नूह की कश्ती तो मूसा का असा पैदा करो
अज़्म रखते हो तो खुद ही रास्ता पैदा करो
तुम बदलना चाहते हो रुख़ हवाओं का अगर
ख़ालिदो ज़र्रार जैसा हौसला पैदा करो
नफ़रतों की आग से खुद को बचाने के लिए
तुम ज़माने में मुहब्बत की फ़िज़ा पैदा करो
चमचमाती सुब्हे नौ की फ़िक्र करते हो अगर
बदलियो का चीर कर सीना ज़या पैदा करो
फूल खिलते हैं तो अब उनके तहफ़्फ़ुज के लिए
यह जरूरी है कि तुम ख़ारे अना पैदा करो
आज भी औजे सुरैया तक फ़िज़ा हमवार है
शर्त है पहले फ़ुवादे इर्तक़ा पैदा करो
जल ना जाएं नफ़रतों की आग में बर्गो शजर
बहरे शफ़क़त से मोहब्बत की घटा पैदा करो
जिन सरों से छीनी जाती हैं रिदाएं आजकल
उन सरों के वास्ते तुम फिर रिदा पैदा करो
रेज़ा रेज़ा होके भी अहकम फ़क़त आए नज़र
ऐसा किरदारो अमल का आईना पैदा करो
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