#सुधि_पिता_होकर...!
रचना --कुमार शैलेन्द्र।
(मेरे कीर्तिशेष पूजनीय पिताजी रामचन्द्र पाण्डेय और मेरी कुमार शैलेन्द्र दोनों की जन्मतिथि आठ अगस्त ही है। मै बाबूजी से Exactly बीस वर्ष छोटा हूँ। एक गीत रचना के साथ सादर नमन )
प्रलय में गीत-गति
जब गुनगुनाती,
अजित जीवन्त लय
सरगम सिखाती,
सुधि पिता होकर।।
हवा बरगद
टहनियों में,
सृजन-एहसास लिखती है,
हृदय के
बन्द छंदो में,
खुला आकाश लिखती है,
ऋचा अति शुष्क
अधरों पर, पसरती,सुष्मिता होकर।।
व्यथा जब
मोम बन पिघलें,
नदी उमडे़ शिराओं में ,
प्रथा मनहूस गाँवों में
अँधेरी कंदराओं में,
कभी कालिख
नयन-अंजन,
सँवरती, सभ्यता होकर।।
नहीं पचता
समन्दर का,
ज़हर-स्वीकार का मंथन,
कुहुकती कोयलों के
हूक -स्वर
पोषित महा गुंजन,
गिरे को
संभलने की,
सूझ आती, पुष्पिता होकर।
प्रलय में गीत-गति
जब गुनगुनाती,
अस्मिता होकर।।
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