किसी करीबी पर भी आंख मूंद कर ऐतबार का अब वक्त नहीं
मौन रहकर करना है हर चाल पस्त, तकरार का अब वक्त नहीं
हो कितने पानी में है मुझे भी पता, तुम डार-डार मैं पात-पात
यह मत सोचो कि सौ सुनार की एक लुहार का अब वक्त नहीं
किसी सरल और निर्दोष हृदय पर तुम ऐसे ना आघात करो
कि रब रूठकर तुमसे सोचे कि तिरे इसरार का अब वक्त नहीं
जो बोते हैं वहीं काटते हैं हम तो बुरे कर्म का बीज क्यों बोना
जल्दी समझो, इस बात को समझने से इंकार का अब वक्त नहीं
स्वलिखित रचना
बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश
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