आप हैं क्यों लबों रुख़सार में उल्झे उल्झे
लोग हैं गर्मी ए बाज़ार में उल्झे उल्झे
उम्र भर हम रहे नाकामी ए पेहम के शिकार
मिट गए गैसू ए ख़मदार में उल्झे उल्झे
बाग़बाँ तेरे करम तेरी नवाज़िश के तूफ़ैल
फूल मुरझाने लगे ख़ार में उल्झे उल्झे
ढूंढते कैसे गुलिस्तां की तबाही का सबब
रह गए सुर्खीए अख़बार में उल्झे उल्झे
कैसे पहुंचेंगे मेरी फ़िक्र की गहराई तक
लोग हैं मीर के अशआर में उल्झे उल्झे
गेसूए ज़ीस्त को सुलझाने की फ़ुर्सत न मिली
जिंदगी हम रहे मझधार में उल्झे उल्झे
कारवां मंज़िले मक़सूद पे पहुंचे कैसे
हैं सभी वक्त की रफ़्तार में उल्झे उल्झे
हाय अफ़सोस किसी को नहीं फ़िक्र ए ऊक़बा
सब सियासत के हैं बाज़ार में उल्झे उल्झे
जिनसे इंसाफ़ की उम्मीद हमें थी अहकम
वह भी है दिरहमो है दीनार में उल्झे उल्झे
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