प्रारूप
नाम : शिवांश त्रिपाठी
जन्मतिथि : 12/07/1994
माता का नाम : शीला तिवारी
पिता का नाम : जय चंद तिवारी
जन्म स्थान : गाजीपुर
शैक्षिक योग्यता : स्नातकोत्तर ( अंग्रेजी )
संप्रति (पेशा) : शिक्षक एवम् समाज सेवक
विधाएं : कविता
साहित्यिक गतिविधियां : साहित्य अध्ययन में रुचि लेकिन फेसबुक और कुछ अन्य न्यूजपेपर्स के अलावा कुछ लिखा नहीं।।
प्रकाशित कृतियां : कुछ अखबारों में प्रकाशित हुई हैं कविताएं लेकिन किसी प्रकाशन के माध्यम से नहीं।।
पुरस्कार सम्मान : कोरोना योद्धा सम्मान ( ID Memorial College द्वारा प्राप्त ) ( साहित्य में क्षेत्र में अब तक कुछ भी नहीं )
संपर्क सूत्र : 9451645951
विशेष परिचय : अपने जनपद गाजीपुर की छोटी बड़ी चीजों को मुख्य पटल पर लाने हेतु गाजीपुर यूपी 61 फेसबुक पेज की स्थापना जो आज एक संस्था गाजीपुर यूपी 61 ट्रस्ट के रूप में अपने उद्देश्यों को पूरा कर रही है।।
(नोट-तीन अच्छी किन्तु छोटी रचनाएं भी साथ में होना चाहिए।)
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यही तो सत्य है
निकलना शुरू हो गए थें वो,
जो कभी अपने हुआ करते थें । जल्दी थी आज उन्हें सब कुछ राख कर देने की, जो कभी मेरे लिए समय लेकर आते थें।
पर यही तो सत्य है न जीवन का, सबको तय करनी है ये यात्रा,
अपनो के कंधे पर, जैसे मैं आया, चिता में जलते हुए भी आत्मा को दुख हो रहा था,
अपनों को बदलते देखते हुए,
पर एकाएक अपना दुख खत्म हुआ, जब दूसरी ओर देखा,
आया एक मनुष्य था,
लेकिन बिना कंधों के,
फिर हुआ ये एहसास कि खुशनसीब था मैं,
जो मिला मुझे अपनो का कंधा, खुश रहें मेरे अपने, मेरे बिना,
न हो कमी कभी इनको किसी भी चीज की, आशीर्वाद देते हुए, चल चला दूसरी दुनिया में, अपने किये कर्मों का हिसाब देने ।।
© शिवांश त्रिपाठी
काव्य : सतुआन पर विशेष
मकई जौ अउरी चना के सतुआ, हम लेले आइब पिसवा के, तू दिहा बस चटनी पीस, बस अलग अलग न करिहा हिस्सवा के ||
लहसुन, टिकोरा और मरीचा, और कर दिहा ओम्मे नून के ऐड, निम्बू भी हम लेले आइब, महंग केतनो होखे हम करब पेड ।।
खाइल जायी संगे बइठ के,
दुनो जाने एक्के थरिया में, अ तीख लागी त गरिया लिहा, मिठास लगे तोहरे गरिया में ।।
अब गर्मी भर जब जब लू चली, हमरा खातिर सतुआ तू घोरिहा, तनी करिया नमक, मरीचा, निम्बू के संगे,पियाज भी काट के डलिहा ।।
अ तू ही त बाडू हमार जिंदगी के चटनी, तोहरे बिन कइसे होई हमार सतुआन हो, अ बिना तोहके हाथ से खियउले, हम कइसे करब नेवान हो।
© शिवांश त्रिपाठी
क्या ये भी तुझको याद नहीं है,
कुछ भी तेरे बाद नहीं हैं...
मैं खंडहर हो जाऊंगा तेरे बिन,
तुझ बिन मेरी बुनियाद नहीं है...
तू मेरी है ये तो हक है मेरा,
ये मेरी कोई फरियाद नहीं है...
जितना प्रेम है मुझको तुमसे,
किसी भाषा में इसका अनुवाद नहीं है...
क्या ये भी तुझको याद नहीं है,
कुछ भी तेरे बाद नहीं है...
© शिवांश त्रिपाठी
अपने गाजीपुर के लिए एक चिट्ठी
ए गाजीपुर ! तुम बहुत याद आते हो बे। एक शौक पाल लिए थें बाहर का सपना देखने का लेकिन अब एहसास होता है कि बेटा उ सपना नहीं, ब्लंडर वाली गलती थी हमारी।
साला बचपन से लेकर 18 बरस की ज़िंदगी काटें हैं तुम्हारे साथ। उतना ही जितना अम्मा और बाउजी के साथ। फिर पढ़ाई और बाहरी दुनिया के शौक में छोड़ आएं तुमको।
पता है इहवाँ दोस्त यार बहुत हैं पर लँका और सिचाईं विभाग की तरह सड़क पर चाय पीते हुए गप्पे मारने का टाइम नहीं है इनके पास। चमचमाती सड़कों पर जब मुझसे तेज़ दौड़ती हुई लखटकिया दुपहिया निकलती है तो अनायास निकल जाता है कि बेटा कब्बो कासिमाबाद या रेवतीपुर वाली सड़क पर आओ तो दिखाते हैं बाप कौन।
इन्हवा प्यार मोहब्बत में भी मज़ा नहीं आता है क्योंकि इहवाँ का प्यार महंगा है बहुत। कहे के मतलब कि दोस्त की गाड़ी पर बैठकर गली के राउंड लगा लेने से लड़की खुश नहीं होती बल्कि किसी महंगे कैफ़े में अपॉइंटमेंट लेना पड़ता है न।
इहवाँ सड़क पर गिर जाओ त कउनो उठाने नहीं आता है जबकि तुम्हारे यहाँ तो ब्लेड लगने पर भी जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में स्पिरिट लगवाने पहुंच जाते थें।
इहवाँ सब लोग ज़िंदगी को तेजी से गुज़ार रहे हैं पर सुकून तो तुम्हारे यहाँ ही है बे। खैर तुम अपना सुकून बनाये रखना। हम आएंगे वापस लेकिन डर लगता है कि कहीं फुल्लनपुर क्रासिंग से रेल गुजरते ही आंखे न भर जाए। पूरा शहर न दिखने लगता है वहाँ से।
बहुत कुछ बतियाना है बे तुमसे पर साला इहवाँ टाइम किसके पास है। चलो अब बस करते हैं। भूल मत जाना तुम शिवांश को। जल्दी फिर चिट्ठी लिखता हूं तुमको।
© शिवांश त्रिपाठी
हे सती क्या तुम्हारे वियोग में शिव को भी अपने प्राण दे देने चाहिए,
कूद जाना चाहिए उसी यज्ञ कुंड में और तुम्हे प्रेम का प्रमाण देना चाहिए।।
शिव भी शव सा हो गया है, कैसी ये विचित्र माया है,
क्या होगा कौन जाने, ग्रह नक्षत्र सहित पूरा ब्रम्हांड घबराया है।।
इस वियोग की अग्नि को पूरा विश्व है झेल रहा,
नीलकंठ भी नीला पड़ जाए, ये विष अपना खेल है खेल रहा।।
हर तो मैं हूं पर तुम ही हर लो आज ये सारा कष्ट मेरा,
क्यों कर दिया यूँ अकेला जब मैं था सिर्फ तेरा।।
चलो भस्म रमा कर बनूंगा औघड़, फिर बैठूंगा अब समाधि में,
जटा की गंगा गर्म हो चुकीं, चन्द्र तप रहा इस विरह की व्याधि में।।
इंतज़ार तुम्हारा फिर रहेगा मेरे मन में बैठे उस जीव को,
आकर फिर अपना लो तुम अपने इस औघड़ शिव को।।
नमः पार्वती पतये हर हर महादेव ❣️❣️
© शिवांश त्रिपाठी
उनकी आंखों में आज कुछ नई बात थी,
वो खुद थीं ज़हर या ज़हर की कोई काट थीं,
आज फिर हमारी उनसे मुलाकात थी।
बादल और बिजली का कहर भी था,
हवाएं ठंडी और शाम का पहर भी था,
मेरी जान थीं वो या खुदा की करामात थीं,
आज फिर हमारी उनसे मुलाकात थी।
लहरें भी अस्सी पर इठला रही थीं,
वो चाय पीकर मन को बहला रही थीं,
भीड़ में भी था सन्नाटा जैसे कोई रात थी,
आज फिर हमारी उनसे मुलाकात थी,
उनकी आंखों में आज कुछ नई बात थी।।
© शिवांश त्रिपाठी