भा गई जिंदगी
धीरे धीरे समझ आ गई जिंदगी
जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी
है मजा इसमें गिरने सम्हलने में
हौसले के साथ तन्हा चलने में
भीड़ से खुद ही कतरा गई जिंदगी
जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी
चोट देकर के इसने तराशा बहुत
मिल गया रब मिली जब निराशा बहुत
क्यों कहें कि सितम ढा गई जिंदगी
जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी
स्वरचित नज़्म
बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश
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