मंगलवार, 7 जनवरी 2014

कभी खुद पर, कभी हालत पर रोना आया । मुझे तेरी हर बात पे रोना आया ।

कभी खुद पर, कभी हालत पर रोना आया ।
मुझे तेरी हर बात पे रोना आया ।
गद्दार कहना भी तुझे खुद से गद्दारी है ।
मुझे तेरे हालात पे रोना आया


"धूप भी खुल के कुछ नहीं कहती ,
रात ढलती नहीं थम जाती है ,
सर्द मौसम की एक दिक्कत है ,
याद तक जम के बैठ जाती है.....!"


खोये रहो तुम खयालों में ऐसे ही
ये गुलशन वीरान हो जायेगा
यूँ ही बैठे रहो तुम इंतज़ार में ही
पूरा शहर ही शमशान हो जायेगा
कब तलक तुम रहोगे उनके भरोसे
जो करते भ्रमित, खुद भी रहते भ्रमित
तोड़ों भ्रमों को और आगे बढ़ो तुम
ये गुलशन गुलज़ार हो जायेगा

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