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भारतीय लोकतंत्र के महान नेता स्वर्गीय रघुवंश बाबू को विनम्र श्रद्धांजलि- सम्मी सिंह ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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सोमवार, 14 सितंबर 2020

भारतीय लोकतंत्र के महान नेता स्वर्गीय रघुवंश बाबू को विनम्र श्रद्धांजलि- सम्मी सिंह

कल रघुवंश बाबू चले गए औऱ छोड़ गए वो स्मृतियां जिसको कि हर गांधीवादी समाजवादी सहेजना चाहेगा। वह गंगा औऱ गंडक के कछार पर स्थित उसी वैशाली से आते थे जहां दुनिया का शुरुआती लोकतंत्र पुष्पित औऱ पल्लवित हुआ था ,जो वज्जि महासंघ की राजधानी थी औऱ दुनिया मे अहिंसा के अगुणित बीज बोने वाले जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर महाबीर स्वामी की जन्मस्थली भी थी। उसी वैशाली में नगरवधू आम्रपाली ने सम्पूर्ण एशिया को ज्ञानवान बनाने वाले बुद्ध को लैंगिक भेदभाव करने पर खुलेआम चुनौती दी थी औऱ दुनिया के इतिहास में यह पहला औऱ शायद अंतिम उदाहरण है जब एक नगरवधू के सामने एक सन्यासी ने नैतिक आधार पर घुटने टेके थे औऱ वह नगरवधू अपने को सवाल- जवाब से ऊपर उठाकर स्वयं को ईश्वर प्रदत्त नारी गुणधर्म के बल पर बुद्ध के शरण मे समर्पित दुनिया की पहली बौद्ध भिक्षुणी बन गयी थी।

इतिहास में वैशाली की अपनी महिमा है लेकिन आजादी के बाद बहुत कम ऐसे मौके आये जब किसी नेता के कारण किसी स्थान की महिमा उद्घाटित हुई हो लेकिन उन्ही कम उदाहरण में से रघुवंश प्रसाद एक ऐसे उदाहरण है जिन्होंने वैशाली को विश्व के फलक पर स्थापित करने का महान कार्य किया । वैशाली की धरती इस क्षण गर्व औऱ दुख दोनो महसूस कर रही होगी। गर्व इस बात पर कि ईसा से छ शताब्दी वर्ष पूर्व जनतंत्र की बुनियाद रखने वाले वैशाली ने लगभग ढाई हजार साल बाद एक ऐसा सपूत को जना था जो जम्हूरियत का न केवल रक्षक था बल्कि सम्पूर्ण जम्हूरी समाज के जीवन औऱ गरिमा को सर्वोच्च स्थान दिलाने में अपने जीवन को ही खपा दिया और दुःख इस बात पर की कि जीवन के अंतिम समय मे वैशाली के जनमत ने उस भदेस रघुवंश बाबू के खिलाफ अपना फैसला दिया जिस रघुवंश बाबू ने एक ज्ञानवान साधक की तरह राजनीति की काल कोठरी से न केवल बेदाग निकले बल्कि राजनीति के लक्ष्यों को पूरे देश के गाव, गरीब औऱ किसान के सवालो पर संसद से सड़क तक केंद्रित भी किये।

गणित के इस प्रोफेसर ने आरक्षण के बाद हिंदुस्तान की दूसरी सबसे बड़ी क्रांति का आधार बनी मनरेगा को न केवल सफलतापूर्वक लागू किया बल्कि उंसको हिंदुस्तान के बेसहारा गरीब -गुरबा का सहारा और ताकत भी बनाया।
आपातकाल की आग से निकले और जेपी तथा कर्पूरी ठाकुर की पाठशाला में पके इस महान समाजवादी नेता में गांधी औऱ लोहिया की तरह अपनी मिट्टी की समझ औऱ अंतिम व्यक्ति को गौरवपूर्ण जीवन उपलब्ध कराने की वह आग थी जिसकी ऊष्मा में वह अंतिम समय तक स्वयं को जलाते हुए एक ऐसे संसार को रचने में मशगूल रहे जो जीवन औऱ इतिहास दोनो को गौरव प्रदान करे।

हम स्वयं को सौभाग्यशाली मानते है कि हमे भी दो बार उनको सानिध्य में बैठकर कुछ जानने समझने का मौका मिला और आजीवन यह स्मृति जीवन मे ऊर्जा भरती रहेगी।
भारतीय लोकतंत्र के इस महान नेता को नमन।