रविवार, 13 अक्टूबर 2024

फगुनहटा रचना डॉक्टर एम डी सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश

फगुनहटा

दिनवा हउवै अबले बदराइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल

सियार सिवाने लउके लगलैं
खरहा खर में छउंके लगलैं
पिल्ली छहगो पिल्ला दिहलसि
मनई रहि-रहि ठउंके लगलैं

सरसों पक्कल न रहिला लदराइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल

ऊंखि छोड़ि दिहले सिवान बा
गदरा धइ लिहले दुकान बा
बेतुक क दई पाथर पड़लैं
मूड़ थाम बइठल किसान बा

गोंहू लरकल जउवो सुरकाइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल

हइदेखा ना अजब तमाशा
लसराइल बा अबो कुहासा
अजुए जरावल जाई सम्मत
बुन्नी फोड़ति बाय बताशा

लवना- पल्लो कुल्ही मेहराइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल


फगुनहटा- फागुन में चलने वाली हवा
बदराइल- बादलों से भरा हुआ
हेराइल- खोया हुआ, सिवान- गांव की सरहद
खरहा- खरगोश,खर- घास,छंउके लगलैं- कूदने लगे
पिल्ली- कुतिया,ठंउकना- ठिठकना
रहिला- चना,लदराना- पेट का भरपूर हो जाना
गदरा -हरी मटर, दई- इंद्र देवता,मूड़-सर
लरकना - लोट जाना, सुरकाइल- जिसके दानों को बिना डंठल तोड़े मुट्ठी से खींच लिया गया हो
लसराइल- गोंद की तरह चिपक जाना
सम्मत- होलिका, बुन्नी- बारिश की बूंदे
लवना-पल्लो- जलावन की लकड़ी और पत्तियां
मेहराइल- नम हो जाना

डॉ एम डी सिंह


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