राम !
मन-दशानन रावण है
मनपुरी-मस्तिष्क-लंका का शासक
राम जीवात्मा है
देंह-देश-अयोध्या का राजा
सीता जिसकी चेतना है
इंद्रियों की स्वामिनी
उठा ले गया जिसे हर कर मन-रावण
कर उत्कट धनुर्धर जीवात्मा राम को विह्वल
कदम-कदम चल रहा साथ
लक्ष्यक-लक्ष्मण है तंत्रिका तंत्र का स्वामी
भरण-पोषण का भार भरत पर छोड़
सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रतिरक्षक
सेनापति शत्रुघ्न को सौंप
भटक रहे दोनों वन-कोशिकाओं में
उर धरे रम्यक राम को प्रस्तुत
हनुमान ब्रह्म है
मन नगरी लंका तक ले जाने को उत्सुक
घेरे जिसकी सीमाओं को
इच्छाओं का अथाह सागर
उठ रहीं जिसमें विकराल
आशंकाओं-चिंताओं की लहरें
कर समित सागर को
स्थापित कर परमब्रह्म शिव स्वयंभू 'मैं' को
आह्वाहित कर अंतरशक्ति दुर्गा को
कर प्रचंड प्रहार रावण पर
विजयी हो बनेगा
चक्रवर्ती सम्राट
राम !
(कल विजयदशमी के दिन अपने मित्र विंध्याचल पर्वत के पास चला गया। सुबह से शाम तक उसके साथ राम चर्चा और उसके-अपने हाल-चाल में इस तरह व्यस्त हुआ कि किसी को विजयदशमी की बधाई न दे सका। क्षमा करें,)
डाॅ एम डी सिंह
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