मंगलवार, 29 अगस्त 2023

अगर आसमां तक मेरे हाथ जाते तो कदमों में तेरे सितारे बिछाते- गीतकार: रानी मलिक


अगर आसमां तक मेरे हाथ जाते
तो कदमों में तेरे सितारे बिछाते-2
कही दूर परियों की नगरी में चल कर
मोहब्बत का एक आशियाना बनाते
अगर आसमां तक मेरे हाथ जाते
तो हम चाँदनी से ये राहे सजाते
कही दूर परियों की नगरी में चल के
मोहब्बत का एक आशियाना बनाते
अगर आसमां तक मेरे हाथ जाते
तो कदमों में तेरे सितारे बिछाते


यहाँ पर वहां पर बिखेरेंगे कलिया
महकती रहेंगी ये फूलों की गलियां
यहाँ पर वहां पर बिखेरेंगे कलिया
महकती रहेंगी ये फूलों की गलियां
ये झिलमिल करे रेशमी से नजारे
चलेंगे यहाँ धड़कनो के इशारे
चलेंगे यहाँ धड़कनो के इशारे
तो किरणो का आँगन में पहेरा बिठाते
अगर आसमा तक मेरे हाथ जाते


यहाँ सिर्फ बरसे वफाओ के बादल
भिगो कर हमे तो ये कर देंगे पागल
यहाँ सिर्फ बरसे वफाओ के बादल
भिगो कर हमे तो ये कर देंगे पागल
यहाँ गम बहारो के चादर बिछाए
मोहब्बत की खुशबु यहाँ पर लुटाए
मोहब्बत की खुशबु यहाँ पर लुटाए
खुशियों के पंछी यहाँ हम उड़ाते
अगर आसमा तक मेरे हाथ जाते
कही दूर परियों की नगरी में चल कर
मोहब्बत का एक आशियाना बनाते
अगर आसमां तक मेरे हाथ जाते
तो हम चाँदनी से ये राहे सजाते







अपनी भी ज़िन्दगी में खुशियों का पल आएगा ढूँढेंगे तोह मिल जाएगा लेखक: समीर अंजान

 अपनी भी ज़िन्दगी में

खुशियों का पल आएगा
अपनी भी ज़िन्दगी में
खुशियों का पल आएगा
ढूँढेंगे तोह मिल जाएगा -4

अपनी भी ज़िन्दगी में
खुशियों का पल आएगा
ढूँढेंगे तोह मिल जाएगा-4

अच्छे बुरे दिन साथी आते रहेंगे
कभी हसते कभी रुलाते रहेंगे
कभी हसते कभी रुलाते रहेंगे
अच्छे बुरे दिन साथी आते रहेंगे
कभी हसते कभी रुलाते रहेंगे
बस यही बात याद रखना
बस यही बात याद रखना
अपनी भी ज़िन्दगी में
खुशियों का पल आएगा
ढूँढेंगे तोह मिल जाएगा-4

प्यार किया है तुझसे प्यार करेंगे
तेरे साथ जीना तेरे साथ मरेंगे
तेरे साथ जीना तेरे साथ मरेंगे
प्यार किया है तुझसे प्यार करेंगे
तेरे साथ जीना तेरे साथ मरेंगे
बस यही बात याद रखना
बस यही बात याद रखना
अपनी भी ज़िन्दगी में
खुशियों का पल आएगा
ढूँढेंगे तोह मिल जाएगा-4

ऐसा फूल बागो में खिल कभी ना
जिसे दर्द काटो का मिला कभी ना
जिसे दर्द काटो का मिला कभी ना
ऐसा फूल बागो में खिल कभी ना
जिसे दर्द काटो का मिला कभी ना
बस यही बात याद रखना
बस यही बात याद रखना
अपनी भी ज़िन्दगी में
खुशियों का पल आएगा
ढूँढेंगे तोह मिल जाएगा-4

लेखक: समीर अंजान / नदीम सैफी / श्रवण राठौड़




धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है हद से गुज़र जाना है गीतकार: समीर

 धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है

हद से गुज़र जाना है-4


ऐसी जिंदगी होगी हर तरफ खुशी होगी

इतना प्यार दूंगा तुझे ऐ मेरे सनम

अब ना कोई गम होगा ना ये प्यार कम होगा

साथी मेरे मुझको तेरे सर की है कसम

एक दूजे को आज़माना है

हद से गुज़र जाना है

धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है

हद से गुज़र जाना है


मैं अकेला क्या करता

ऐसे ही आन्हे भारत

तेरे प्यार के लिए तड़पता उम्र भर

जाने क्या मैं कर जाती

यूं तड़प के मारा जाती

बिन तेरे भला कैसे कटा ये सफर

तेरे लिए मर के भी दिखाना है

हद से गुज़र जाना है

धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है

हद से गुज़र जाना है


तेरा चाँद सा मुखड़ा

तू जिगर का है टुकड़ा

तू हमारे सपनों की झील का कंवल

जान से तू है प्यारा

आँखों का तू है तारा

बिन तेरे जियेंगे अब हम ना एक पल

सब कुछ तुझपे ही लुटाना है

हद से गुज़र जाना है


धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है

हद से गुज़र जाना है-4





आज पहली बार दिल की बात है गीतकार: समीर

 अब तक मैं चुप रहता हूँ

तुझसे कुछ नहीं कहता था

कबसे दिल दीवाना था

खुद से भी बेगाना था

हमने कई बार मुलाक़ात की है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है


अब तक मैं चुप रहती हूं

तुझसे कुछ नहीं कहती थी

कबसे मैं दीवानी थी

खुद से भी बेगानी थी

हमने कई बार मुलाक़ात की है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है


क्यों मिली थी नज़र से नज़र

माई तुझे प्यार करने लगा था

क्यों मिली थी नज़र से नज़र

माई तुझे प्यार करने लगा था

मेरा सौदा दिल बेखबर

किन अदाओ पे मरने लगा था

राजे दिल छुपाता था

कुछ ना बोल पता है

बहके नज़रो से

कह दू चाँद सितारो से

मैंने वफ़ा तेरे साथ की है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है


चोरी चोरी मेरे हमसफ़र

ख्वाब तेरे सजने लगी थी

चोरी चोरी मेरे हमसफ़र

ख्वाब तेरे सजने लगी थी

सारी दुनिया को मैं भूल के

तेरे नजदिक आने लगी थी

वो जो साज़ दिल की थी

तेरे नाम गुजराती थी

तेरी याद सताती थी

मुझको नींद ना आती थी

पुछ ना बसर कैसी रात की है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है


अब तक मैं चुप रहता है

तुझसे कुछ नहीं कहता था

कबसे मैं दीवानी थी

खुद से भी बेगानी थी

हमने कई बार मुलाक़ात की है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है

आज पहली बार दिल की बात है


गाना- आज पहली बार दिल की बात

मूवी/एल्बम - तड़ीपार

गायक: कुमार शानू, अलका याग्निक

संगीत निर्देशक: नदीम-श्रवण

गीतकार: समीर




आप हैं क्यों लबों रुख़सार में उल्झे उल्झे लोग हैं गर्मी ए बाज़ार में उल्झे उल्झे अहकम ग़ाज़ीपुरी

                                                   आप हैं क्यों लबों रुख़सार में उल्झे उल्झे

                                                      लोग हैं गर्मी ए बाज़ार में उल्झे उल्झे 


उम्र भर हम रहे नाकामी ए पेहम के शिकार 

मिट गए गैसू ए ख़मदार में उल्झे उल्झे 


बाग़बाँ तेरे करम तेरी नवाज़िश के तूफ़ैल

फूल मुरझाने लगे ख़ार में उल्झे उल्झे 


ढूंढते कैसे गुलिस्तां की तबाही का सबब 

रह गए सुर्खीए अख़बार में उल्झे उल्झे 


कैसे पहुंचेंगे मेरी फ़िक्र की गहराई तक 

लोग हैं मीर के अशआर में उल्झे उल्झे 


गेसूए ज़ीस्त को सुलझाने की फ़ुर्सत न मिली 

जिंदगी हम रहे मझधार में उल्झे उल्झे 


कारवां मंज़िले मक़सूद पे पहुंचे कैसे 

हैं सभी वक्त की रफ़्तार में उल्झे उल्झे 


हाय अफ़सोस किसी को नहीं फ़िक्र ए ऊक़बा 

सब सियासत के हैं बाज़ार में उल्झे उल्झे 


जिनसे इंसाफ़ की उम्मीद हमें थी अहकम 

वह भी है दिरहमो है दीनार में उल्झे उल्झे




नूह की कश्ती तो मूसा का असा पैदा करो अज़्म रखते हो तो खुद ही रास्ता पैदा करो अहकम ग़ाज़ीपुरी

                                                नूह की कश्ती तो मूसा का असा पैदा करो 

अज़्म रखते हो तो खुद ही रास्ता पैदा करो 


तुम बदलना चाहते हो रुख़ हवाओं का अगर 

ख़ालिदो ज़र्रार  जैसा हौसला पैदा करो 


नफ़रतों की आग से खुद को बचाने के लिए 

तुम ज़माने में मुहब्बत की फ़िज़ा पैदा करो


चमचमाती सुब्हे नौ की फ़िक्र करते हो अगर

बदलियो का चीर कर सीना ज़या पैदा करो 


फूल खिलते हैं तो अब उनके तहफ़्फ़ुज के लिए

यह जरूरी है कि तुम ख़ारे अना पैदा करो 


आज भी औजे सुरैया तक फ़िज़ा हमवार है 

शर्त है पहले फ़ुवादे इर्तक़ा पैदा करो 


जल ना जाएं नफ़रतों की आग में बर्गो शजर

बहरे शफ़क़त से मोहब्बत की घटा पैदा करो 


जिन सरों से छीनी जाती हैं रिदाएं आजकल 

उन सरों  के वास्ते तुम फिर रिदा पैदा करो 


रेज़ा रेज़ा होके भी अहकम फ़क़त आए नज़र 

ऐसा किरदारो अमल का आईना पैदा करो 




कटते हैं किस तरह मेरे दिन रात देख ले ए जाने वाले आ मेरे हालात देख ले- अहकम ग़ाज़ीपुरी

     कटते हैं किस तरह मेरे दिन रात देख ले

ए जाने वाले आ मेरे हालात देख ले 

कल तक जो दिल लुभाते थे ऐ जाने जां वही 
अब दर्दो ग़म में डूबे हैं नग़मात देख ले 

खेतों में धूल सड़कों पे आवारा तेज़ धूप 
ऐसा है अब के मौसमे  बरसात देख ले 

ईसार देख मेरी वफ़ा देख और फिर 
किस तरह जीतकर भी हुई मात देख ले 

तेरे बग़ैर काटते हैं किस तरह रोज़ो शब 
फुर्सत में तू कभी मेरे हालात देख ले 

जैसे कि अजनबी से मिले कोई अजनबी 
यूं हो रही है तुझसे मुलाक़ात देख ले 

मुझको मिटाने वाले मिटा शौक से मगर 
किस सिम्त है यह गर्दिशे  हालात देख ले 

अहकम के हाले ज़ार पे अफ़सोस किस लिए 
तेरी ही दी हुई है यह सौग़ात देख ले



क्या ज़मीं ने कहा ख़ुदा जाने आसमाँ क्यों झुका ख़ुदा जाने- अहकम ग़ाज़ीपुरी

                                                        क्या ज़मीं  ने कहा ख़ुदा जाने

आसमाँ क्यों झुका ख़ुदा जाने

भीगी आंखें हैं दिल धड़कता है 
याद क्या आ गया ख़ुदा जाने

उसने देखा था इक नज़र मुझ को 
दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने

बस  धुआं उठते मैंने देखा था 
आशियाँ कब जला ख़ुदा जाने

जी रहा हूं मैं रोज़ मर मर के 
ज़िन्दगी है यह क्या ख़ुदा जाने

हौसले भी तो मेरे पस्त न थे 
क्यों क़लम रुक गया ख़ुदा जाने

सर झुकाने का हुक्म है मुझको 
बन्दगी का सिला ख़ुदा जाने 

जिसको चाहा वही हुआ दुश्मन 
है यह क्या माजरा ख़ुदा जाने

जाने क्या हो गया है अहकम को 
शोर कैसा उठा  ख़ुदा जाने





सोमवार, 28 अगस्त 2023

राम से बड़ा राम का नाम अवध का दुनिया को पैगाम रचना --कुमार शैलेन्द्र

 
 राम से बड़ा राम का नाम।
         अवध का दुनिया को पैगाम ।।         
न्याय हो जन-मन सुख का धाम : 
 शांति प्रियता, जनहित-परिणाम ।।
समय- सरयू-जल का आह्वान :
खिले हर अधर- अधर मुस्कान।।
सूर्य की रश्मि लिखे प्रतिदान :
भारती माँ - छवि हिन्दुस्तान।।
युगों तक अमर अटल विश्वास :
सोन माटी- प्रण नीलाकाश।।
नित्य नूतन मानुष- आभास :
सभ्यता-संस्कृति का इतिहास।।
प्रेम- धन, संयम का संदेश :
धवल हिम -आँचल प्यारा देश।।
प्रकृति संपादित धन परिवेश : 
ध्वनित मंगल कामना अशेष।।
न्याय की तुला ईश -पहचान :
बाट है सूझ- बूझ , ईमान।।
राम रमता जोगी का भान :
त्याग तप रघुकुल- गौरव-गान।।
समेटे ऋषियों का सम्मान :
पुरातन भारत भूमि महान।।
जहाँ हर मजहब धर्म समान :
जहाँ सिख- हिन्दू मुसलमान।।
जहाँ पर ख़ुदा ग्रन्थ भगवान :
जहाँ द्वय गीता और कुर आन।।
सत्य का मौलिक अनुसंधान :
राम दृढ़ न्यायिक अनुष्ठान ।।
प्राण -प्रण पल पल श्रद्धा- मान :
यज्ञ- अभिमंत्रित मनु -विज्ञान।।
जगाये दया - समर्पण- बोध :
मिटा दे नित समस्त अवरोध।।
अयोध्या में प्रतिबन्धित युद्ध :
बने हर प्राणि ,शुद्ध तम बुद्ध ।।
ज्ञान का संचालन -विस्तार :
सिखाता करतब जन- अधिकार।।
अहा! यह सुखद-सुभग संयोग :
एक हैं '" हम भारत के लोग" ।।
ऋचाएँ गंगा , वैदिक - मंत्र:
आचमन करता, भारत - तंत्र।।
यहाँ जीवन चलने का नाम :
जहाँ उर के अंदर प्रभु राम।।
रामयश वाल्मीकि -- सुखधाम :
भक्त तुलसी मन - मन्दिर राम ।।
जहाँ पर कुलगुरु मान वशिष्ठ :
राम, रैदास भक्त - प्रिय -इष्ट ।।
अतुल गति राम लक्ष्मण धाम :
कुशिकमुनि- यज्ञसफल अविराम।।
पवन सुत हनूमान--- श्री राम :
जगतपति कोशलेश प्रभु नाम।।
ब्रह्म - दर्शन छवि शुचि आयाम :
भरत को चरण पादुका , राम।।
जगत मर्यादाओं के राम :
जीव अभिलाषाओं के नाम।।
विभीषण लंकापति संग्राम :
मनुजता - स्थापन , पैगाम।।
भजें सुख दायी सीताराम :
मिटे जग- मग बाधा उद्दाम ।।
दिया शबरी को माँ -सम्मान :
नहीं दूजा जग में उपमान।।
नहीं क्षण भर जिनको विश्राम :
उसे जगजीवन सतत प्रणाम।।
करें तृण मूल रोम वन्दन :
कृपा निधि जय रघुकुलनन्दन ।।
कुशल कौशल पुर अवध नरेश:
लंक पुर में प्रभु रामा वेश ।।
कैकेयी मातुल - हृदय ललाम:
पाद पंकज में ध्वनित प्रणाम।।
मातु कौशल्या -दशरथ - राम :
जगत जीवन के मंगल राम।।
जयति जय जपे, जगत जयराम :
राम श्री राम राम : हरि नाम।।






हम सुधरेंगे जग सुथरेगा कहते-सुनते आए हैं रचना --कुमार शैलेन्द्र

 हम सुधरेंगे

जग सुथरेगा,
कहते-सुनते आए हैं ।
दिन बहुरेंगे
फूल खिलेंगे,
आँगन चन्द्रकलाएँ हैं।
करने की आपाधापी में
जीना ही हम भूल गये,
भ्रम की अंध सुरगों में हम
काँटे बनकर झूल गये,
फूलों की नन्हीं किलकारी,
नव दुःस्वप्न व्यथाएँ हैं ।।
कब किसको कितना क्या देना
रत्ती भर यह भान नहीं,
शक्ति स्रोत धरती आँचल का
किञ्चित भी सम्मान नहीं,
सदियों से उर में जिसके,
स्वर्णिम आभाएँ हैं ।।
कोल्हू के बैलों-सा हम
सुधियों के सैकत पेर चुके,
तेल निकलता नहीं देख हम
रक्तिम नयन तरेर चुके,
चूके बादल- झंझा ने,
बिजली बरसाये हैं ।।
सौदागर वैभवी तृषित मन
ठेंगा सूरज को दिखलाए,
दहन हो रही हवनकुण्ड में
संचित जीवन प्रण समिधाएँ ,
बाँझ हो रहा सच ज़मीन का,
दहकी अग्नि -कथाएँ हैं ।।






सुधि पिता होकर- रचना कुमार शैलेन्द्र

 #सुधि_पिता_होकर...!

रचना --कुमार शैलेन्द्र।
(मेरे कीर्तिशेष पूजनीय पिताजी रामचन्द्र पाण्डेय और मेरी कुमार शैलेन्द्र दोनों की जन्मतिथि आठ अगस्त ही है। मै बाबूजी से Exactly बीस वर्ष छोटा हूँ। एक गीत रचना के साथ सादर नमन )
प्रलय में गीत-गति
जब गुनगुनाती,
अस्मिता होकर।
अजित जीवन्त लय
सरगम सिखाती,
सुधि पिता होकर।।
हवा बरगद
टहनियों में,
सृजन-एहसास लिखती है,
हृदय के
बन्द छंदो में,
खुला आकाश लिखती है,
ऋचा अति शुष्क
अधरों पर, पसरती,सुष्मिता होकर।।
व्यथा जब
मोम बन पिघलें,
नदी उमडे़ शिराओं में ,
प्रथा मनहूस गाँवों में
अँधेरी कंदराओं में,
कभी कालिख
नयन-अंजन,
सँवरती, सभ्यता होकर।।
नहीं पचता
समन्दर का,
ज़हर-स्वीकार का मंथन,
कुहुकती कोयलों के
हूक -स्वर
पोषित महा गुंजन,
गिरे को
संभलने की,
सूझ आती, पुष्पिता होकर।
प्रलय में गीत-गति
जब गुनगुनाती,
अस्मिता होकर।।


जब जब सपनों ने पूछा क्या इंक़लाब का मानी -रचना कुमार शैलेन्द्र

  जब जब सपनों ने

पूछा क्या,
इंक़लाब का मानी ।
जुमले रट्टू
टट्टू उछले,
लाल चूनरी, धानी ।।
सुनकर कहने
गुनकर करने,
आती कुछ गुमनाम हवा।
मटकाती कूल्हे
आजू- बाजू ,
मंथर बदनाम हवा ।
पटरानी -आँखों पर,
पट्टी ,झरे
नहीं ,संवेदन-पानी ।।
लय में प्रलय
सुरों में संशय,
ताल-राग में बंजारा-भय,
नुक्कड़ पर
हर गली चौक पर,
ध्वंस -अंश,खारिज़ अक्षय,
शाही मीनारें भड़कातीं,
इतिहासों की परधानी ।।
क्रूर समय की
अन्तर्ध्वनि में,
निर्मित रक्तचाप तन कारा,
घन मड़राते
अन्तस छूते,
मन पारा चढ़ता आवारा ,
लहर ज़हर -सी,
प्रखर नज़र में,
पूजित कुबडी़ कारस्तानी।
जब जब सपनों ने
पूछा क्या ,
इंन्क़लाब का मानी।।

वर्ष गाँठ पर सोनचिरैया क्या क्या बोल सुनाएगी नवगीत कुमार शैलेन्द्र

ढीले हो जाएंगे बंधन,

गाँठ मगर कस जायेगी।
वर्षगाँठ पर सोनचिरैया,
क्या क्या बोल सुनाएगी।
जलसे हमने जलकर देखे,
जल काजल में बदल गया।
जाल सँभाले मछुवारा मन,
मत्स्य गंध पर फिसल गया।
आगामी संतति पुरखों की -
थाती ही खो जायेगी।
पुष्पक में बैठे हैं हम सब,
इन्द्र लोक में जाना है।
अग्नि परीक्षा का भय केवल,
कंचन ही निखराना है।
ऊँची ऊँची सभी उडानें,
नीची ही रह जायेगी।।
टूटी बिखरी संज्ञाओं को,
आओ क्रियापदों से जोड़ें,
संस्कार की सुप्तभूमि में
बीज विशेषण वाले छोड़ें।
वरना व्यथा भारती माँ की,
कोरी ही रह जाएगी।
वर्ष गाँठ पर सोनचिरैया

क्या क्या बोल सुनाएगी।




गीतों की गन्ध कौन हवा उड़ा ले गयी बारूदी फ़सलों से खेत लहलहा गए- -कुमार शैलेन्द्र

 गीतों की गन्ध

कौन हवा उड़ा ले गयी ;
बारूदी फ़सलों से-
खेत लहलहा गए।
अनजाने बादल,
मुँडेरों पर छा गए।
..................................
मर्यादा लक्ष्मण की
हम सबने तोड़ दी,
सोने के हिरनों से
गाँठ नई जोड़ दी,
रावण के मायावी,
दृश्य हमें भा गए।
....................................
स्मृति की गलियों में,
कड़वाहट आयी है,
बर्फ़ीली घाटी की
झील बौखलाई है,
विष के संवादों के
परचम लहरा गए।
......................................
बुलबुल के गाँव, धूप
दबे पाँव आती है,
बरसों से वर्दी में
ठिठुर दुबक जाती है,
अन्तस के पार तक
चिनार डबडबा गए।
.....................................
टेसू की छाती पर
संगीनें आवारा,
पर्वत के मस्तक पर
लोहित है फव्वारा,
राजकुँवर सपनों में
हिचकोले खा गए।
.............................