बुधवार, 5 दिसंबर 2018

मैं जनम जनम से उसी का हूँ उसे आज तक ये पता नही- चंदन दास

सारे राह कुछ भी कहा नही, कभी उसके घर मैं गया नही
मैं जनम जनम से उसी का हूँ उसे आज तक  ये पता नही
सारे राह.….

ये खुदा की देन अजीब है, है इसी का नाम नसीब है
जिसे तूने चाहा मिल गया जिसे मैंने चाहा मिला नही
सारे राह..…

उसे पाक नजरो से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई लाख फूल करीब हो कभी मैंने उनको छुआ नही
सारे राह..…

इस शहर में कई साल से मेरे कुछ करीबो अजीज है
उन्हें मेरी कोई खबर नही मुझे उनके का कोई पता नही
सारे.....

मैं जनम...

गायक- चन्दन दास




सोमवार, 26 नवंबर 2018

जान भी देते अगर उनका इशारा होता- चंदन दास

उनसे इंकार तो हरगिज़ न गवारा होता
जान भी देते अगर उनका इशारा होता
कौन कहता है कि दिन रात मेरे नाम करो
एक लम्हा तो मेरे साथ  गुजारा होता
जान भी ......
उनसे.........

तू मसीहा है मसीहा मसीहा लेकिन
बात तो जब भी थी दर्द का चारा होता
जान भी ....
उनसे......

एक हसरत है जो पलती है मेरे सीने में
काश इस शहर में तो कोई तो हमारा होता
जान भी.......…

गैर के हाथ से सागर भी न लगा न मुराद
तू अगर ज़हर भी देता तो गवारा होता
जान भी......

Visit- https://youtu.be/Lco4Xy6FoLg
गायक- जनाब चंदन दास


रविवार, 25 नवंबर 2018

महफ़िल में रंग लाएगी बोतल शराब की- चंदन दास

जब से उल्फत तेरी नसीब हुई सारी दुनिया मेरी रक़ीब हुई
ऐसी जन्नत को क्या करूँ लेकर बाद मरने के जो नसीब हुई

महफ़िल में रंग लाएगी बोतल शराब की
नाचेगी और नाचायेगी बोतल शराब की

रुखसत हुए जो घर को तो साकी ने ये कहा
ले जा वो याद आएगी बोतल शराब की
नाचेगी और......

दिल है मरीज़ इश्क का दिल की दवा शराब
हर दर्द को मिटाएगी बोतल शराब की
नाचेगी और नाचायेगी.......

घर मे अकेले बैठके पीने का क्या मजा
महफ़िल में रंग लाएगी बोतल शराब की
नाचेगी और .........

दुनिया को छोड़ छाड़ कर मयखाना आइये
दुनिया नयी बनाएगी बोतल शराब की
महफिल में रंग.....

असलम जमाने वालो ने ठुकरा दिया तो क्या
तुझको गले लगाएगी बोतल शराब की
नाचेगी और.....

गायक- चंदन दास
ग़ज़ल- असलम


शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

देख मालिक एक सावन की कैसा कैसा रूप निराला- लव तिवारी

बचपन का शोर जवानी की उलझन और बुढ़ापे का शांत जमाना
देख मालिक एक सावन की कैसा कैसा रूप निराला

बचपन की एक नाव पुरानी उसपर हम सब खेले थे
और झूलों की रुत सुहानी जिस पर हम सब झूले थे
बाग बगीचे में अदभुत फल का क्या ठिकाना था
 हर बरस सावन की चाह का एक ग़जब जमाना था


यौवन में सावन की कजरी और प्रीतम का प्यार
साजन की राह निहारत सजनी करे सृंगार
सब बगिया बीच झूलो का यह ये अद्भुत त्यौहार
हर बरस सावन की खुशियां मिले हमे हर बार

 बूढ़ा सावन बचपन को ढूढे कैसे अपनी अखियों में
 कैसे बीते दिन सुहाने कुछ पत्ते कुछ कलियों में
बिन साजन सावन है सुना इस कजरी के मातम में
 कैसे कैसे दिन दिखे अब की बरस मोहे सावन में

 रचना - लव तिवारी


सोमवार, 14 मई 2018

ब्राम्हण और जनेऊ- लव तिवारी

#ब्राह्मण_और_जनेऊ
-----------------------------------
पिछले दिनों मैं हनुमान जी के मंदिर में गया था जहाँ पर मैंने एक ब्राह्मण को देखा, जो एक जनेऊ हनुमान जी के लिए ले आये थे | संयोग से मैं उनके ठीक पीछे लाइन में खड़ा था, मेंने सुना वो पुजारी से कह रहे थे कि वह स्वयं का काता (बनाया) हुआ जनेऊ हनुमान जी को पहनाना चाहते हैं, पुजारी ने जनेऊ तो ले लिया पर पहनाया नहीं | जब ब्राह्मण ने पुन: आग्रह किया तो पुजारी बोले यह तो हनुमान जी का श्रृंगार है इसके लिए बड़े पुजारी (महन्थ) जी से अनुमति लेनी होगी, आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें वो आते ही होगें | मैं उन लोगों की बातें गौर से सुन रहा था, जिज्ञासा वश मैं भी महन्थ जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा।

थोड़ी देर बाद जब महन्थ जी आए तो पुजारी ने उस ब्राह्मण के आग्रह के बारे में बताया तो महन्थ जी ने ब्राह्मण की ओर देख कर कहा कि देखिए हनुमान जी ने जनेऊ तो पहले से ही पहना हुआ है और यह फूलमाला तो है नहीं कि एक साथ कई पहना दी जाए | आप चाहें तो यह जनेऊ हनुमान जी को चढ़ाकर प्रसाद रूप में ले लीजिए |
इस पर उस ब्राह्मण ने बड़ी ही विनम्रता से कहा कि मैं देख रहा हूँ कि भगवान ने पहले से ही जनेऊ धारण कर रखा है परन्तु कल रात्रि में चन्द्रग्रहण लगा था और वैदिक नियमानुसार प्रत्येक जनेऊ धारण करने वाले को ग्रहणकाल के उपरांत पुराना बदलकर नया जनेऊ धारण कर लेना चाहिए बस यही सोच कर सुबह सुबह मैं हनुमान जी की सेवा में यह ले आया था प्रभु को यह प्रिय भी बहुत है | हनुमान चालीसा में भी लिखा है कि - "हाथ बज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूज जनेऊ साजे"।

अब महन्थ जी थोड़ी सोचनीय मुद्रा में बोले कि हम लोग बाजार का जनेऊ नहीं लेते हनुमान जी के लिए शुद्ध जनेऊ बनवाते हैं, आपके जनेऊ की क्या शुद्धता है | इस पर वह ब्राह्मण बोले कि प्रथम तो यह कि ये कच्चे सूत से बना है, इसकी लम्बाई 96 चउवा (अंगुल) है, पहले तीन धागे को तकली पर चढ़ाने के बाद तकली की सहायता से नौ धागे तेहरे गये हैं, इस प्रकार 27 धागे का एक त्रिसुत है जो कि पूरा एक ही धागा है कहीं से भी खंडित नहीं है, इसमें प्रवर तथा गोत्रानुसार प्रवर बन्धन है तथा अन्त में ब्रह्मगांठ लगा कर इसे पूर्ण रूप से शुद्ध बनाकर हल्दी से रंगा गया है और यह सब मेंने स्वयं अपने हाथ से गायत्री मंत्र जपते हुए किया है |

ब्राह्मण देव की जनेऊ निर्माण की इस व्याख्या से मैं तो स्तब्ध रह गया मन ही मन उन्हें प्रणाम किया, मेंने देखा कि अब महन्त जी ने उनसे संस्कृत भाषा में कुछ पूछने लगे, उन लोगों का सवाल - जबाब तो मेरे समझ में नहीं आया पर महन्त जी को देख कर लग रहा था कि वे ब्राह्मण के जबाब से पूर्णतया सन्तुष्ट हैं अब वे उन्हें अपने साथ लेकर हनुमान जी के पास पहुँचे जहाँ मन्त्रोच्चारण कर महन्त व अन्य 3 पुजारियों के सहयोग से हनुमान जी को ब्राह्मण देव ने जनेऊ पहनाया तत्पश्चात पुराना जनेऊ उतार कर उन्होंने बहते जल में विसर्जन करने के लिए अपने पास रख लिया |

मंदिर तो मैं अक्सर आता हूँ पर आज की इस घटना ने मन पर गहरी छाप छोड़ दी, मेंने सोचा कि मैं भी तो ब्राह्मण हूं और नियमानुसार मुझे भी जनेऊ बदलना चाहिए, उस ब्राह्मण के पीछे-पीछे मैं भी मंदिर से बाहर आया उन्हें रोककर प्रणाम करने के बाद अपना परिचय दिया और कहा कि मुझे भी एक जोड़ी शुद्ध जनेऊ की आवश्यकता है, तो उन्होंने असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि इस तो वह बस हनुमान जी के लिए ही ले आये थे हां यदि आप चाहें तो मेरे घर कभी भी आ जाइएगा घर पर जनेऊ बनाकर मैं रखता हूँ जो लोग जानते हैं वो आकर ले जाते हैं | मेंने उनसे उनके घर का पता लिया और प्रणाम कर वहां से चला आया।

शाम को उनके घर पहुंचा तो देखा कि वह अपने दरवाजे पर तखत पर बैठे एक व्यक्ति से बात कर रहे हैं , गाड़ी से उतरकर मैं उनके पास पहुंचा मुझे देखते ही वो खड़े हो गए, और मुझसे बैठने का आग्रह किया अभिवादन के बाद मैं बैठ गया, बातों बातों में पता चला कि वह अन्य व्यक्ति भी पास का रहने वाला ब्राह्मण है तथा उनसे जनेऊ लेने आया है | ब्राह्मण अपने घर के अन्दर गए इसी बीच उनकी दो बेटियाँ जो क्रमश: 12 वर्ष व 8 वर्ष की रही होंगी एक के हाथ में एक लोटा पानी तथा दूसरी के हाथ में एक कटोरी में गुड़ तथा दो गिलास था, हम लोगों के सामने गुड़ व पानी रखा गया, मेरे पास बैठे व्यक्ति ने दोनों गिलास में पानी डाला फिर गुड़ का एक टुकड़ा उठा कर खाया और पानी पी लिया तथा गुड़ की कटोरी मेरी ओर खिसका दी, पर मेंने पानी नहीं पिया

इतनी देर में ब्राह्मण अपने घर से बाहर आए और एक जोड़ी जनेऊ उस व्यक्ति को दिए, जो पहले से बैठा था उसने जनेऊ लिया और 21 रुपए ब्राह्मण को देकर चला गया | मैं अभी वहीं रुका रहा इस ब्राह्मण के बारे में और अधिक जानने का कौतुहल मेरे मन में था, उनसे बात-चीत में पता चला कि वह संस्कृत से स्नातक हैं नौकरी मिली नहीं और पूँजी ना होने के कारण कोई व्यवसाय भी नहीं कर पाए, घर में बृद्ध मां पत्नी दो बेटियाँ तथा एक छोटा बेटा है, एक गाय भी है | वे बृद्ध मां और गौ-सेवा करते हैं दूध से थोड़ी सी आय हो जाती है और जनेऊ बनाना उन्होंने अपने पिता व दादा जी से सीखा है यह भी उनके गुजर-बसर में सहायक है |

इसी बीच उनकी बड़ी बेटी पानी का लोटा वापस ले जाने के लिए आई किन्तु अभी भी मेरी गिलास में पानी भरा था उसने मेरी ओर देखा लगा कि उसकी आँखें मुझसे पूछ रही हों कि मेंने पानी क्यों नहीं पिया, मेंने अपनी नजरें उधर से हटा लीं, वह पानी का लोटा गिलास वहीं छोड़ कर चली गयी शायद उसे उम्मीद थी की मैं बाद में पानी पी लूंगा |

अब तक मैं इस परिवार के बारे में काफी है तक जान चुका था और मेरे मन में दया के भाव भी आ रहे थे | खैर ब्राह्मण ने मुझे एक जोड़ी जनेऊ दिया, तथा कागज पर एक मंत्र लिख कर दिया और कहा कि जनेऊ पहनते समय इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करूं -- |

मैंने सोच समझ कर 500 रुपए का नोट ब्राह्मण की ओर बढ़ाया तथा जेब और पर्स में एक का सिक्का तलाशने लगा, मैं जानता था कि 500 रुपए एक जोड़ी जनेऊ के लिए बहुत अधिक है पर मैंने सोचा कि इसी बहाने इनकी थोड़ी मदद हो जाएगी | ब्राह्मण हाथ जोड़ कर मुझसे बोले कि सर 500 सौ का फुटकर तो मेरे पास नहीं है, मेंने कहा अरे फुटकर की आवश्यकता नहीं है आप पूरा ही रख लीजिए तो उन्हें कहा नहीं बस मुझे मेरी मेहनत भर का 21 रूपए दे दीजिए, मुझे उनकी यह बात अच्छी लगी कि गरीब होने के बावजूद वो लालची नहीं हैं, पर मेंने भी पांच सौ ही देने के लिए सोच लिया था इसलिए मैंने कहा कि फुटकर तो मेरे पास भी नहीं है, आप संकोच मत करिए पूरा रख लीजिए आपके काम आएगा | उन्होंने कहा अरे नहीं मैं संकोच नहीं कर रहा आप इसे वापस रखिए जब कभी आपसे दुबारा मुलाकात होगी तब 21रू. दे दीजिएगा |

इस ब्राह्मण ने तो मेरी आँखें नम कर दीं उन्होंने कहा कि शुद्ध जनेऊ की एक जोड़ी पर 13-14 रुपए की लागत आती है 7-8 रुपए अपनी मेहनत का जोड़कर वह 21 रू. लेते हैं कोई-कोई एक का सिक्का न होने की बात कह कर बीस रुपए ही देता है | मेरे साथ भी यही समस्या थी मेरे पास 21रू. फुटकर नहीं थे, मेंने पांच सौ का नोट वापस रखा और सौ रुपए का एक नोट उन्हें पकड़ाते हुए बड़ी ही विनम्रता से उनसे रख लेने को कहा तो इस बार वह मेरा आग्रह नहीं टाल पाए और 100 रूपए रख लिए और मुझसे एक मिनट रुकने को कहकर घर के अन्दर गए, बाहर आकर और चार जोड़ी जनेऊ मुझे देते हुए बोले मेंने आपकी बात मानकर सौ रू. रख लिए अब मेरी बात मान कर यह चार जोड़ी जनेऊ और रख लीजिए ताकी मेरे मन पर भी कोई भार ना रहे |

मेंने मन ही मन उनके स्वाभिमान को प्रणाम किया साथ ही उनसे पूछा कि इतना जनेऊ लेकर मैं क्या करूंगा तो वो बोले कि मकर संक्रांति, पितृ विसर्जन, चन्द्र और सूर्य ग्रहण, घर पर किसी हवन पूजन संकल्प परिवार में शिशु जन्म के सूतक आदि अवसरों पर जनेऊ बदलने का विधान है, इसके अलावा आप अपने सगे सम्बन्धियों रिस्तेदारों व अपने ब्राह्मण मित्रों को उपहार भी दे सकते हैं जिससे हमारी ब्राह्मण संस्कृति व परम्परा मजबूत हो साथ ही साथ जब आप मंदिर जांए तो विशेष रूप से गणेश जी, शंकर जी व हनूमान जी को जनेऊ जरूर चढ़ाएं...

उनकी बातें सुनकर वह पांच जोड़ी जनेऊ मेंने अपने पास रख लिया और खड़ा हुआ तथा वापसी के लिए बिदा मांगी, तो उन्होंने कहा कि आप हमारे अतिथि हैं पहली बार घर आए हैं हम आपको खाली हाथ कैसे जाने दो सकते हैं इतना कह कर उनहोंने अपनी बिटिया को आवाज लगाई वह बाहर निकाली तो ब्राह्मण देव ने उससे इशारे में कुछ कहा तो वह उनका इशारा समझकर जल्दी से अन्दर गयी और एक बड़ा सा डंडा लेकर बाहर निकली, डंडा देखकर मेरे समझ में नहीं आया कि मेरी कैसी बिदायी होने वाली है |

अब डंडा उसके हाथ से ब्राह्मण देव ने अपने हाथों में ले लिया और मेरी ओर देख कर मुस्कराए जबाब में मेंने भी मुस्कराने का प्रयास किया | वह डंडा लेकर आगे बढ़े तो मैं थोड़ा पीछे हट गया उनकी बिटिया उनके पीछे पीछे चल रह थी मेंने देखा कि दरवाजे की दूसरी तरफ दो पपीते के पेड़ लगे थे डंडे की सहायता से उन्होंने एक पका हुआ पपीता तोड़ा उनकी बिटिया वह पपीता उठा कर अन्दर ले गयी और पानी से धोकर एक कागज में लपेट कर मेरे पास ले आयी और अपने नन्हें नन्हा हाथों से मेरी ओर बढ़ा दिया उसका निश्छल अपनापन देख मेरी आँखें भर आईं।

मैं अपनी भीग चुकी आंखों को उससे छिपाता हुआ दूसरी ओर देखने लगा तभी मेरी नजर पानी के उस लोटे और गिलास पर पड़ी जो अब भी वहीं रखा था इस छोटी सी बच्ची का अपनापन देख मुझे अपने पानी न पीने पर ग्लानि होने लगी, मैंने झट से एक टुकड़ा गुड़ उठाकर मुँह में रखा और पूरी गिलास का पानी एक ही साँस में पी गया, बिटिया से पूछा कि क्या एक गिलास पानी और मिलेगा वह नन्ही परी फुदकता हुई लोटा उठाकर ले गयी और पानी भर लाई, फिर उस पानी को मेरी गिलास में डालने लगी और उसके होंठों पर तैर रही मुस्कराहट जैसे मेरा धन्यवाद कर रही हो , मैं अपनी नजरें उससे छुपा रहा था पानी का गिलास उठाया और गर्दन ऊंची कर के वह अमृत पीने लगा पर अपराधबोध से दबा जा रहा था।

अब बिना किसी से कुछ बोले पपीता गाड़ी की दूसरी सीट पर रखा, और घर के लिए चल पड़ा, घर पहुंचने पर हाथ में पपीता देख कर मेरी पत्नी ने पूछा कि यह कहां से ले आए तो बस मैं उससे इतना ही कह पाया कि एक ब्राह्मण के घर गया था तो उन्होंने खाली हाथ आने ही नहीं दिया...!!






शनिवार, 21 अप्रैल 2018

बेईमानों की फौज बन गयी सत्ता के गलियारे में- नृपजीत सिंह पप्पू

राजनीति भी भीग रही है झूठ के फव्वारे में,
बेइमानों की फ़ौज बन गयी सत्ता के गलियारे में,

कहाँ दिख रहा कोई युधिष्ठिर, दुर्योधन ही सारे हैं,
शकुनि सर पर नाच रहा है,विदुर तो दूर किनारे है,

भीष्म की थी जो भीष्म प्रतिज्ञा उसमे नेक इरादे थे,
अब तो मंजिल सिंहासन और खोखले सब वादे हैं,

क्या फिर से होगा महाभारत लोकतंत्र के चौबारे में,
बेईमानों की फ़ौज बन गयी सत्ता के गलियारे में,,,,,,,

जनमानस के सुख ख़ातिर वो कितना परित्याग किये,
साधारण जन की शंका पर माँ सीता को वनवास दिए,

जनता संग विश्वासघात ख़्वाहिश जन सेवक बनने की,
रामराज्य की कोरि कल्पना सहनशक्ति नही सुनने की,

क्यों देखें छवि राम की जनतंत्र के हत्यारे में,,,,,,,
बेईमानों की फ़ौज बन गयी सत्ता के गलियारे में,,,,,,

गुज़रा नही है वक्त अभी भी आओ सभी सम्हल जायें,
बांध कफ़न संघर्ष करें गद्दारों का दिल दहल जाये,

हिंसा नही अहिंसा से ही इनको दूर भगा डालें,
नापाक हुए दामन को मिलकर फिर से पाक बना डालें

बहुत हो चुका रहा ना बाक़ी सुनना इनके बारे में,,,,,
बेईमानों की फ़ौज बन गयी सत्ता के गलियारे में,,,,,,

राजनीति भी भीग रही है झूठ के फव्वारे में,
बेईमानों की फ़ौज बन गयी सत्ता के गलियारे में,,,,,,,

लेख़क- नृपजीत सिंह"निप्पी' पप्पू सिंह
         महुआ टीवी


,

आओ एक मानव श्रृंखला बनायें आओ - नृपजीत सिंह "निप्पी"

एक मानव श्रृंखला बनायें आओ....
प्रेम के धागे में पिरोकर,एक मानव श्रृंखला बनायें,
मानवता का पंख लगाकर,इसको जन जन तक पहुँचायें
एक मानव श्रृंखला बनायें;  आओ...

न जाति-पाति हो,ना राग द्वेष हो,
हों रंग-बिरंगे,पर एक भेष हो,
हो सबका साथ सबका विकास,
ना रह जाये भूखा, कोई आस-पास,
राह अलग हो सकती मंज़िल एक है यही बताएं,,,,,
एक मानव श्रृंखला बनायें,,,,आओ,,,

नफरत की एक चिंगारी,ना बन जाए ज्वाला,
 विषयुक्त जुबाँ मत खोलो,घोलो अमृत का प्याला,
 तकरार ना बस प्यार हो,व्यभिचार ना सदाचार हो,
 तन मन में ये सँस्कार हो, परहित ही त्योहार हो,
गंगा यमुना और सरस्वती जैसा संगम बन जाये,,,आओ,
एक मानव श्रृंखला बनायें,,,,, आओ,,,

आओ सबजन मिलकर गायें,एक नया इतिहास बनायें,
उखड़ ना जायें कहीं धरा से,अंगद जैसा पाँव जमायें,
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई,एक हो सबका नारा,
सौहार्द रहेगा क़ायम हरदम,यह संकल्प हमारा,
चारों दिशा से घिरा हुआ हम एक आँगन बन जायें,,आओ,...
एक मानव श्रृंखला बनायें,,,,, आओ,,,,,आओ
प्रेम के धागे,,,,,,,,,
  नृपजीत सिंह"निप्पी"पप्पू सिंह
    महुआ टीवी


मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

फिर से कोई हिंदू और मुसलमान न हो - लव तिवारी

मुल्क में अब से न कोई घमासान हो
फिर से कोई हिन्दू और मुसलमान न हो
आदते जो बिगड़ी है, वरसो की हमारी
अब कोई मॉ बहन की सुनी मांग न हो
अब भी वक़्त हैं सुधर कर कुछ करो अच्छा सा,
धरती पर खौफ़ हैवानियत का अंजाम न हो
मज़हबी बन कर कुछ न होगा हमें हासिल
देश को चैन मिले , इंसानियत हैवान न हो
एक जगह जहा मुकम्मल हो सबकी इबादत
हो एक मसीहा, अल्ला औऱ भगवान न हो
स्वरचित- लव तिवारी
11-04-2018


सोमवार, 19 मार्च 2018

बदला न अपने आप को जो थे वही रहे

बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे


मंगलवार, 13 मार्च 2018

भारतीय किसान की दुर्दशा - लव तिवारी

कौन दर्द सुनेगा तेरा, अब नही घाव दिखाने को
देश की इस धरती पर, बचा न कुछ और गवानें को 

भारत की मर्यादा को संभाले देश का एक किसान ही है,
 देश की धरती सोना उगले उसका एक अरमान भी है,

 बिलख रहा है आज किसान, फूल बना अंगारे जो 
अन्न ,जीवन नही होगा धरती पर, लोग मरेगे दाने को

राजनीति में पिसता रहता ,देश का नेक किसान भला 
देश का नेता दुखड़ा रोये, इससे फर्जी इंसान कहाँ 

झेले सीने पर कहर प्रकृति का, फिर झेले राजनीति को
 देश का सच्चा किसान यहाँ, फिर खेले मौत की कहानी को


प्रस्तुति - लव तिवारी
संपर्क सूत्र- +91-9458668566
 Visit- www.lavtiwari.blogspot.in


मंगलवार, 6 मार्च 2018

वायु मुद्रा सूर्य मुद्रा ज्ञान मुद्रा ध्यान मुद्रा- युश महाराज







सूर्य का अर्थ होता है अग्नि,  सूर्य मुद्रा को करने से हमारे भीतर के अग्नि तत्व संचालित होते हैं। सूर्य की अँगुली अनामिका को रिंग फिंगर भी कहते हैं। इस अँगुली का सीधा संबंध सूर्य और यूरेनस ग्रह से होता है । सूर्य ऊर्जा स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है और यूरेनस कामुकता, अंतर्ज्ञान और बदलाव का प्रतीक है। सूर्य को सेहत और उर्जा का प्रतीक माना जाता है। सूर्य मुद्रा को लोग अग्नि मुद्रा के नाम से भी जानते हैं।



यह मुद्रा पृथ्वी मुद्रा के विपरीत है । यह मुद्रा सूर्य के गुणों का हमारे शरीर में विस्तार करती है तथा पृथ्वी तत्व की अधिकता को कम करती है ।



वायु मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में वायु का संतुलन बना रहता है । आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर के अंदर चौरासी तरह की वायु होती है और वायु चंचलता की निशानी है वायु की विकृति मन की चंचलता को बढ़ाती है इसलिए मन को एक ही जगह स्थिर रखने के लिए वायु-मुद्रा का अभ्यास किया जाता है माना जाता है की जब तक शुद्ध वायु शरीर को प्राप्त नहीं हो जाती तब तक हमारा शरीर रोगी रहता है । शरीर को रोगों से बचाने के लिए वायु मुद्रा का अभ्यास किया जाता है ।  सामान्य तौर पर इस मुद्रा को कुछ देर तक बार-बार करने से वायु विकार संबंधी समस्या की गंभीरता 12 से 24 घंटे में दूर हो जाती है। चलिए जानते



अपने हाथ की तर्जनी उंगली को अपने अंगूठे से मिला लें लेकिन उंगली और अंगूठा सिर्फ एक-दूसरे को हल्के से छूते हुए ही हों उन पर दबाव नहीं पड़ना चाहिए। इसमें हाथों की आकृति ज्ञान मुद्रा जैसी बनती है इसीलिए इसे ध्यान ज्ञान मुद्रा  कहा जा सकता है। ध्यान मुद्रा  से लाभ-. इस मुद्रा को करने से दिमाग तेज होता है। मन को एक जगह लगाने वाली याददाश्त तेज होती है तथा नींद न आना और तनाव जैसे रोग समाप्त हो जाते हैं।


ब्रह्मचर्य और योग-साधना मूलबंध आसन युश महाराज







आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर में सात धातु होते हैं- जिनमें अन्तिम धातु वीर्य (शुक्र) है। वीर्य ही मानव शरीर का सारतत्व है।

40 बूंद रक्त से 1 बूंद वीर्य होता है।

एक बार के वीर्य स्खलन से लगभग 15 ग्राम वीर्य का नाश होता है । जिस प्रकार पूरे गन्ने में शर्करा व्याप्त रहता है उसी प्रकार वीर्य पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से व्याप्त रहता है।



सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते है ।।



ब्रह्मचर्य और योग-साधना मूलबंध आसन  यह आसन यौन विकारों से संबंधित कई प्रकार की समस्याओं में लाभकारी होता है, इसीलिए इसे गुप्तासन कहते हैं। यह सेक्सुअल प्रोब्लेम्स के लिए बहुत ही मुफीद आसन है। इस आसन के अभ्यास से विभिन्य प्रकार के सेक्स समस्याएँ का समाधान किया जा सकता है। यह विभिन्य प्रकार के बीमारी जैसे स्वप्नदोष, वीर्यदोष, वीर्य चंचलता, मूत्र-संबंधी बीमारी, गुदा की बीमारियाँ इसके अभ्यास से ठीक हो जाती है|


मंगलवार, 30 जनवरी 2018

बाल संस्कार श्लोको को नित्य प्रयोग कर जीवन सफल बनायें

।। बाल संस्कार ।।
अपने बच्चो को निम्नलिखित श्लोकों को नित्य दैनन्दिनी में शामिल करने हेतु संस्कार दे एवं खुद भी पढ़े।
*प्रतिदिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र। संग्रह

*प्रात: कर-दर्शनम्*

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

*पृथ्वी क्षमा प्रार्थना*

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

*त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण*

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

*स्नान मन्त्र*
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

*सूर्यनमस्कार*

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

*संध्या दीप दर्शन*

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

*गणपति स्तोत्र*

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

*आदिशक्ति वंदना*

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

*शिव स्तुति*
कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥

*विष्णु स्तुति*

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

*श्री कृष्ण स्तुति*

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥

श्रीराम वंदना

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

श्रीरामाष्टक

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

एक श्लोकी रामायण

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥

हनुमान वंदना

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥
*
स्वस्ति-वाचन

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

शांति पाठ

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

बहुत ही सुंदर संग्रह
इसे हर हिन्दू को अपने पास सुरक्षित रखें  । ऐसा संग्रह सरलता से नही मिलता ।
एक प्रति परिवार के बच्चों को भी दे ।


मंगलवार, 16 जनवरी 2018

काल तक था मेरा जो अपना आज बेगाना क्यो है - लव तिवारी

कल तक था जो मेरा अपना आज बेगाना क्यो है
मेरी हालत देखकर ये जमाना पागल क्यो हैं

उनकी चाहत में अक्सर हालत कुछ ऐसी होती
जाने सब बातों को दिल फिर भी दीवाना क्यो है

वो रूठे तो उनके तस्वीरों से बात करे मेरी नजरें
रात गुजर जाये चाहत में वो अफ़साना क्यो है

एक दीवाना मैं जो अक्सर तड़पु न सोऊ रातो में
मेरी मोहब्बत का मसीहा आज अंजाना क्यो है

रचना- लव तिवारी
१५- जनवरी- २०१८




गुरुवार, 11 जनवरी 2018

देव पुरुष पूज्य श्री देवरहा बाबा देवरिया उत्तर प्रदेश

मित्रों के अनुरोध पर पुनः प्रस्तुति। एक ऐसे संत जिसके पैरो के नीचे अपना सिर रखने नेता व अंग्रेज तक आते थे!!

देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं.

भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे देवरहा बाबा. डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था. पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत थे।

श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे. प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी।

श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है. जनश्रूति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे. उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे. चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था।
लोगों में विश्वास है कि बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया. बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग आते थे।

मार्कण्डेय सिंह के मुताबिक, वह किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे. यमुना के किनारे वृन्दावन में वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे. उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।

लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई. वह अवतारी व्यक्ति थे. उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था।वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो नहीं बनता था। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी. उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।

अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई।अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे. भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था।

देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था. उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं।

मुझे अच्छी तरह याद है और मैं वहाँ मौजूद भी था. कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था. वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था. अधिकारियों में अफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था।प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई।

आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए. भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है. बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा!

वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा. अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए. उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता।

इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं. आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा. इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग.
बाबा की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे. उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं. उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे. सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे. योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था. ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे. कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते।

लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया. ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही. धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे. उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं. जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था.
देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गईं तो वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं. उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया. वहां से वापस आने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा निर्धारित कर दिया. इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं।
वहीं, यह भी मान्यता है कि इन्दिरा गांधी आपातकाल के समय कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से आर्शीवाद लेने गयीं थी. वहां उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया और हाथ का पंजा पार्टी का चुनाव निशान बनाने को कहा।
बाबा महान योगी और सिद्ध संत थे. उनके चमत्कार हज़ारों लोगों को झंकृत करते रहे. आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था. मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया. पेड़-पौधे भी उनसे बात करते थे. उनके आश्रम में बबूल तो थे, मगर कांटेविहीन. यही नहीं यह खुशबू भी बिखेरते थे।
उनके दर्शनों को प्रतिदिन विशाल जनसमूह उमड़ता था. बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे. उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया. दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया. श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।
देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे।
ख्याति इतनी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया. दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं।
प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना. यह सन 1911 की बात है. जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में करने की थी. उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी, लेकिन कोई भी उस बारे में बातचीत करने को आज भी तैयार नहीं।
डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे. बाबा देखते ही बोल पड़े-यह बच्चा तो राजा बनेगा. बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन 54 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया।
बाबा देवरहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे. उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी. खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे.
उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं. और अपनी यह सम्पत्ति बाबा ने मुक्त हस्तज लुटाई. जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया. वितरण में कोई विभेद नहीं. वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा. मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है।
कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है. दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी. याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्प्युटर की तरह।
हां, बलिष्ठ कदकाठी भी थी. लेकिन देह त्याहगने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे. उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता. लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे. मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे. कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे।
खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तनगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया. उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह जुटती थी. और फिर अचानक ११ जून १९९० को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया।
लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है. मौसम तक का मिजाज बदल गया. यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं. मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे. डॉक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि पारा अंतिम सीमा को तोड निकलने पर आमादा है.१९ तारीख को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी।
आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं. यमुना जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी. लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा. और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया. भक्तों की अपार भीड भी प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी।
यह हमारे मित्र की प्रस्तुति है