गुरुवार, 27 जुलाई 2023

सिंहासन समग्र योग सिद्धांत एवं होमियोपैथिक दृष्टिकोण से।डाॅ.एम डी सिंह

सिंहासन

जब परिस्थितियां शौर्य शक्ति और पराक्रम दिखाने को वाध्प करें तो सिंहासन को याद करना चाहिए। युद्ध में जाते समय सैनिकों को यह आसन अवश्य करके निकलना चाहिए। जब हमारे भीतर अनचाहे विचारों का जंगल पनपने लगे और हमारी चेतना अनेक दोषपूर्ण वैचारिक चिंताओं रूपी जंंगली जानवरों के हमले से जूझ रही हो तो आप सिंहासन करके गगनवेधी गर्जना कीजिए। सच मानिए किसी भी औषधि से तेज असर इस आसन का आपके मन को शंकाओं से मुक्त कराने में दिखेगा।

सिंह की शक्ति उसके जबड़ों में है, गर्दन में और पंजों में है। उससे भी ज्यादा पूरे जंगल को हिला देने की ताकत उसकी गर्जना में है। मुंह खोल, जीभ निकाल, सर ऊपर कर, गले से निकाली जा रही उसकी गंभीर आवाज दूर तक अपना लोहा मनवाती है।

आवाज की शक्ति से अपने मन- मस्तिष्क को शक्ति देते हमने खिलाड़ियों को खूब देखा है। मां काली और नरसिंह इसी सिंहशक्ति के वाहक हैं।

वज्रासन में बैठकर, घुटनों पर पंजों का दबाव बढ़ाते हुए गर्दन को अकड़ा कर, जीभ पूरी तरह बाहर निकाल, गले से आवाज निकालते हुए इस आसन को संपन्न किया जाता है।

दो-तीन मिनट तक किए जाने वाले इस आसन द्वारा हम अपनी अंतःचेतना को
आंतरिक उपद्रवों से निपटने की अपार शक्ति प्रदान कर सकते हैं।

(अपनी पुस्तक 'समग्र योग सिद्धांत एवं होमियोपैथिक दृष्टिकोण'से।)
डाॅ.एम डी सिंह



बुधवार, 26 जुलाई 2023

जब ठान ली मंजिल पाने को कदम रुके ना बढ़ने दो।रचना श्री मनोज सिंह युवराजपुर गाज़ीपुर

प्रारूप
नाम : श्री मनोज सिंह
जन्मतिथि :२९-सितंबर-१९६९
माता का नाम : श्री मती केशवती देवी
पिता का नाम : स्वर्गीय राम नारायण सिंह
जन्म स्थान : ग्राम पोस्ट युवराजपुर थाना सुहवल जिला ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश
शैक्षिक योग्यता : स्नातक
संप्रति (पेशा) : प्राइवेट जॉब ( मेडिकल )
विधाएं : कविता, भोजपुरी गीत
साहित्यिक गतिविधियां :
प्रकाशित कृतियां : कोई नही
पुरस्कार सम्मान : कोई नही
संपर्क सूत्र : 9415809682
विशेष परिचय : विशेष परिचय में मुख्य रूप से गायन के तमाम विधाओं लोकगीत, भोजपुरी गीत, निर्गुण, देवीगीत, के साथ साथ साहित्य के प्रति झुकाव और कुछ ही रचनाओं का संग्रह

रचना- १

अपनों से भरोसा अब उठने लगा है,
क्या बताऊँ कि कैसा, अब लगने लगा है।
सब हमारे हैं, कहते अघाते न थे,
उनका हसना भी, काटों सा चुभने लगा है।
किसको अपना कहूँ, और पराया किसे,
ये समझना भी मुश्किल, अब लगने लगा है।
हाले परेशां, सुनाऊ उन्हें,
क्या वो समझेंगे, सोच मन सहमने लगा है।

रचना-२

जब ठान ली मंजिल पाने को
कदम रुके ना बढ़ने दो।
कोई रोके कोई टोकें,
कुछ कहता है तो कहने दो।।

कभी आपत्ति कभी विपत्ति,
कई अड़चनें आएंगी।
आएगी आंधी तूफान और,
कई मुश्किलें आएंगी।।
हो उत्साह सदा ही मन में,
हीन भाव, ना भरने दो
जब ठान...…

चाहे जिस भी पथ के पथिक बनो,
वो सत का ही पर्याय हो।
बस दीप जले खुशियों का हरदम,
ना कभी अन्याय हो।।
धीरज शौर्य बनाकर रखना
कभी ने इसको मरने दो
जब ठान.........



शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

संघर्षों के इस धरा पर नारी ही बलिदानी निकली वीरता शौर्य पराक्रम की अद्भुत एक कहानी निकली। लव तिवारी

संघर्षों के इस धरा पर नारी ही बलिदानी निकली
वीरता,शौर्य पराक्रम की अद्भुत एक कहानी निकली।

मातृ शक्ति की स्नेह तुम्ही से,और सृजन का पालन हो तुम।
फिर भी दरिंद बेईमानों की हवस की एक कहानी निकली।

एक तरफ पूजा करते है और फिर अत्याचार तुम्हीं पर।
सीता को कलंकित करके, भगवान राम की कहानी लिखी।

इस देश को माता कहकर, नारी का सम्मान नही करते।
पाप पुण्य के इस चक्कर तुम्हीं बस तुम्हारा नाम है जपते।
हर कठिनाई सहन करके जीवन की तुमने हरियाली लिखी
स्वाभिमान और अपमान की जीती जागती कहानी लिखी।।

लव तिवारी



गुरुवार, 20 जुलाई 2023

धनुरासन अपनी पुस्तक समग्र योग सिद्धांत एवं होमियोपैथिक दृष्टिकोण से डाॅ एम डी सिंह

धनुरासन

एक महत्वपूर्ण आसन जिसकी प्रत्यंचा चढ़ा कर योगी बुढ़ापे को लक्ष्य करता है, और पा लेता है आगे को झुकी हुई कमर को सदैव युवकों की तरह सीधा रखने का वरदान। बिना लक्ष्य के किसी योग की कल्पना भी नहीं की जा सकती। किसी लक्ष्य को वेेधने की बात आती है तो सर्वप्रथम धनुष-वाण की याद आती है। तो क्या कोई प्रत्यंचा चढ़ी हुई धनुष बिना तीर के किसी लक्ष्य को वेध सकती है क्या? सीधा सा जवाब होगा नहीं।

ध्यान करता हूं तो पाता हूं अत्यंत विस्मयकारी है यह आसन। पेट के बल लेट कर, दोनों टांगों को पीछे की तरफ मोड़ कर, नितंबों पर रख देते हैं। फिर दोनों पांवों को दोनों हाथों से घुट्ठियों के पास से पकड़कर धीरे-धीरे सांस अंदर भरते हुए आगे ऊपर की तरफ खींचते हैं। इस प्रक्रिया में आगे से सिर, गर्दन, कंधे और छाती ऊपर पीछे की ओर तन जाते हैं तो पीछे से जांघों, नितंब, कमर और पीठ-पेट के कुछ हिस्से ऊपर आगे की तरफ उठ जाते हैं। योगी के पेट का मध्य हिस्सा जमीन पर रह जाता है। इस प्रकार हाथ और पैर प्रत्यंचा का रूप लेते हैं तथा शरीर के बाकी हिस्से धनुष का। इस तरह योगी नीचे की तरफ तनी, पृथ्वी पर रखी हुई धनुष की तरह दिखाई पड़ता है। यहां वह धनुष से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ जाता है और उसकी शक्तियों को अपने भीतर आवाहित करता है। धनुष में प्रक्षेपण की अपार शक्तियां समाहित हैं। इसलिए इस आसन द्वारा हम शरीर के अंदर-बाहर किसी भी लक्ष्य को चिन्हित कर वेधने का प्रयास कर सकते हैं।

किंतु यहां सवाल उठता है तीर कहां है? इसी सवाल का जवाब सामान्य से दिखने वाले इस सहज आसन को अत्यंत अद्भुत बना देता है। वह तीर है योगी द्वारा ध्यान किया गया कोई भी अदृश्य, अमोघ वाण, जिसके माध्यम से वह अपने अंतःकरण की अशुद्धियों को भस्म कर देता है। वैसे ही जैसे होम्योपैथिक औषधियां मनोविकारों को भी अपनी अदृश्य शक्तियों द्वारा नष्ट कर देती हैं।

इस आसन को सांस रोकने तक दो-तीन बार दोहराया जा सकता है।

इस प्रकार हम देखते हैं धनुरासन किसी अन्य की तरफ उठी हुई धनुष नहीं वरन अपने अंतःतम
को लक्षित अदृश्य वाण साधे एक अप्रतिम आसन है।

(अपनी पुस्तक 'समग्र योग सिद्धांत एवं होमियोपैथिक दृष्टिकोण' से)

डाॅ एम डी सिंह


बुधवार, 19 जुलाई 2023

गाजीपुर के युवा कवि राजेश कुमार पाल जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनकी रचनाएं

प्रारूप
नाम : राजेश कुमार पाल
जन्मतिथि : 19 Nov 1986
माता का नाम : स्वo बासमती पाल
पिता का नाम : श्री शिवमूरत पाल (वरिष्ठ अधिवक्ता)
जन्म स्थान : मुहल्ला सकलेनाबाद, जिo गाजीपुर
शैक्षिक योग्यता : एलएलबी, स्नातक (अंग्रेज़ी साहित्य एवं मध्यक़ालीन इतिहास) पी. जी. डिप्लोमा इन कंप्यूटर्स
संप्रति (पेशा) : HR Coordinators & Labour Law Consult (Prop. Enter HR Solutions) in Mumbai
विधाएं : कविता और शायरी
साहित्यिक गतिविधियां : अभी तक नहीं
प्रकाशित कृतियां : अभी तक नहीं
पुरस्कार सम्मान : अभी तक नहीं
संपर्क सूत्र : 9224 7557 92
विशेष परिचय : ग़ाज़ीपुर परंपरागत क्रिकेट में 1998 से लेकर 2010 तक काफ़ी सक्रिय रहा और एक तेज़ गेंदबाज़ के रूप में प्रभावशाली रहा और अध्ययन के साथ साथ साहित्य में रुचि

कृतियाँ

जीवन की अभिलाषा में…

जीवन की अभिलाषा में,
एक नयी ज्योति की आशा में;
हम सबको दिया दिखा डाला,
इस जीवन की परिभाषा ने;

कुछ तो दर्द हुआ होगा,
जब कलियाँ अंकुलायी होंगी;
एक पीर पराई क्या जाने,
सदियाँ व्यकुलायी होंगी;

तेरे कर्म तेरे अपने होंगे,
हर मर्म तेरे अपने होंगे;
आँखों में जो स्वप्न जगा,
साकार सभी सपने होंगे,

एक लक्ष्य लिया है तुमने जो
अपने घर के इक कोने से;
निखर रही हैं आवाज़ें,
कुछ रखा नहीं अब सोने में;

धरा पड़ी है मौन खड़ी,
कुछ हुआ न होगा रोने से,
उर्मिला की व्यथित वेदना,
समय है सीता होने में…

गुरु द्रोण दोन में बड़े हुए,
भीष्म पितामह सैय्या पे;
माँ कुंती कर्ण को दे न सकी,
एक जीवन कटी है नैया पे,

हम खड़े हैं सम्मुख जिनके भी,
ये नहीं हमारा अभिनय है;
तुम अपनी शरण में ले लो माँ बस,
यही हमारा सविनय है।


सोचो हिंद के हिंदुस्तानी…

सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
नागपंचमी भूल गए हैं, वैलेंटाइन आबाद है;
सभ्य सनातन को जीने से अब कितना कतराते हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद हैं

नहीं पता है लोहड़ी हमको, गोधना का अब पता नहीं;
छोड़ दिए सब संस्कृति अपनी, खिचड़ी हमको याद नहीं,
गुड मोर्निंग का पता है सबको, सूर्योदय मेरा गया कहाँ,
हाय, हाय करते हाल पूछते, बाय बाय को बेताब हैं...
सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद हैं

दाल-भात छूटा है हमसे बर्गर, चाऊमिन खाते हैं,
ताल तलइया छूटी हमसे, डिस्को- डाँसिंग जाते हैं;
साँझ नहरिया ढूँढ रही है, अपने बेर-टिकोरा को,
हम टोकन लेकर खड़े हुये हैं नम्बर सबको याद है;
सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद है;

शेष बची जो दुनियादारी, कहाँ निभा अब पाते हैं,
नानी टूक टुक राह निहारे, ननिहाल कहाँ अब जाते हैं,
भोर हुआ मैं जगा नहीं, उजियारे का पता नहीं,
और काल कोठरी बंद पड़ी है, नींद मेरी आबाद है,
सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद है;


शायरी
चुपचाप चले गए होते तो क्या हो जाता,
न तुम्हारा कुछ बिगड़ता ना मेरा बन जाता;
तेरे शहर का पंछी जब खुले आसमाँ में क़ैद है,
तो उनका क्या होगा?? जिन्हें उड़ना नहीं आता....!

एक आंसू को मैंने अभी टपकते हुए देखा,
दुखों के सैलाब को उमड़ते हुए देखा,
इक अश्क़ था पलकों पर चमकते हुए मोती सा;
मत जा तू मुझे छोड़कर कहते हुए देखा!

-
Rajesh Kumar Pal


किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते हैं पराया दर्द अपनाए उसे इंसान कहते हैं- सत्यप्रकाश पथिक

किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते हैं।-२
पराया दर्द अपनाए उसे इंसान कहते हैं।।-

किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते हैं।
पराया दर्द अपनाए उसे इंसान कहते हैं।।

कभी धनवान है कितना कभी इंसान निर्धन हैं-२
कभी सुख है कभी दुःख इसी का नाम जीवन है
जो मुश्किल में न घबराये उसे इंसान कहते है
किसी के काम जो......

ये दुनिया एक उल्झन है, कही धोखा कही ठोकर।-२
कोई हस हस के जीता कोई जीता है रो रो कर
जो गिर कर खुद संभल जाये उसे इंसान कहते है
किसी के काम जो ............

अगर गलती रुलाती है, तो ये राह भी दिखती है-२
बसर गलती का पुतला है, ये अक्सर हो ही जाती है
जो गलती करके पछताये-२ उसे इंसान कहते है
किसी के काम जो ............

अकेले ही जो खा खा कर, सदा गुजरान करते है-२
यू भरने को दुनिया है-२ पशु भी पेट भरते है
पथिक जो बाट कर खाये उसे इंसान कहते है
किसी के काम जो ............

किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते हैं।
पराया दर्द अपनाए उसे इंसान कहते हैं।।
किसी के काम जो ............

सत्यप्रकाश पथिक

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

फिल्मफेयर और फेमिना द्वारा मनोज भावुक का हुआ सम्मान


लखनऊ के रमादा में 16 जुलाई को फिल्मफेयर एवं फेमिना द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘ भोजपुरी आइकॉन्स- रील एंड रीयल स्टार्स ‘ समारोह में भोजपुरी के जाने-माने लेखक, फिल्म समीक्षक और भोजपुरी सिनेमा के इतिहासकार मनोज भावुक को भोजपुरी साहित्य और सिनेमा के इतिहास पर किये गए उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया।  

यह एक ऐतिहासिक कार्यक्रम हैं, जब दो प्रतिष्ठित ब्रांड फिल्मफेयर और फेमिना पहली बार भोजपुरी आइकॉन का सम्मान करने और जश्न मनाने के लिए एकजुट हुए। इस अवसर पर पद्मभूषण शारदा सिन्हा को लोक संगीत के लिए, संजय मिश्रा को प्राइड ऑफ भोजपुरी मिट्टी, मनोज तिवारी को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड और रवि किशन को ओटीटी और सिनेमा के लिए सम्मानित किया गया।

मनोज भावुक को भोजपुरी साहित्य व सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए यह सम्मान फेमिना की प्रधान संपादक अंबिका मट्टू व दक्षिण के निर्देशक विक्रम वासुदेव द्वारा संयुक्त रूप से प्रदान किया गया।

मनोज भावुक 1998 से लिख रहे हैं भोजपुरी सिनेमा का इतिहास ...

तस्वीर जिदंगी के (भोजपुरी गजल संग्रह) व चलनी में पानी (भोजपुरी कविता-संग्रह) मनोज भावुक की चर्चित पुस्तकें हैं। मनोज भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर पिछले 25 वर्षों से लिख रहें हैं। वर्ष 2000 में ही भोजपुरी सिनेमा के प्राचीन इतिहास (1962-2000) पर किताब लिख ली थी। इनेक लेख धारावाहिक रूप में कई पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। कई लोगों ने सिनेमा पर किये अपने शोध व पीएचडी में मनोज भावुक के रिसर्च को ही आधार बनाया है। पेंग्विन से भोजपुरी सिनेमा पर छपी अभिजीत घोष की अंग्रेजी किताब में भी भावुक के तमाम सिनेमा-लेखों व शोध-पत्रों का जिक्र है। 'भोजपुरी सिनेमा के संसार'  नाम की साढ़े चार सौ पृष्ठों की यह किताब पिछले साढ़े तीन साल से भोजपुरी-मैथिली अकादमी, दिल्ली के पास प्रकाशनाधीन है। इसमें मनोज ने 1931 से लेकर 2019 तक के भोजपुरी सिनेमा के सफर पर बात की है।  

मनोज भावुक ने फिल्मों में अभिनय भी किया है, गीत भी लिखे हैं ...

सौगंध गंगा मईया के और रखवाला नामक फिल्म में मनोज भावुक ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। इसके अलावा बहुत सारे टीवी सीरियल और डॉक्यूमेंटरीज में भी काम किया है। मनोज बिहार आर्ट थियेटर, कालिदास रंगालय, पटना के टॉपर रहे हैं। मेंहदी लगा के रखना नामक एक फिल्म में मनोज का गीत खूब वाइरल हुआ - अँचरा छोड़ा के चल काहे दिहले एतना दूर ए माई '।  मनोज ने भोजपुरी के लगभग सभी चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम किया है और विविध विषयों कार्यक्रम बनायें हैं।      

   
       
सपना हुआ साकार...

मनोज भावुक कहते हैं कि भोजपुरी इंडस्ट्री फ़िल्म फेयर और फेमिना तक पहुँच गई। यही आपने आप में बड़ी उपलब्धि है।  फिल्मफेयर एवं फेमिना द्वारा सम्मान मिलना बड़ी बात है। मैं  अपने आप को सौभाग्यशाली समझता हूँ।भोजपुरी साहित्य और सिनेमा, खासकर इतिहास लेखन के लिए पहली बार किसी फिल्म अवार्ड शो में मुझे सम्मानित किया गया है जबकि दो दशक से भी अधिक समय से मै इस इंडस्ट्री से जुड़ा हूँ और सभी आयोजक व स्टार्स मेरे काम को जानते हैं लेकिन यहाँ कलम की कीमत नहीं है। हालाँकि मै तो कलम के साथ कैमरा वाला भी हूँ। भोजपुरी इंडस्ट्री का शायद ही कोई बड़ा कलाकार होगा जिसका मैंने साक्षात्कार नहीं किया हो। 

इस सम्मान के लिए फिल्मफेयर एवं फेमिना के प्रति शुक्रगुजार हूँ और यह सम्मान भोजपुरी भाषा व भोजपुरी भाषियों को समर्पित है।        

कौन हैं मनोज भावुक ?

मनोज भावुक यूके और अफ्रीका में इंजीनियरिंग की नौकरी को छोड़कर पूरी तरह से भोजपुरी हेतु प्रतिबद्ध एवं समर्पित हो चुके हैं। आपको भारतीय भाषा परिषद सम्मान (2006), पंडित प्रताप नारायण मिश्र सम्मान (2010),  भिखारी ठाकुर सम्मान (2011), राही मासूम रज़ा सम्मान (2012), परिकल्पना लोक भूषण सम्मान, नेपाल (2013 ), अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी गौरव सम्मान, मॉरिशस (2014), गीतांजलि साहित्य एवं संस्कृति सम्मान, बर्मिंघम, यूके (2018 ), बिहारी कनेक्ट ग्लोबल सम्मान, दुबई (2019 ), कैलाश गौतम काव्यकुंभ लोकभाषा सम्मान (2022) जैसे अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा जा चुका है।  

अभिनय, संचालन एवं पटकथा लेखन आदि विधाओं में आपकी गहरी रुचि है। भोजपुरी जंक्शन नामक पत्रिका (ई-पत्रिका) का आप संपादन भी करते हैं। आप एक सुप्रसिद्ध कवि, कार्यक्रम प्रस्तोता व लोक मर्मज्ञ हैं। विश्व भोजपुरी सम्मेलन की दिल्ली और इंग्लैंड इकाई के अध्यक्ष रहे हैं। विश्व के लीजेंड्स को समर्पित अचीवर्स जंक्शन के निदेशक हैं। कई पुस्तकों के प्रणेता हैं। भोजपुरी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु विश्व के कई देशों की यात्रा की है। आप जी टीवी के लोकप्रिय रियलिटी शो सारेगामापा (भोजपुरी) के प्रोजेक्ट हैड रहे हैं। आपने कई टीवी शोज, फिल्मों और धारावाहिकों में अभिनय किया है। 

मनोज बिहार के सिवान जिले के कौसड़ गाँव के रहने वाले हैं। इनके पिताजी स्वर्गीय रामदेव सिंह हिंडाल्को रेणुकूट, उत्तर प्रदेश के प्रथम मजदूर नेता रहे हैं और बड़े पिताजी जंग बहादुर सिंह आजादी के तराने गाने के लिए जेल जाने वाले 103 वर्षीय सुप्रसिद्ध देशभक्त लोक गायक हैं।



सोमवार, 17 जुलाई 2023

ग़ाज़ीपुर यूपी 61 के संस्थापक युवा समाजसेवी कवि श्री शिवांश त्रिपाठी जी का संक्षिप्त परिचय एवं रचनायें

प्रारूप
नाम : शिवांश त्रिपाठी
जन्मतिथि : 12/07/1994
माता का नाम : शीला तिवारी
पिता का नाम : जय चंद तिवारी
जन्म स्थान : गाजीपुर
शैक्षिक योग्यता : स्नातकोत्तर ( अंग्रेजी )
संप्रति (पेशा) : शिक्षक एवम् समाज सेवक
विधाएं : कविता
साहित्यिक गतिविधियां : साहित्य अध्ययन में रुचि लेकिन फेसबुक और कुछ अन्य न्यूजपेपर्स के अलावा कुछ लिखा नहीं।।
प्रकाशित कृतियां : कुछ अखबारों में प्रकाशित हुई हैं कविताएं लेकिन किसी प्रकाशन के माध्यम से नहीं।।
पुरस्कार सम्मान : कोरोना योद्धा सम्मान ( ID Memorial College द्वारा प्राप्त ) ( साहित्य में क्षेत्र में अब तक कुछ भी नहीं )
संपर्क सूत्र : 9451645951
विशेष परिचय : अपने जनपद गाजीपुर की छोटी बड़ी चीजों को मुख्य पटल पर लाने हेतु गाजीपुर यूपी 61 फेसबुक पेज की स्थापना जो आज एक संस्था गाजीपुर यूपी 61 ट्रस्ट के रूप में अपने उद्देश्यों को पूरा कर रही है।।
(नोट-तीन अच्छी किन्तु छोटी रचनाएं भी साथ में होना चाहिए।)
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यही तो सत्य है

निकलना शुरू हो गए थें वो,

जो कभी अपने हुआ करते थें । जल्दी थी आज उन्हें सब कुछ राख कर देने की, जो कभी मेरे लिए समय लेकर आते थें।
पर यही तो सत्य है न जीवन का, सबको तय करनी है ये यात्रा,

अपनो के कंधे पर, जैसे मैं आया, चिता में जलते हुए भी आत्मा को दुख हो रहा था,
अपनों को बदलते देखते हुए,

पर एकाएक अपना दुख खत्म हुआ, जब दूसरी ओर देखा,

आया एक मनुष्य था,
लेकिन बिना कंधों के,

फिर हुआ ये एहसास कि खुशनसीब था मैं,
जो मिला मुझे अपनो का कंधा, खुश रहें मेरे अपने, मेरे बिना,

न हो कमी कभी इनको किसी भी चीज की, आशीर्वाद देते हुए, चल चला दूसरी दुनिया में, अपने किये कर्मों का हिसाब देने ।।

© शिवांश त्रिपाठी

काव्य : सतुआन पर विशेष

मकई जौ अउरी चना के सतुआ, हम लेले आइब पिसवा के, तू दिहा बस चटनी पीस, बस अलग अलग न करिहा हिस्सवा के ||

लहसुन, टिकोरा और मरीचा, और कर दिहा ओम्मे नून के ऐड, निम्बू भी हम लेले आइब, महंग केतनो होखे हम करब पेड ।।

खाइल जायी संगे बइठ के,
दुनो जाने एक्के थरिया में, अ तीख लागी त गरिया लिहा, मिठास लगे तोहरे गरिया में ।।

अब गर्मी भर जब जब लू चली, हमरा खातिर सतुआ तू घोरिहा, तनी करिया नमक, मरीचा, निम्बू के संगे,पियाज भी काट के डलिहा ।।

अ तू ही त बाडू हमार जिंदगी के चटनी, तोहरे बिन कइसे होई हमार सतुआन हो, अ बिना तोहके हाथ से खियउले, हम कइसे करब नेवान हो।

© शिवांश त्रिपाठी

क्या ये भी तुझको याद नहीं है,
कुछ भी तेरे बाद नहीं हैं...
मैं खंडहर हो जाऊंगा तेरे बिन,
तुझ बिन मेरी बुनियाद नहीं है...
तू मेरी है ये तो हक है मेरा,
ये मेरी कोई फरियाद नहीं है...
जितना प्रेम है मुझको तुमसे,
किसी भाषा में इसका अनुवाद नहीं है...
क्या ये भी तुझको याद नहीं है,
कुछ भी तेरे बाद नहीं है...

© शिवांश त्रिपाठी
अपने गाजीपुर के लिए एक चिट्ठी

ए गाजीपुर ! तुम बहुत याद आते हो बे। एक शौक पाल लिए थें बाहर का सपना देखने का लेकिन अब एहसास होता है कि बेटा उ सपना नहीं, ब्लंडर वाली गलती थी हमारी।
साला बचपन से लेकर 18 बरस की ज़िंदगी काटें हैं तुम्हारे साथ। उतना ही जितना अम्मा और बाउजी के साथ। फिर पढ़ाई और बाहरी दुनिया के शौक में छोड़ आएं तुमको।

पता है इहवाँ दोस्त यार बहुत हैं पर लँका और सिचाईं विभाग की तरह सड़क पर चाय पीते हुए गप्पे मारने का टाइम नहीं है इनके पास। चमचमाती सड़कों पर जब मुझसे तेज़ दौड़ती हुई लखटकिया दुपहिया निकलती है तो अनायास निकल जाता है कि बेटा कब्बो कासिमाबाद या रेवतीपुर वाली सड़क पर आओ तो दिखाते हैं बाप कौन।

इन्हवा प्यार मोहब्बत में भी मज़ा नहीं आता है क्योंकि इहवाँ का प्यार महंगा है बहुत। कहे के मतलब कि दोस्त की गाड़ी पर बैठकर गली के राउंड लगा लेने से लड़की खुश नहीं होती बल्कि किसी महंगे कैफ़े में अपॉइंटमेंट लेना पड़ता है न।

इहवाँ सड़क पर गिर जाओ त कउनो उठाने नहीं आता है जबकि तुम्हारे यहाँ तो ब्लेड लगने पर भी जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में स्पिरिट लगवाने पहुंच जाते थें।

इहवाँ सब लोग ज़िंदगी को तेजी से गुज़ार रहे हैं पर सुकून तो तुम्हारे यहाँ ही है बे। खैर तुम अपना सुकून बनाये रखना। हम आएंगे वापस लेकिन डर लगता है कि कहीं फुल्लनपुर क्रासिंग से रेल गुजरते ही आंखे न भर जाए। पूरा शहर न दिखने लगता है वहाँ से।
बहुत कुछ बतियाना है बे तुमसे पर साला इहवाँ टाइम किसके पास है। चलो अब बस करते हैं। भूल मत जाना तुम शिवांश को। जल्दी फिर चिट्ठी लिखता हूं तुमको।

© शिवांश त्रिपाठी

हे सती क्या तुम्हारे वियोग में शिव को भी अपने प्राण दे देने चाहिए,
कूद जाना चाहिए उसी यज्ञ कुंड में और तुम्हे प्रेम का प्रमाण देना चाहिए।।

शिव भी शव सा हो गया है, कैसी ये विचित्र माया है,
क्या होगा कौन जाने, ग्रह नक्षत्र सहित पूरा ब्रम्हांड घबराया है।।

इस वियोग की अग्नि को पूरा विश्व है झेल रहा,
नीलकंठ भी नीला पड़ जाए, ये विष अपना खेल है खेल रहा।।

हर तो मैं हूं पर तुम ही हर लो आज ये सारा कष्ट मेरा,
क्यों कर दिया यूँ अकेला जब मैं था सिर्फ तेरा।।

चलो भस्म रमा कर बनूंगा औघड़, फिर बैठूंगा अब समाधि में,
जटा की गंगा गर्म हो चुकीं, चन्द्र तप रहा इस विरह की व्याधि में।।

इंतज़ार तुम्हारा फिर रहेगा मेरे मन में बैठे उस जीव को,
आकर फिर अपना लो तुम अपने इस औघड़ शिव को।।

नमः पार्वती पतये हर हर महादेव ❣️❣️

© शिवांश त्रिपाठी

उनकी आंखों में आज कुछ नई बात थी,
वो खुद थीं ज़हर या ज़हर की कोई काट थीं,
आज फिर हमारी उनसे मुलाकात थी।

बादल और बिजली का कहर भी था,
हवाएं ठंडी और शाम का पहर भी था,
मेरी जान थीं वो या खुदा की करामात थीं,
आज फिर हमारी उनसे मुलाकात थी।

लहरें भी अस्सी पर इठला रही थीं,
वो चाय पीकर मन को बहला रही थीं,
भीड़ में भी था सन्नाटा जैसे कोई रात थी,
आज फिर हमारी उनसे मुलाकात थी,
उनकी आंखों में आज कुछ नई बात थी।।


© शिवांश त्रिपाठी



रविवार, 16 जुलाई 2023

महिला विकास मंच की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती वीना मानवी जी से स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त करते हुए- लव तिवारी

कल दिनांक १५ जूलाई २०२३ को महिला विकास मंच के कार्यकारिणी बैठक में श्रीमती Shaurya Anand जी पत्नी श्री Abhishek Singh जी (अध्यक्ष जिला क्रिकेट एसोसिएशन ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश) को महिला विकास मंच उत्तर प्रदेश का प्रदेश सचिव घोषित कर पद और गोपनीयता के शपथ का कार्यक्रम जस्ट इन् होटल ग़ाज़ीपुर में आयोजित किया गया। इस शुभ अवसर पर संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती Veena Manvi जी, राजनीतिज्ञ बड़े भैया श्री राम जी सिंह जी, जिला अध्यक्ष श्रीमती Madhuu Yadav जी के साथ साथ संस्था के अन्य पदाधिकारियों की गरिमामई उपस्थिति रही। सावन मास की इस पवित्र महीने में भगवान भोलेनाथ की असीम अनुकंपा आप पर बनी रहे, साथ ही समाज सेवा के प्रति आपके निःस्वार्थ सेवा को परमपिता और भी शक्तिशाली एवं आशीर्वाद प्रदान करें जिससे आप निर्बल, गरीब,असहाय जन की आवाज़ बन समाज सेवा के उत्कृष्ठ उद्देश्य को पूरा कर सकें।
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उपवास मनोयोग अथवा ध्यान योग भी है। डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर

उपवास और उपासना उपवास एक अद्वितीय योग है। उपवास मनोयोग अथवा ध्यान योग भी है। जहां तक पहुंचने के लिए प्रत्याहार तप और ईश्वर प्रणिधान स्वयं सिद्ध हो जाते हैं। उपासना भी इसका एक मार्ग मात्र है। साधक चित्त पर विजय प्राप्त कर स्व को लेकर चेतना के निर्द्वन्द्व, अति शांत, शीतल ,अभेद्य ऊपरी प्रकोष्ठ में वास करने चला जाता है। यही उपवास है। उपास्य ध्येय अथवा लक्ष्य है । उपासना धारणा अथवा कर्म है। उपवास ध्यान अथवा लक्ष्य को प्राप्त करने तक चेतना के ऊपर प्रवास है। अर्ध अथवा पूर्ण भोजन का परित्याग न स्वास्थ्यप्रद है न फलदायक न ही उपासना का मूलार्थ। पथ्य और अपथ्य का भी उपवास से कोई संबंध नहीं वे तात्कालिक स्वास्थ्य निर्दिष्ट आहार व्यवस्थाएं हैं। उपवास भक्तियोग में उपासना की आनंदाविभोर अवस्था है जिसमें उपासक स्व को इष्ट में लीन कर उसके पास आवास प्राप्त कर लेता है। जैसे हनुमान राम भक्ति में इतना तल्लीन हुए कि श्री राम उनके भीतर विलीन हो गए। मीरा के साथ भी यही हुआ, चैतन्य महाप्रभु के साथ भी और रैदास के भी। भक्ति में भूख ,प्यास ,आवास,व्यवसाय, लोभ-मोह से मुक्त हो ब्रह्म का परमब्रह्म के पास आवासित हो जाना उपवास है। मैं यह बार-बार कहता हूं योग में स्व से बड़ा कोई नहीं।वही तय करता है वह कहां वास करें कहां उपवास। कर्मयोगी पूर्णतः स्व का उपासक होता है। उसके लिए कर्म ही ब्रह्म है और कर्म की पराकाष्ठा परम ब्रह्म। यदि वह फलचेती हो जाय,भविष्यभ्रमणी हो जाय अथवा अतीतान्वेषी हो जाय तो कभी आवास को छोड़कर उपवास नहीं कर पाएगा। अनंतधर्मा कर्मी होने के लिए पराकाष्ठा पर उपवास करना होगा जहां न थकान है न ठिठकन । कभी आपने सोचा भोजन पेट नहीं करता,भूख और प्यास पूरी तरह मनोकृत हैं। मन और आत्मा दो विहंग हैं, दोनों प्रगाढ़ मित्र। एक जीव के भीतर भ्रमण करने वाली आत्मा, दूसरा पूरे ब्रह्मांड में भ्रमण करने वाला मन। सारी वृत्तियां ,रिक्तियां, भूख ,प्यास, तृप्ति, तृष्णा मन-पक्षी के पास। आत्माराम तो अनिच्छु जैवसेवा निमग्न। तभी तो जीवात्मा कृष्ण ने जीव द्रोपदी की कड़ाही में बचे प्राण के एक ग्रास को खा लिया तो मन-दुर्वासा लालसा मुक्त हो आत्मा की शाख पर आ बैठा। यही मन का आत्ममन होना विहंगम योग का उपवास है। राजयोग में चिरानंद ही उपवास और उपासना दोनो है। 

 (अपनी पुस्तक 'समग्र योग सिद्धांत एवं होम्योपैथिक दृष्टिकोण' से) डॉ एम डी सिंह


डूब गए सब घर - रचना डाॅ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

डूब गए सब घर

नदी न जाने किस नाव से
घूमने आई शहर
घाट गली चौराहे डूबे
डूब गए सब घर

सड़कें डूबीं
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे डूबे
जो भी मिला सामने सारे डूबे
पुल के नीचे पुल के ऊपर
घूमती रही नदी इधर-उधर
डूब गए सब घर

झोपड़ी डूबी
सब्जी वाले की टोकरी डूबी
मछली वाले की पोखरी डूबी
मंत्री जी का बंगला डूबा
धनी डूबा कंगला डूबा
पहुंच कचहरी नदी ने पीछे मुड़कर
नाविक से पूछा संसद है किधर
डूब गए सब घर

चप्पू ठिठके नाव रुकी
नाविक उतर गिरता पड़ता भागा
खड़ी सामने रास्ता रोक
कमर भर पानी में
स्वरपकड़-यंत्र हाथ में लिए
लड़की को देख चौंक पड़ी नदी
'मैं नंबर एक खबरी चैनल की हूं रिपोर्टर
पूछ रही हूं तुमसे यमुना!
यह है किसान देश की राजधानी दिल्ली
आकर यहां उड़ा रही हो इसकी खिल्ली
लगा नहीं क्या तुमको डर------'
डूब गए सब घर

डाॅ एम डी सिंह


शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

वर्षों बाद गाँव में लौटा देखा, बहुत हुआ बदलाव सहमा-सहमा कदम बढ़ाता बदला बदला है हर ठाँव- श्री कामेश्वर द्विवेदी ग़ाज़ीपुर

वर्षों बाद गाँव में लौटा
देखा, बहुत हुआ बदलाव
सहमा-सहमा कदम बढ़ाता
बदला बदला है हर ठाँव

सूख गया सुमनों का उपवन
गाँव, बगीचे बिन सूना है
नहीं सुनाई देता कलरव
चिड़ियों का,अम्बर सूना है

नहीं दिखाई देते छप्पर
लिपे पुते घर भी गायब हैं
बँधे नाद पर चारा खाते
गाय दूधारू,बैल न अब हैं

जिसकी छाया का सुख था वह
नीम द्वार पर आज नहीं है
माँ अर्चन पूजन करती थी
तुलसी का वह गाछ नहीं है

मुख्य द्वार पर श्वान विराजे
जिसको शैम्पू से नहलाकर
सेवा करते, रोज सबेरे
नियमित हैं लाते टहलाकर

पर घर में बूढ़ी माता औ'
बूढ़े बाप निहार रहे हैं।
कातर नयनों से अपने
चुपके से आँसू ढार रहे हैं।

पर बेटे को कहाँ फिकर है
व्यर्थ समझकर ध्यान न देता
रत्ती भर सम्मान न देता
कहाँ गया जो बचपन में था
मेरा आज सलोना गाँव
बदला-बदला है हर ठाँव।

माताओं बहनों के सर पर
साड़ी का था आँचल होता
नव बधुएँ होती थीं घर में
लज्जा ही आभूषण होता

आज हुआ क्या चले गये सब
मनुज हृदय के उत्तम भाव
आँगन में दीवार दीखती
भाई-भाई में बिखराव

सुनने को अब कहीं न मिलती
बोली में जो रही मिठास
भीतर तो कुछ और भरा है
केवल अधरों पर है हास

छूना पाँव बड़ों का अब तो
लगती है लज्जा की बात
बाय-बाय टाटा की बोली
करती है उर में आघात

मिलन और विदा के पल में
करते थे सप्रेम प्रणाम
अब गुड मॉर्निंग औ गुड नाइट
बोल चला लेते हैं काम

'बाबू' बदल गया डैडी में
'माई' मम्मी में बदला है
पूरब की पावन धरती पर
पश्चिम की यह गजब बला है

पहले मिलते जुलते थे सब
आपस में अभिवादन होता
बैठे संग सुख दुख बतियाते
रामायण का वाचन होता

अब तो मोबाइल के चलते
आपस का संवाद घटा है
अपने घर की खबर नहीं है
भाड़ में जाये गाँव गिरावँ
बदला-बदला है हर ठाँव।

शहरों का तो कहना ही क्या
वहाँ रही मानवता हार
वही शहर की हवा गाँव में
आयी,कर गई बंटाधार

सोलह थे संस्कार हमारे
अब तो सभी निरर्थक लगते
कहा गया है देव,अतिथि को
पर वे जैसे अन्तक लगते

मात-पिता बेकार हो गए
व्याह हुआ पत्नी जब आई
भूल गया व्यवहार सभी
बेमतलब के अब चाचा भाई

हवा विषैली धीरे-धीरे
विषमय सब कुछ कर डाली है
प्रतिपल साँसें घुटती जातीं
नहीं कहीं पर हरियाली है

उच्च शिखर से गिर करके तो
गहन गर्त में जाना ही है
खेद यही पीढ़ी दर पीढ़ी
रोना औ' पछताना ही है

टूट गईं आशाएँ सब
नासूर बन गया उर का घाव
दृष्टि जहाँ तक भी जाती है
बदला-बदला है हर ठाँव।





बुधवार, 12 जुलाई 2023

पुण्यतिथि विशेष (डॉ पी एन सिंह) - श्री माधव कृष्ण ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

(१)
वह रंगरेज था
लोग कहते हैं उसकी होद में केवल लाल रंग था
यह रक्तवर्णी रोग था या शौक
नहीं कह सकता
पर गांधी की फुहारों से चटख लाल हल्का हो गया
उसे इंद्रधनुष दिखा
उसने महसूस किया पहली बार
रंगीन दुनियाँ और भी खूबसूरत है.

(२)
वे एक जोड़ी आँखें
निरीह थीं
अस्पष्ट थीं
चीखने लगी थीं आखिरी समय
लोकतंत्र समाजवाद
उसने बाईं आँख से परिवर्तन देखा
और दाहिनी आँख से परम्परा
वह बीच में आ चुका था
लोग बैठते थे
या तो उसके दायीं तरफ
या बाईं तरफ
वह सुनता था
कुछ कहता था
अस्पष्ट था
इसलिए सबने अपने मतलब लिए
मैं केवल यही सुन पाया कि
मैं काना था, एकाक्ष
‘मैं अब काना नहीं!’

(३)
देह होकर भी देह का न होना
देह में होकर देह से परे होना
उसे देखकर पुरखे याद आते थे
जो कहते थे
देह नश्वर है
आत्मा अमर है
वह देह से अलग हो चुका था
उसकी आत्मा थी
बुद्धि
विमर्श
पुस्तकें.
देह के लिए निर्भर रह सकते हैं दूसरों पर
उसे बुद्धि अपनी ही चाहिए थी
करवट तुम बदल सकते हो
बुद्धि की करवट केवल मैं बदलूंगा
इन्हें धीरे-धीरे रिसते देख
उसने आँखें मूँद लीं
वह चला गया
पुनरागमन के लिए इन्हीं किताबों के बीच.

- श्री माधव कृष्ण
ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश


काम कौनो अक़ील करत नईखे फूल आवे झरे फरत नईखे - मंजीत कुमार मनचला सेमरा ग़ाज़ीपुर

1 भोजपुरी ग़ज़ल

काम कौनो अक़ील करत नईखे
फूल आवे झरे फरत नईखे

तीर बन्दूक जेकरा हाथे बा
देवी देवतों ले उ डरत नईखे

भाव के तेल का सूखा गईल
नेह दियना तनिक बरत नईखे

घाव हरियर होखे ला दिन पर दिन
पीर कौनो ग़ज़ल हरत नईखे

रउआ आइला मनचला सुन ली
गोड़ भूईआ ले अब परत नईखे

काम कौनो अक़ील करत नईखे
फूल आवे झरे फरत नईखे

2- हिंदी ग़ज़ल

मेरे दिल में रहो मेरी अलग पहचान बन जाओ-
मैं तेरी जान बन जाऊं, तू मेरी जान बन जाओ।

न तन्हाई न गम हो, न मायूसी के वो लम्हें
मैं तेरी सुबह बन जाऊ, तू मेरी शाम बन जाओ

तेरी यादों का पैमाना पीयू घर में ही रह कर
मेरे जलते हुए होठों के खातिर तुम जाम बन जाओ

सभी बेटो को इंजीनियर डी एम सी एम बनाते है
मगर कोई नही कहता तुम इंसान बन जाओ

तेरी मुस्कान पे मरता कोई मनचला हरगिज़
मैं मुश्किल हु तूम मेरे लिए आसान बन जाओ।


मेरे दिल में रहो मेरी अलग पहचान बन जाओ-
मैं तेरी जान बन जाऊं, तू मेरी जान बन जाओ।




गाजीपुर की आदिवासी महिला देवधनिया की प्रेरणादायक कहानी- लेखक संजीव गुप्ता

इस तस्वीर में मेरे मित्र अरुण राय जी के पीछे आदिवासी महिला देवधनिया व उसकी बेटी खुशबू है।देवधनिया कि कहानी इतनी प्रेरक है कि यह पोस्ट लिखनी पड़ी।देवधनिया मूलतः रांची की रहने वाली है और कम उम्र में माता पिता विहीन हो जाने से वह बस्ती के लोगों के साथ 10, साल की उम्र में भट्ठा मजदूर बन कर गाज़ीपुर आयी।यहां मजदूरी करते करते बड़ी हुई और पास के गावँ के भट्ठा ट्रेक्टर ड्राइवर से शादी कर ली व मठिया गावँ में उसके घर रहने लगी।दुर्भाग्य से उसका पति मर गया और परिवार वालों ने देवधनिया को भगाने के लिए सभी जतन किये।लेकिन एक बेटी व एक बेटे की मां देवधनिया ने असीम धैर्य से इस परिस्तिथि का सामना किया और मजदूरी कर अपना व बच्चों का पेट पालती रही।सबसे बड़ी बात की उसने अपने बच्चों को पढ़ाने का सपना देखा और कुछ भी करके उनकी पढ़ाई जारी रखी।वह मेरे कार्यकर्ता प्रेम वनवासी के साथ मेरे पास आई कि बेटे को उत्थान स्थित अवधबिहारीजी छात्रावास में रख लें।चुकी बच्चा बहुत छोटा है इसलिए मैंने एक साल ओर इंतजार के लिए कहा है।इस बीच मैंने बेटी खुशबू का एडमिशन अरुण राय जी के सहयोग से कस्तूरबा बालिका छात्रावास में आज करा दिया।सरकार द्वारा चलाया जा रहा कस्तूरबा बालिका आवासीय विद्यालय गरीब परिवार की बच्चीयो के लिए वरदान है।यहां भोजन से लेकर शिक्षा आदि की उत्तम व्यवस्था है।टीचर भी बहुत सहयोगी हैं।मैने कई वनवासी बालिकाओं के यहां एडमिशन कराया है।अब देवधनिया बहुत खुश है कि उसके दोनों बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर लेंगे।देवधनिया इतनी उत्साही व सकारात्मक है कि उसे देखकर कोई नही कह सकता कि वह इतना संघर्ष कर रही है।उसके मन मे किसी के प्रति शिकायत नही जबकि पति के परिवार वाले उसे नाना कष्ट देते रहते हैं।सचमुच परिश्रमी, ईमानदार, धैर्यवान, सन्तोषी व सकारात्मक सोच वालों के लिए ईश्वर सदैव रास्ता बना देते हैं।गरीब लोगों में शिक्षा की यह लग्न देखकर पूरा यकीन होता है कि अब भारत को विकसित देश बनने से कोई नही रोक सकता।


सोमवार, 10 जुलाई 2023

दादा साहेब फाल्के मेमोरियल फाउंडेशन मुम्बई और Gaarun Talkies के सौजन्य से कार्यक्रम ग़ाज़ीपुर के हुनज़रबाज़ का सफल आयोजन

दादा साहेब फाल्के मेमोरियल फाउंडेशन मुम्बई और Gaarun Talkies के सौजन्य से कार्यक्रम ग़ाज़ीपुर के हुनज़रबाज़ का सफल आयोजन के लिए पूरी टीम को बहुत धन्यवाद, ख़ास कर हमारे स्पान्सर, टीम के सदस्य और तमाम लोग जिन्होंने अपनी कोशिश और मेहनत से इस कार्यक्रम को सफल बनाया। इसके लिए दिल से सभी उपस्थित अतिथियों का बहुत धन्यवाद जिनके वजह से हम लोग ये कार्यक्रम कराने में सफल हो पाये। हमारे उन प्रतिभागियों का भी विशेष आभार जिन्होंने अपनी प्रतिभागिता से इस कार्यक्रम को इतना शानदार बना दिया। 
अब जानेंगे विजेताओं के नाम...... पर जो लोग चूक गये है उनके लिए आगे के लिए शुभकामनाएँ, प्रयास करते रहे सफलता ज़रूर मिलेगी !

अब कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ और रूपरेखा
कार्यक्रम का शुभआरंभ - दीप प्रज्वलन श्री विवेक कुमार सिंह “शम्मी” (समाजसेवी)
गणेश वंदना - श्री लव- श्री कुश द्वारा
स्वागत गीत - श्रीमती माया नायर

कार्यक्रम का परिणाम
1- मोस्ट पॉपुलर फेस-आराध्या धानुका
2- मोस्ट कमेंट - सृष्टि श्रीवास्तव
3- मोस्ट लाइक - आराध्या धानुका

जूनियर विजेता 
1- आराध्या धानुका   डांस
2- अक्षरा शाक्य       कविता
3- नंदीश कुमार        गायन

सीनियर विजेता
1- प्रिया सिंह               डांस
2- विश्वजीत पटेल       कविता
3- मो० सैफ़ अली        गायन

इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहे, अपने क्षेत्र के महारथी हमारे निर्णायक मण्डल में मौजूद डॉ. विमला मिश्रा मैम, डॉ. निरंजन सर, डॉ. सर्वेश सर, प्रादुम जयसवाल... जिन्होंने अपनी निर्णय देने के साथ ही सभी बच्चों को आगे बढ़ाने हेतु उत्साहित भी किया।

स्पान्सर
1   श्री गौरव केजरीवाल    (टूंज लालदरवाजा)
2  श्री रविशेखर विश्वकर्मा  (समाजसेवी एवं सपा नेता)
3  श्री मनोज पांडेय            (पूर्व क्रिकेटर)
4  श्रीमती शौर्या कुमारी      ( शौर्या वेलनेस)
5  राजा भाई                     (ग्लेशियर वाटर)
6  श्री अंकित राय।             (ठेकेदार)
7  श्री रजनीश मिश्रा          (समाजसेवी)
8  श्री अम्बरीश सिंह           (स्पाइसी बाईट रेस्टोरेंट)
9  इं० इफ़्तिख़ार आलम      (ठेकेदार/नक़्शा डिज़ाइनर)
10 अभिषेक केसरी            (डॉ लाल पैथ लैब)

विशेष सहयोग
श्री मयंक कुमार सिंह ( प्रांतीय सह० सचिव- उ0प्र0 अपराध निरोधक समिति लखनऊ), पूजा श्रीवास्तव ( प्रिंसिपल बैजनाथ इंटर कॉलेज), जयती जैन ( मिस नार्थ इण्डियन), श्रीमति तृप्ति श्रीवास्तव (तृप्ति क्लासेज़), श्री अंकित राय, श्री रजनीश मिश्रा, मो० अरशद, सौरभ श्रीवास्तव (बजरंग मेडिकल) एवं बैजनाथ इंटर कॉलेज की बच्चियाँ!
संचालन संजीव अरुण कुमार, उरूज फात्मा

पुरस्कार वितरण
डॉ. सविता भारद्वाज प्राचार्य (राजकीय महिला महाविद्यालय गाज़ीपुर), श्री ए० के० राय  संपादक (आज दैनिक समाचार पत्र), श्री प्रमोद कुमार, डॉ. संगीता मौर्य, श्रीमती माया नायर 

आप सबका आभार पूरी टीम की तरफ़ से 
टीम गारुण टॉकीज अंत में कुछ झलकियाँ