आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर में सात धातु होते हैं- जिनमें अन्तिम धातु वीर्य (शुक्र) है। वीर्य ही मानव शरीर का सारतत्व है।
40 बूंद रक्त से 1 बूंद वीर्य होता है।
एक बार के वीर्य स्खलन से लगभग 15 ग्राम वीर्य का नाश होता है । जिस प्रकार पूरे गन्ने में शर्करा व्याप्त रहता है उसी प्रकार वीर्य पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से व्याप्त रहता है।
सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते है ।।
ब्रह्मचर्य और योग-साधना मूलबंध आसन यह आसन यौन विकारों से संबंधित कई प्रकार की समस्याओं में लाभकारी होता है, इसीलिए इसे गुप्तासन कहते हैं। यह सेक्सुअल प्रोब्लेम्स के लिए बहुत ही मुफीद आसन है। इस आसन के अभ्यास से विभिन्य प्रकार के सेक्स समस्याएँ का समाधान किया जा सकता है। यह विभिन्य प्रकार के बीमारी जैसे स्वप्नदोष, वीर्यदोष, वीर्य चंचलता, मूत्र-संबंधी बीमारी, गुदा की बीमारियाँ इसके अभ्यास से ठीक हो जाती है|
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