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आसान नहीं सावरकर होना - श्री माधव कृष्ण ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

आसान नहीं सावरकर होना - श्री माधव कृष्ण ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश


तुम कहते हो
मैं सावरकर नहीं हूँ
यह सही है

तुम सावरकर हो भी नहीं सकते.
इसके लिए वीरता प्रथम चरण है और आत्मोत्सर्ग अंतिम.
नौ वर्ष की वय में हैजे से माँ की मृत्यु
सोलह वर्ष की वय में प्लेग से पिता की मृत्यु
कांटेदार बचपन में अपनी जड़ों को पकड़े रहना सावरकर है
मातृभूमि को माँ समझकर जकड़े रहना सावरकर है.

सोने की चम्मच लेकर
विदेशों में छुट्टियां मनाने वाले स्वातंत्र्यवीर नहीं होते
जिन्होंने अपने दल को ही सामन्तवाद से स्वतंत्र नहीं किया
जहाँ परिवार ही राष्ट्र है
और परिवार के प्रति श्रद्धा ही राष्ट्रभक्ति.
अंधे धृतराष्ट्र की गोद में उन्मादी कौरव पनपते हैं
वहाँ सावरकर जन्म नहीं लेते.
वहां जन्म लेती है सत्ता-लोलुप दुर्योधनी मानसिकता
जिसके लिए किसी और का सत्ता में होना राष्ट्रद्रोह है.

एक सावरकर 'द इण्डियन वॉर ऑफ़ इण्डिपेण्डेंस : 1857' लिखता है
और चीख चीखकर संसार को बता देता है
कि हम बेचैन हैं आज़ादी के लिए
हमारे पुरखों ने जान दी थी १८५७ में,
और वह ग़दर नहीं था
वह आज़ादी की पहली लड़ाई थी...

ऐसा सच बोलने के लिए साहस चाहिए
वह साहस तुम्हारे पास नहीं था
जब कश्मीर के पंडितों का नरसंहार होता रहा
तुम इसे सिद्ध करते रहे - एक छिटपुट घटना
और आज भी कर रहे.

यह साहस 'गाँधी' उपनाम की पूंजी नहीं
यह साहस गांधी महात्मा की पूंजी है, गांधी परिवार की नहीं...

"द हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स" लिखने के लिए
एक मनन चाहिए और अध्ययन
जो पुस्तकालयों में नहीं मिलता
अध्येता नहीं मिलते, पुस्तकें खुली हैं खुले आसमान में

एम॰एस॰ मोरिया जहाज के सीवर होल से आज़ादी की राह बना लेना सबके बूते की बात नहीं
असीम समुद्र की छाती को चीरना
सूर्यास्त-विहीन सशक्त राज्य को लांघकर
मनुष्य के असीम सामर्थ्य और सम्प्रभुता को सिद्ध करना हनुमत्ता है
लंका में रहकर लंका की जड़ें खोदना सावरकर है...
दो आजन्म कारावास मिल जाना ही प्रमाण है उस वीरता का
जिसे न देखने के लिए तुम्हारे चश्मों की प्रोग्रामिंग बदल दी गयी है
और तुम नहीं जानते
तुम बहुत छोटे हो उस सूर्य को उंगली दिखाने के लिए
जिसे मौलिक गांधी ने भी वीर कहा था.

सेलुलर जेल में कोल्हू का बैल बनकर नारियल से तेल निकालना
कैसे समझ सकता है एक आरामतलब युवराज
जिसके जीवन की कुल जमापूंजी एक उपनाम है
तुम्हें देखकर ही अब समझ पाता हूँ
कि नाम में क्या रखा है?

तिलक और पटेल की सलाह पर देशसेवा के लिए क्षमा मांगने में
और सरकारी अध्यादेश की कापी फाड़ने पर क्षमा मांगने,
चौकीदार चोर है कह देना और फिर क्षमा मांगने,
एक रक्षा सौदे को घोटाला कहने पर क्षमा मांगने, व
न्यायालय के प्रहार से बचने में अंतर है.

तुमने ठीक कहा
तुम सावरकर नहीं हो
क्योंकि सावरकर मनुष्यता की असीम समर्थ सम्भावनाओं के बीज का उपनाम है.

-माधव कृष्ण
२७.०३.२३
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