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अगस्त 2023 ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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मंगलवार, 29 अगस्त 2023

अगर आसमां तक मेरे हाथ जाते तो कदमों में तेरे सितारे बिछाते- गीतकार: रानी मलिक

अगर आसमां तक मेरे हाथ जातेतो कदमों में तेरे सितारे बिछाते-2कही दूर परियों की नगरी में चल करमोहब्बत का एक आशियाना बनातेअगर आसमां तक मेरे हाथ जातेतो हम चाँदनी से ये राहे सजातेकही दूर परियों की नगरी में चल केमोहब्बत का एक आशियाना बनातेअगर आसमां तक मेरे हाथ जातेतो कदमों में तेरे सितारे बिछातेयहाँ पर वहां पर बिखेरेंगे कलियामहकती रहेंगी ये फूलों की गलियांयहाँ पर वहां पर बिखेरेंगे कलियामहकती रहेंगी ये फूलों की गलियांये झिलमिल करे रेशमी से नजारेचलेंगे यहाँ...

अपनी भी ज़िन्दगी में खुशियों का पल आएगा ढूँढेंगे तोह मिल जाएगा लेखक: समीर अंजान

 अपनी भी ज़िन्दगी मेंखुशियों का पल आएगाअपनी भी ज़िन्दगी मेंखुशियों का पल आएगाढूँढेंगे तोह मिल जाएगा -4अपनी भी ज़िन्दगी मेंखुशियों का पल आएगाढूँढेंगे तोह मिल जाएगा-4अच्छे बुरे दिन साथी आते रहेंगेकभी हसते कभी रुलाते रहेंगेकभी हसते कभी रुलाते रहेंगेअच्छे बुरे दिन साथी आते रहेंगेकभी हसते कभी रुलाते रहेंगेबस यही बात याद रखनाबस यही बात याद रखनाअपनी भी ज़िन्दगी मेंखुशियों का पल आएगाढूँढेंगे तोह मिल जाएगा-4प्यार किया है तुझसे प्यार करेंगेतेरे साथ जीना तेरे...

धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है हद से गुज़र जाना है गीतकार: समीर

 धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना हैहद से गुज़र जाना है-4ऐसी जिंदगी होगी हर तरफ खुशी होगीइतना प्यार दूंगा तुझे ऐ मेरे सनमअब ना कोई गम होगा ना ये प्यार कम होगासाथी मेरे मुझको तेरे सर की है कसमएक दूजे को आज़माना हैहद से गुज़र जाना हैधीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना हैहद से गुज़र जाना हैमैं अकेला क्या करताऐसे ही आन्हे भारततेरे प्यार के लिए तड़पता उम्र भरजाने क्या मैं कर जातीयूं तड़प के मारा जातीबिन तेरे भला कैसे कटा ये सफरतेरे लिए मर के भी दिखाना हैहद से गुज़र...

आज पहली बार दिल की बात है गीतकार: समीर

 अब तक मैं चुप रहता हूँतुझसे कुछ नहीं कहता थाकबसे दिल दीवाना थाखुद से भी बेगाना थाहमने कई बार मुलाक़ात की हैआज पहली बार दिल की बात हैआज पहली बार दिल की बात हैआज पहली बार दिल की बात हैआज पहली बार दिल की बात हैअब तक मैं चुप रहती हूंतुझसे कुछ नहीं कहती थीकबसे मैं दीवानी थीखुद से भी बेगानी थीहमने कई बार मुलाक़ात की हैआज पहली बार दिल की बात हैआज पहली बार दिल की बात हैआज पहली बार दिल की बात हैआज पहली बार दिल की बात हैक्यों मिली थी नज़र से नज़रमाई...

आप हैं क्यों लबों रुख़सार में उल्झे उल्झे लोग हैं गर्मी ए बाज़ार में उल्झे उल्झे अहकम ग़ाज़ीपुरी

                                                   आप हैं क्यों लबों रुख़सार में उल्झे उल्झे                                                      लोग हैं गर्मी ए बाज़ार में उल्झे उल्झे उम्र...

नूह की कश्ती तो मूसा का असा पैदा करो अज़्म रखते हो तो खुद ही रास्ता पैदा करो अहकम ग़ाज़ीपुरी

                                                नूह की कश्ती तो मूसा का असा पैदा करो अज़्म रखते हो तो खुद ही रास्ता पैदा करो तुम बदलना चाहते हो रुख़ हवाओं का अगर ख़ालिदो ज़र्रार  जैसा हौसला पैदा करो नफ़रतों की आग से खुद को बचाने के लिए तुम ज़माने में मुहब्बत की फ़िज़ा पैदा करोचमचमाती सुब्हे नौ की फ़िक्र...

कटते हैं किस तरह मेरे दिन रात देख ले ए जाने वाले आ मेरे हालात देख ले- अहकम ग़ाज़ीपुरी

     कटते हैं किस तरह मेरे दिन रात देख लेए जाने वाले आ मेरे हालात देख ले कल तक जो दिल लुभाते थे ऐ जाने जां वही अब दर्दो ग़म में डूबे हैं नग़मात देख ले खेतों में धूल सड़कों पे आवारा तेज़ धूप ऐसा है अब के मौसमे  बरसात देख ले ईसार देख मेरी वफ़ा देख और फिर किस तरह जीतकर भी हुई मात देख ले तेरे बग़ैर काटते हैं किस तरह रोज़ो शब फुर्सत में तू कभी मेरे हालात देख ले जैसे कि अजनबी से मिले कोई अजनबी यूं...

क्या ज़मीं ने कहा ख़ुदा जाने आसमाँ क्यों झुका ख़ुदा जाने- अहकम ग़ाज़ीपुरी

                                                        क्या ज़मीं  ने कहा ख़ुदा जानेआसमाँ क्यों झुका ख़ुदा जानेभीगी आंखें हैं दिल धड़कता है याद क्या आ गया ख़ुदा जानेउसने देखा था इक नज़र मुझ को दिल को क्या हो गया ख़ुदा जानेबस  धुआं उठते मैंने देखा था आशियाँ कब जला ख़ुदा जानेजी रहा हूं मैं...

सोमवार, 28 अगस्त 2023

राम से बड़ा राम का नाम अवध का दुनिया को पैगाम रचना --कुमार शैलेन्द्र

  राम से बड़ा राम का नाम।          अवध का दुनिया को पैगाम ।।         न्याय हो जन-मन सुख का धाम :  शांति प्रियता, जनहित-परिणाम ।।समय- सरयू-जल का आह्वान :खिले हर अधर- अधर मुस्कान।।सूर्य की रश्मि लिखे प्रतिदान :भारती माँ - छवि हिन्दुस्तान।।युगों तक अमर अटल विश्वास :सोन माटी- प्रण नीलाकाश।।नित्य नूतन मानुष- आभास :सभ्यता-संस्कृति का इतिहास।।प्रेम- धन, संयम का संदेश :धवल हिम -आँचल...

हम सुधरेंगे जग सुथरेगा कहते-सुनते आए हैं रचना --कुमार शैलेन्द्र

 हम सुधरेंगेजग सुथरेगा,कहते-सुनते आए हैं ।दिन बहुरेंगे फूल खिलेंगे,आँगन चन्द्रकलाएँ हैं।करने की आपाधापी मेंजीना ही हम भूल गये,भ्रम की अंध सुरगों में हमकाँटे बनकर झूल गये,फूलों की नन्हीं किलकारी,नव दुःस्वप्न व्यथाएँ हैं ।।कब किसको कितना क्या देनारत्ती भर यह भान नहीं,शक्ति स्रोत धरती आँचल काकिञ्चित भी सम्मान नहीं,सदियों से उर में जिसके,स्वर्णिम आभाएँ हैं ।।कोल्हू के बैलों-सा हमसुधियों के सैकत पेर चुके,तेल निकलता नहीं देख हमरक्तिम नयन तरेर चुके,चूके...

सुधि पिता होकर- रचना कुमार शैलेन्द्र

 #सुधि_पिता_होकर...!रचना --कुमार शैलेन्द्र। (मेरे कीर्तिशेष पूजनीय पिताजी रामचन्द्र पाण्डेय और मेरी कुमार शैलेन्द्र दोनों की जन्मतिथि आठ अगस्त ही है। मै बाबूजी से Exactly बीस वर्ष छोटा हूँ। एक गीत रचना के साथ सादर नमन ) प्रलय में गीत-गतिजब गुनगुनाती, अस्मिता होकर।अजित जीवन्त लयसरगम सिखाती, सुधि पिता होकर।। हवा बरगद टहनियों में, सृजन-एहसास लिखती है, हृदय के बन्द छंदो में, खुला आकाश लिखती है,ऋचा अति शुष्क अधरों...

जब जब सपनों ने पूछा क्या इंक़लाब का मानी -रचना कुमार शैलेन्द्र

  जब जब सपनों ने पूछा क्या, इंक़लाब का मानी ।जुमले रट्टू टट्टू उछले,लाल चूनरी, धानी ।।सुनकर कहनेगुनकर करने,आती कुछ गुमनाम हवा।मटकाती कूल्हेआजू- बाजू ,मंथर बदनाम हवा ।पटरानी -आँखों पर,पट्टी ,झरेनहीं ,संवेदन-पानी ।।लय में प्रलयसुरों में संशय,ताल-राग में बंजारा-भय,नुक्कड़ पर हर गली चौक पर,ध्वंस -अंश,खारिज़ अक्षय,शाही मीनारें भड़कातीं, इतिहासों की परधानी ।।क्रूर समय कीअन्तर्ध्वनि में,निर्मित रक्तचाप तन कारा,घन मड़राते अन्तस छूते,मन पारा...

वर्ष गाँठ पर सोनचिरैया क्या क्या बोल सुनाएगी नवगीत कुमार शैलेन्द्र

ढीले हो जाएंगे बंधन, गाँठ मगर कस जायेगी। वर्षगाँठ पर सोनचिरैया, क्या क्या बोल सुनाएगी। जलसे हमने जलकर देखे, जल काजल में बदल गया। जाल सँभाले मछुवारा मन, मत्स्य गंध पर फिसल गया। आगामी संतति पुरखों की -थाती ही खो जायेगी। पुष्पक में बैठे हैं हम सब,इन्द्र लोक में जाना है। अग्नि परीक्षा का भय केवल, कंचन ही निखराना है। ऊँची ऊँची सभी उडानें, नीची ही रह जायेगी।। टूटी बिखरी संज्ञाओं को, आओ क्रियापदों से जोड़ें, संस्कार की सुप्तभूमि मेंबीज विशेषण वाले छोड़ें।...

गीतों की गन्ध कौन हवा उड़ा ले गयी बारूदी फ़सलों से खेत लहलहा गए- -कुमार शैलेन्द्र

 गीतों की गन्धकौन हवा उड़ा ले गयी ;बारूदी फ़सलों से-खेत लहलहा गए।अनजाने बादल,मुँडेरों पर छा गए।..................................मर्यादा लक्ष्मण कीहम सबने तोड़ दी,सोने के हिरनों सेगाँठ नई जोड़ दी,रावण के मायावी,दृश्य हमें भा गए।....................................स्मृति की गलियों में,कड़वाहट आयी है,बर्फ़ीली घाटी कीझील बौखलाई है,विष के संवादों केपरचम लहरा गए।......................................बुलबुल के गाँव, धूपदबे पाँव आती है,बरसों से वर्दी...