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समाजवादी योद्धा स्वतन्त्रता सेनानी पंडित दलश्रृंगार दुबे ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश - लेखक डॉ पी एन सिंह ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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रविवार, 9 जुलाई 2023

समाजवादी योद्धा स्वतन्त्रता सेनानी पंडित दलश्रृंगार दुबे ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश - लेखक डॉ पी एन सिंह

समाजवादी योद्धा दलश्रृंगार दुबे
ग्राम पोस्ट- ब्रम्हणपुरा ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

स्वतंत्रता सेनानी दलश्रृंगार दुबे जी नमक सत्याग्रह में 20 जुलाई 1930 में गिरफ्तार किये गये. पत्नी लाखो देवी और एक साल के पुत्र सत्यकेतु के साथ जेल गये. चार जनवरी 1932 को बापू की गिरफ्तारी के विरोध में हुए आंदोलन के बाद तीसरी बार जेल गये. लखनऊ जेल में फटे कपड़े पहनने से इनकार करने पर चार दिनों की उल्टी हथकड़ी और बेड़ी की सजा मिली. 26 जनवरी 1933 में टाउनहाल में स्वाधीनता प्रस्ताव पढ़ने पर चौथी बार जेल की सजा हुई. जेल आये और हरिजन आंदोलन से जुड़े और सत्याग्रह करने पर पांचवी बार जेल की सजा. जेल से छूटने के बाद 1934 में आये भूकंप में बिहार के दरभंगा में राहत और बचाव कार्य में जुटे. 1935 में गाजीपुर में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के संस्थापक नेता बने. आंदोलन में बस्ती के डुमरियागंज से गिरफ्तार, एक साल की सजा छठवीं बार जेल गये. 1941 में महात्मा गांधी ने जिले का संचालक नियुक्त किया. 26 जनवरी 1941 को फिर गिरफ्तार हुए सातवीं बार जेल गये. जेल से बाहर आने के बाद 1942 में पश्चिमी यूपी का दौरा किया. भारत छोड़ो आंदोलन में नौ अगस्त 1942 में फिर गिरफ्तार हो गये.

21 बेतों की सजा, पिटाई देख सिपाही भी बेहोश

दुबे जी को भारत छोड़ो आंदोलन के लिए 21 बेतों की सजा सुनायी गयी, जो सर्वाधिक थी. हर बेंत की मार पर वंदे मातरम बोलते रहे. वहां पर तैनात एक सिपाही इस यातना को बर्दाश्त नहीं कर सका और बेहोश हो गया. दुबेजी ने साहस और संकल्प के साथ सारी यातना झेली.

1952 के चुनाव में दुबे जी की सोशलिस्ट पार्टी का जलवा

1952 के चुनाव में दुबे जी की संगठन क्षमता का असर दिखा. सोशलिस्ट पार्टी को आठ विधान सभा में से तीन और लोकसभा की दो सीटों पर सफलता मिली. दुबे जी स्वयं चुनाव हार गये. लेकिन जनपद में सोशलिस्ट पार्टी को 40 फीसदी वोट मिले. सरकार में शामिल होने का प्रस्ताव ठुकरा दिये. हरि बेगारी और नजराना जैसी कुप्रथा के खिलाफ सख्त आंदोलन छेड़े.

28 जुलाई 1953 को प्राणघातक हमला, दोनों हाथ और दोनों पैर तोड़े

जनसभा करके लौटते समय दुबे जी के विरोधियों ने 28 जुलाई 1953 की रात को प्राणघातक हमला किया. इसमें उनके दोनों हाथ और दोनों पैर टूट गये. सादात स्टेशन से वाराणसी लाया गया. छह से सात माह अस्पताल में रहे और वर्षों खाट पर रहे. लेकिन अधिवेशनों में हिस्सा लेते रहे. 1955 में गाजीपुर में पीएसपी की बैठक में मधु लिमये को आमंत्रित किये. 1938 में अपने गांव करंडा के ब्रह्मणपुरा में अछूतों के लिए कुआं खुदवाया, ताकि वह पानी पी सकें.

शत-शत नमन पं दल श्रृंगार दुबे जी को..

स्त्रोत: गाजीपुर के राजनीतिक गौरव बिंदु लेखक डॉ पीएन सिंह