शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

शिवशंकर -माधव कृष्ण ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

शिवशंकर

-माधव कृष्ण

लेकर सबका दुःख सीने में विष घोर हलाहल पीने में
क्या खूब मजा है, देखो तो! शिवशंकर बनकर जीने में

सब कुछ है मन आसक्त नहीं
सब स्वीकृत कुछ बेवक्त नहीं
ऋषि मूर्ख पुरातन अधुनातन
सुर असुर शक्त या शक्त नहीं.
यह एकमेव सत्ता विभक्त
कुछ स्वामिभक्त कुछ अंधभक्त
कुछ अनुरक्तों की श्रेणी में
कुछ खोये हैं बनकर विरक्त.
मैं सबमें हूँ सब मुझमें हैं मैं सबसे हूँ सब मुझसे हैं
हम एकरूप हैं, भेद कहाँ अंगूठी और नगीने में...

सावन की हरियाली फुहार
गर्मी की तपती सूर्यधार
मादक शीतलतम शरद चन्द्र
अभिषेक कर रहे लगातार.
है सबसे शून्य अपेक्षा ही
स्वागत है दक्ष-उपेक्षा की
तपपूत भगीरथ! कमी कहाँ?
गंगा सी तरल शुभेच्छा की.
भस्मासुर अर्जुन आते हैं जो किया वही सुख पाते हैं
द्रष्टा ने देखा एक ज्योति बेढंगे और करीने में...

यह जग है पत्थर बरसेंगे
कुत्ते श्रृगाल भी गरजेंगे
पर मेरी अनुपम शांति देख
इस शांति के लिए तरसेंगे.
यह सफ़र अभी रेतीला है
आगे चश्मा है गीला है
दलदल मैदान पहाड़ी या
अन्धेरा है चमकीला है.
चलने का अनुपम सुख देखूँ या व्यथितमना हो सुख बेचूं
जब साफ़ साफ़ सब देख रहा अन्तर्मन के आईने में...

मैं अमरनाथ का एकाकी
निर्जन मसान का दिगवासी
सब जलते हैं सब गड़ते हैं
मैं शून्य पूर्ण नित अविनाशी.
यात्रा अनंत जन्मों की है
सुख दुःख वेदना मरण की है
पर सारभूत शिव बच जाता
मंजिल बस इसी समझ की है.
परदा उठना परदा गिरना अंतिम सच है अभिनय करना
फिर आत्मलीन हो बहा दिया निंदा संसार पसीने में...

-माधव कृष्ण
४ अक्टूबर २०२४, गाजीपुर


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