मंगलवार, 29 अगस्त 2023

नूह की कश्ती तो मूसा का असा पैदा करो अज़्म रखते हो तो खुद ही रास्ता पैदा करो अहकम ग़ाज़ीपुरी

                                                नूह की कश्ती तो मूसा का असा पैदा करो 

अज़्म रखते हो तो खुद ही रास्ता पैदा करो 


तुम बदलना चाहते हो रुख़ हवाओं का अगर 

ख़ालिदो ज़र्रार  जैसा हौसला पैदा करो 


नफ़रतों की आग से खुद को बचाने के लिए 

तुम ज़माने में मुहब्बत की फ़िज़ा पैदा करो


चमचमाती सुब्हे नौ की फ़िक्र करते हो अगर

बदलियो का चीर कर सीना ज़या पैदा करो 


फूल खिलते हैं तो अब उनके तहफ़्फ़ुज के लिए

यह जरूरी है कि तुम ख़ारे अना पैदा करो 


आज भी औजे सुरैया तक फ़िज़ा हमवार है 

शर्त है पहले फ़ुवादे इर्तक़ा पैदा करो 


जल ना जाएं नफ़रतों की आग में बर्गो शजर

बहरे शफ़क़त से मोहब्बत की घटा पैदा करो 


जिन सरों से छीनी जाती हैं रिदाएं आजकल 

उन सरों  के वास्ते तुम फिर रिदा पैदा करो 


रेज़ा रेज़ा होके भी अहकम फ़क़त आए नज़र 

ऐसा किरदारो अमल का आईना पैदा करो 




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