शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी यानी मांसपेशियों की दुर्बलता


कक्षा 7 में पढ़ने वाली मेधा ने एक दिन रिक्शा से उतरते समय महसूस किया कि उसे पैर नीचे रखने में दिक्कत हो रही है। उसने सोचा ऐसे ही पैर सो गया होगा। पर अगले दिन सीढ़िया चढ़ते समय उसे सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत हो रही है। सीढ़िया चढ़ते समय उसे पैर को हाथ से सहारा देना पड़ रहा है। स्कूल से लौट कर उसने यह बात अपने पापा को बताई। पापा उसे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने लक्षण समझने के बाद मस्कुलर डिस्ट्रॉफी होने की आशंका व्यक्त की। कुछ टेस्ट कराए। डेस्ट में आशंका सही साबित हुई।

क्या है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक आनुवांशिक बीमारी है। पर अनुवांशिक कारण न होने पर भी यह बीमारी हो सकती है। इसमें शरीर की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होती जाती हैं और एक सीमा के बाद बेकार हो जाती हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह बीमारी पूरे शरीर में फैलती जाती है। इसे धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी भी कहते हैं। 

लक्षण 
संतुलन बनाने में दिक्कत आती है। जैसे व्यक्ति बिना सहारे के खड़े होने, पीठ टिकाएं बिना बैठने में दिक्कत महसूस करता है। पलके लटक जाती हैं। रीढ़ की हड्डी झुकने लगती है। चलने-फिरने में दिक्कत होती है। श्वांस संबंधी दिक्कते होने लगती हैं। जोड़ों में तकलीफ होती है। हृदय संबंधी रोग भी हो जाते हैं। 

प्रकार
यह कई प्रकार की होती है। कुछ प्रमुख प्रकार हैं-
डीएमडी:
 मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का यह सबसे प्रचलित प्रकार है, जो शरीर में डिस्ट्रॉफिन प्रोटीन को बनाने वाले जीन की खराबी के कारण होता है। यह प्रोटीन शरीर में मांसपेशियों को मजबूत करने का कार्य करता है। इसकी कमी से मांसपेशियां क्षतिग्रस्त होने लगती हैं और व्यक्ति धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। डीएमडी ज्यादातर लड़कों में होती है। 2 से 6 साल की उम्र के बीच इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इससे पीड़ित बच्चों को 10-12 साल का होते तक व्हीलचेयर का इस्तेमाल करना पड़ता है। कई बार हृदय संबंधी दिक्कतें भी रोगी को परेशान करती हैं। कुछ रोगियों में माइल्ड मेंटल रिटारडेशन भी देखने को मिलता है। 

बीएमडी: इसके लक्षण देर से उभरते हैं और अपेक्षाकृत कम खतरनाक होते हैं। मांसपेशियों का कमजोर होना और टूटना इसके प्रमुख लक्षण हैं, जो आमतौर पर 10 साल की उम्र तक दिखाई नहीं देते। कई बार ये व्यस्क तक भी दिखाई नहीं देते। इससे ग्रस्त लोगों को दिल, सांस, हड्डियों, मांसपेशियों व जोड़ों की तकलीफ होती है 

ईडीएमडी: यह भी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का एक प्रकार है और अधिकांशत: लड़कों को गिरफ्त में लेता है। आमतौर पर इसके लक्षण बाल्यवस्था खत्म होने, किशोरावस्था की शुरुआत या युवावस्था में दिखाई देते हैं। यह कंधों, बांहों व जांघों को प्रभावित करता है। 

एलजीएमडी: यह स्त्री-पुरुष दोनों में होती है और रोगी की बांहों, कंधों, जांघों और कूल्हों की मांसपेशियों को कमजोर कर देती है।  इसका असर धीरे-धीरे बढ़ता है।  

एफएसएचडी: इसमें चेहरे, कंधों और पैरों के निचले हिस्से प्रभावित होते हैं। इससे परेशान व्यक्ति को हाथ उठाने, सीटी बचाने व कस कर आंखें बंद करने में परेशानी होती है। इसमें रोग की गंभीरता व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करती है।
एमएमडी: किशोरों में यह ज्यादा परेशानी का सबब बनती है। इसमें मांसपेशियों में कमजोरी और आंख व दिल संबंधी परेशानियां शामिल है। व्यक्ति निगलने में भी दिक्कत महसूस करता है।

उपचार: 
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का कोई संतोषजनक उपचार अभी तक नहीं मिल पाया है। वैज्ञानिक इस बीमारी के लिए जिम्मेदार डिफेक्टिव जीन्स की पड़ताल में लगे है। शुरुआती चरण में रोग की पहचान इसके इलाज में काफी मददगार हो सकती है



http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-395278.html

https://www.nichd.nih.gov/health/topics/musculardys/conditioninfo/pages/treatment.aspx

सोमवार, 13 जनवरी 2014

कठिन है रहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो

कठिन है रहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
यह जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो

नशें में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो

यह एक शब् की मुलाक़ात भी गनीमत है
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो

अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो ........अहमद फ़राज़

रविवार, 12 जनवरी 2014

तुम किसी गैर को चाहो तो मज़ा आ जाए और वो तुमसे खफ्फा होतो मज़ा आ जाए

तुम किसी गैर को चाहो तो मज़ा आ जाए
और वो तुमसे खफ्फा होतो मज़ा आ जाए
और वो तुमसे खफ्फा होतो मज़ा आ जाए


तू कोई नाम हथेली पे लिखे मेहंदी से
और वो नाम मेरा होतो मज़ा आ जाए
तुम किसी गैर को चाहो तो मज़ा आ जाए

मेरे शिकवे तुझे अच्छे नही लगते लेकिन
तुझ को भी मुझसे गिल्ला होतो मज़ा आ जाए
तुम किसी गैर को चाहो तो मज़ा आ जाए

तुझको एहसास होता मेरी बेचैनी का
कोई तुझसे भी जुड़ा होतो मज़ा आ जाए
तुम किसी गैर को चाहो तो मज़ा आ जाए

और वो तुमसे खफ्फा होतो मज़ा आ जाए




गुरुवार, 9 जनवरी 2014

दिल की दास्ताँ तुझे कैसे सुनाउ?

दिल की दास्ताँ 

दिल की दास्ताँ तुझे कैसे सुनाउ? 
व्यथा जो मन में है उसे कैसे दिखाऊ 
पास आओ थोडा सा तो कान में कुछ कह पाऊँ 
रोना चाहती हूँ सामने, पर रो ना पाऊँ। दिल की

दिल के जज्बात चूर चूर होकर रह गए
जैसे ही आपने कुछ कहा वो सुन्न हो गए
सुनने के वो आदि न थे पर सुन के रेह गए
आपकी आदत से आहत होकर दर किनारा कर लिये। दिल की

रहेगी सदा बेबसी पर भुला न पाउंगी
सर्द मौसम है ज्यादा फिर भी बर्दास्त कर लुंगी
हर मौसम में अपने आपको ऐसे ही ढाल पाऊँगी
पतझड़ आ जाएँ राह में, स्वागत भी कर पाउंगी। दिल की

गिला है ना शिकवा मन में, फिर भी दुःख क्यों है?
मिटने को खुद है राजी, फिर दिल उदास क्यों है?
वजूद हमारा नहीं खतरे में फिर भी भड़ास क्यों है?
एक बहार ना आनेसेगुलशन बीमार क्यों है। दिल की

उनका जाना, हमसे बिछड़ना, एक निशानी तो है
आशियाँ उझड़ भी जाएँ फिर भी डर काहे को है
दिल क्यों बैठा जाता है, अनजानी राह में है
राही है नया दोस्त बना, फिर बर्बादी का डर क्यों है। दिल की

कितने ही गुल खिल उठे है खुशियां बिखरेने के लिए
कितने ही मासूम चेहरे तैयार है, सदा ही हंसने के लिये
हम क्यों रहे गुमसुम, जब जग खड़ा है मिलने के लिए
गले से हम भी लग जायेंगे, स्वीकार करने के लिए।.दिल की

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

कभी खुद पर, कभी हालत पर रोना आया । मुझे तेरी हर बात पे रोना आया ।

कभी खुद पर, कभी हालत पर रोना आया ।
मुझे तेरी हर बात पे रोना आया ।
गद्दार कहना भी तुझे खुद से गद्दारी है ।
मुझे तेरे हालात पे रोना आया


"धूप भी खुल के कुछ नहीं कहती ,
रात ढलती नहीं थम जाती है ,
सर्द मौसम की एक दिक्कत है ,
याद तक जम के बैठ जाती है.....!"


खोये रहो तुम खयालों में ऐसे ही
ये गुलशन वीरान हो जायेगा
यूँ ही बैठे रहो तुम इंतज़ार में ही
पूरा शहर ही शमशान हो जायेगा
कब तलक तुम रहोगे उनके भरोसे
जो करते भ्रमित, खुद भी रहते भ्रमित
तोड़ों भ्रमों को और आगे बढ़ो तुम
ये गुलशन गुलज़ार हो जायेगा

हमारा नाम लिखकर कागजों पर फिर उडा देना। भला सीखा कहाँ तुमने सितम को यूँ हवा देना॥

हमारा नाम लिखकर कागजों पर फिर उडा देना।
भला सीखा कहाँ तुमने सितम को यूँ हवा देना॥

हमे मालूम है तुम भी किसी से प्यार करते हो।
तुम्हे भी इल्म है मेरा किसी पर मुस्कुरा देना॥

मुहब्बत ग़म मे हो या खुशी मे दोनो बेहतर है।
कहीं कोई मिले तुमको उसे यह मशविरा देना॥

तुम अपने हक पे जायज हो हम अपने हक पे जायज हैं।
कहाँ फिर बात आती है किसी का घर गिरा देना॥

यॆ दुनियाँ है बडी काफिर तू इसकी बात पर मत आ।
के इसका काम है ऊपर चढा कर फिर गिरा देना॥

रीतेश रजवाणा"विभू"

आप को देख कर देखता रह गया, क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया,

आप को देख कर देखता रह गया,
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया,

आते आते मेरा नाम सा रह गया,
उसके होठों पे कुछ कांपता रह गया,

वो मेरे सामने ही गया और मैं,
रास्ते की तरह देखता रह गया,

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ गये,
और मैं था के सच बोलता रह गया,

आंधियों के इरादे तो अच्छे ना थे,
ये दिया कैसे जलता रह गया,

लेखक ___वसीम बरेलवी

गायक ___जगजीत सिंह