जिंदगी
होती नहीं यार कभी फेल जिंदगी
है हार जीत की नियत खेल जिंदगी
चढ़ते-उतरते भीड़ हम मंजिलों के
दौड़ रही पटरियों पर रेल जिंदगी
छोड़ना न चाहे कोई स्वप्न में भी
ऐसी है खूबसूरत जेल जिंदगी
अंधडों से लड़ कर भी बुझ नहीं रहे
भर रही है दीप-दीप तेल जिंदगी
रच रही मृत्यु नई रोज साजिशें
है मगर फिर भी हेला हेल जिंदगी
डॉ एम डी सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें