

सावन की हरियाली फुहार
गर्मी की तपती सूर्यधार
मादक शीतलतम शरद चन्द्र
अभिषेक कर रहे लगातार.
है सबसे शून्य अपेक्षा ही
स्वागत है दक्ष-उपेक्षा की
तपपूत भगीरथ! कमी कहाँ?
गंगा सी तरल शुभेच्छा की.
भस्मासुर अर्जुन आते हैं जो किया वही सुख पाते हैं
द्रष्टा ने देखा एक ज्योति बेढंगे और करीने में...

यह जग है पत्थर बरसेंगे
कुत्ते श्रृगाल भी गरजेंगे
पर मेरी अनुपम शांति देख
इस शांति के लिए तरसेंगे.
यह सफ़र अभी रेतीला है
आगे चश्मा है गीला है
दलदल मैदान पहाड़ी या
अन्धेरा है चमकीला है.
चलने का अनुपम सुख देखूँ या व्यथितमना हो सुख बेचूं
जब साफ़ साफ़ सब देख रहा अन्तर्मन के आईने में...

मैं अमरनाथ का एकाकी
निर्जन मसान का दिगवासी
सब जलते हैं सब गड़ते हैं
मैं शून्य पूर्ण नित अविनाशी.
यात्रा अनंत जन्मों की है
सुख दुःख वेदना मरण की है
पर सारभूत शिव बच जाता
मंजिल बस इसी समझ की है.
परदा उठना परदा गिरना अंतिम सच है अभिनय करना
फिर आत्मलीन हो बहा दिया निंदा संसार पसीने में...

-माधव कृष्ण
४ अक्टूबर २०२४, गाजीपुर