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नैतिकता में अंतर यूरोप अमेरिका और भारत ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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रविवार, 3 अगस्त 2025

नैतिकता में अंतर यूरोप अमेरिका और भारत

नैतिकता में अंतर होता है। हर जगह समान नैतिकता नहीं है। यूरोप और अमेरिका के दक्षिणपंथी इस बात के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं कि गर्भ में जो बच्चा आ गया, चाहे वह जैसे आ गया उसे मारा नहीं जा सकता क्यूंकि वह एक जीव है, उसमें प्राण आ चुका है, लेकिन विवाह पूर्व सेक्स को वह बहुत महत्व नहीं देते। विवाह के बिना बच्चे हो जायें, वह भी उनके लिए बड़ा मुद्दा नहीं है, उनका बड़ा मुद्दा है कि जो जीव गर्भ में आ गया, उसे जीने का अधिकार है।

भारत में लोगों के लिए गर्भ में आया बच्चा ज़्यादा महत्व का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक समय जो जितना बड़ा दक्षिणपंथी था, उसने तकनीक ने मौक़ा दिया तो जमकर बच्चों को मारा, केवल अविकसित भ्रूण को ही नहीं बल्कि बीस पच्चीस सप्ताह के गर्भ को भी गिराया और आज भी यह सतत जारी है। कई जगह तो स्वीकार्य परंपरा थी बच्चियों को दूध में डुबोकर मारने की, सही याद हो तो दूधपिटी कहते थे। मज़ेदार बाद यह है कि जो जो समुदाय इन गर्भ में पल रहे भ्रूण को मारने में सबसे आगे थे वह विवाह पूर्व सेक्स के सबसे प्रबल विरोधी रहे, आज भी हैं। 

अब कौन सही है, कौन ग़लत यह नहीं कहा जा सकता लेकिन व्यक्ति बचपन से जिन चीजों को परिवार से सीखता रहता है वह उसे अधिक महत्व और मूल्य की लगती हैं। वह उसका जीवनमूल्य बन जाता है। लेकिन इस आधार पर यह कहना कि भारत का विचार अधिक सही है अथवा यूरोप और अमेरिका का विचार अधिक सही है, अनुचित है। सबकी अपनी विकासयात्रा है, सबकी अपनी सोच है। हाँ, जो भी अति की तरफ़ जाएगा वह समाप्त होने को बाध्य है। 

यूरोप में गर्भ बचाने के चक्कर में सिंगल मदर इस कदर बढ़ी कि अब परिवार के प्रति प्रेम फिर से लौट रहा है। बलात्कार के बाद भी गर्भ ठहर जाने पर बच्चा पैदा ही करना होगा, इस पर विचार विमर्श चल रहा है। भारत में भी धीरे धीरे अनर्गल परम्पराये ढलान पर हैं। सबकी अपनी अपनी नैतिकता है जिसमे अलग अलग प्राथमिकता है पर वास्तव में दिक्कत तब होती है जब कोई व्यक्ति, समाज और सभ्यता कॉमन सेंस को किनारे लगाकर अति की तरफ़ जाने लगता है। हमें मध्य मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।