बुधवार, 19 जुलाई 2023

गाजीपुर के युवा कवि राजेश कुमार पाल जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनकी रचनाएं

प्रारूप
नाम : राजेश कुमार पाल
जन्मतिथि : 19 Nov 1986
माता का नाम : स्वo बासमती पाल
पिता का नाम : श्री शिवमूरत पाल (वरिष्ठ अधिवक्ता)
जन्म स्थान : मुहल्ला सकलेनाबाद, जिo गाजीपुर
शैक्षिक योग्यता : एलएलबी, स्नातक (अंग्रेज़ी साहित्य एवं मध्यक़ालीन इतिहास) पी. जी. डिप्लोमा इन कंप्यूटर्स
संप्रति (पेशा) : HR Coordinators & Labour Law Consult (Prop. Enter HR Solutions) in Mumbai
विधाएं : कविता और शायरी
साहित्यिक गतिविधियां : अभी तक नहीं
प्रकाशित कृतियां : अभी तक नहीं
पुरस्कार सम्मान : अभी तक नहीं
संपर्क सूत्र : 9224 7557 92
विशेष परिचय : ग़ाज़ीपुर परंपरागत क्रिकेट में 1998 से लेकर 2010 तक काफ़ी सक्रिय रहा और एक तेज़ गेंदबाज़ के रूप में प्रभावशाली रहा और अध्ययन के साथ साथ साहित्य में रुचि

कृतियाँ

जीवन की अभिलाषा में…

जीवन की अभिलाषा में,
एक नयी ज्योति की आशा में;
हम सबको दिया दिखा डाला,
इस जीवन की परिभाषा ने;

कुछ तो दर्द हुआ होगा,
जब कलियाँ अंकुलायी होंगी;
एक पीर पराई क्या जाने,
सदियाँ व्यकुलायी होंगी;

तेरे कर्म तेरे अपने होंगे,
हर मर्म तेरे अपने होंगे;
आँखों में जो स्वप्न जगा,
साकार सभी सपने होंगे,

एक लक्ष्य लिया है तुमने जो
अपने घर के इक कोने से;
निखर रही हैं आवाज़ें,
कुछ रखा नहीं अब सोने में;

धरा पड़ी है मौन खड़ी,
कुछ हुआ न होगा रोने से,
उर्मिला की व्यथित वेदना,
समय है सीता होने में…

गुरु द्रोण दोन में बड़े हुए,
भीष्म पितामह सैय्या पे;
माँ कुंती कर्ण को दे न सकी,
एक जीवन कटी है नैया पे,

हम खड़े हैं सम्मुख जिनके भी,
ये नहीं हमारा अभिनय है;
तुम अपनी शरण में ले लो माँ बस,
यही हमारा सविनय है।


सोचो हिंद के हिंदुस्तानी…

सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
नागपंचमी भूल गए हैं, वैलेंटाइन आबाद है;
सभ्य सनातन को जीने से अब कितना कतराते हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद हैं

नहीं पता है लोहड़ी हमको, गोधना का अब पता नहीं;
छोड़ दिए सब संस्कृति अपनी, खिचड़ी हमको याद नहीं,
गुड मोर्निंग का पता है सबको, सूर्योदय मेरा गया कहाँ,
हाय, हाय करते हाल पूछते, बाय बाय को बेताब हैं...
सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद हैं

दाल-भात छूटा है हमसे बर्गर, चाऊमिन खाते हैं,
ताल तलइया छूटी हमसे, डिस्को- डाँसिंग जाते हैं;
साँझ नहरिया ढूँढ रही है, अपने बेर-टिकोरा को,
हम टोकन लेकर खड़े हुये हैं नम्बर सबको याद है;
सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद है;

शेष बची जो दुनियादारी, कहाँ निभा अब पाते हैं,
नानी टूक टुक राह निहारे, ननिहाल कहाँ अब जाते हैं,
भोर हुआ मैं जगा नहीं, उजियारे का पता नहीं,
और काल कोठरी बंद पड़ी है, नींद मेरी आबाद है,
सोचो हिंद के हिंदुस्तानी हम कितने आज़ाद हैं,
वेस्टर्न वेस्टर्न करते करते हम कितने बर्बाद है;


शायरी
चुपचाप चले गए होते तो क्या हो जाता,
न तुम्हारा कुछ बिगड़ता ना मेरा बन जाता;
तेरे शहर का पंछी जब खुले आसमाँ में क़ैद है,
तो उनका क्या होगा?? जिन्हें उड़ना नहीं आता....!

एक आंसू को मैंने अभी टपकते हुए देखा,
दुखों के सैलाब को उमड़ते हुए देखा,
इक अश्क़ था पलकों पर चमकते हुए मोती सा;
मत जा तू मुझे छोड़कर कहते हुए देखा!

-
Rajesh Kumar Pal


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