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जिंदगी बहुत अनमोल है (फिर हम तुम और नफ़रत क्यों)- राजेश कुमार सिंह श्रेयस कवि, लेखक, ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

जिंदगी बहुत अनमोल है (फिर हम तुम और नफ़रत क्यों)- राजेश कुमार सिंह श्रेयस कवि, लेखक,

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ज़िन्दगी अनमोल है, बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर मिलता है यह बात अक्सर कही -सुनी जाती है
प्रेम के दो मीठे बोल बोलने चाहिए। मीठी जुवां के दो मीठे बोल सुन कर,उसका पत्थर दिल पिघल गया। दिल बड़ा जल रहा था ,अब जाकर ठंडा हुआ इस दिल में तो आग लगी।आखिर ये चंद छोटी छोटी लाइने, ज़िन्दगी की ऐसी इबारते लिखती है, जो कभी भयानक आग सी लगा देतीं हैं और ये ही प्यार की मीठी बरसात करा देतीं है।

शब्दों की ये जादूगिरी दो दिलों को मिला देती हैं,तो कभी कभी ऐसा कहर बरपा देती है जो कभी हर पल साथ- साथ रहते थे, वे एक दूसरे के जान दुश्मन बन जाते हैं।

ना जाने हम उन बातों के बतकुच्चन को बतिया कर क्यों अपनी भड़ास निकालने में अपनी जीत समझते है, जो घर - घर में द्वेष के किस्से क्यों कहे जाते हैं l पारिवारिक विखरन का आधार बनते है।

सच में यह मन बड़ा अधम है अंहकारी बन कर खुद को बड़ा मान बैठता है।
ईर्ष्या की आग में जलता हुआ व्यक्ति स्वयं के तन मन को जलाता है।।

जबकि एक बात तो बड़ी ही स्पष्ट है, और सबको पता भी होती है कि व्यक्ति की अगली सांस उसकी है भी या नही, इसकी गारंटी बिल्कुल नही है l फिर भी न जाने क्या- क्या, और कैसे- कैसे दूषित विचार यह मन पाले रहता है कल मैंने सुन्दर काण्ड से जुडी एक पोस्ट डाली चर्चा थी कि रावण का अभिमान उसे ले डूबा वह अभिमानी बल्कि महाअभिमानी था
उसके अभिमान ने अपना ही क्या, उसके पूरे कुल का नाश करा कर ही दम लिया गुरु जी का फोन आया, शायद उन्होंने मेरी पोस्ट पढ ली थी गुरूजी के शब्दों के रूप में सोचे तो रावण हनुमान जी के विषय में कहता है ....

बोला विहासि महाअभिमानी।
मिला हमहि कपि बड़ गुर ग्यानी।।

इसी अहंकार की बात मैंने ऊपर कहा है शब्दों का माया जाल,भौकाल, और माल आदि ऐसे ऐसे फरेब हैं, जो रिश्तों की जमीन को नोच-चोथ देते हैं

राजस्थान के मेरे फेसबुक मित्र धनराज माली , जो ना सिर्फ अच्छे लेखक, कहानीकार, ब्लॉगर हैं, बल्कि एक अच्छे,सरल, और यथार्थवादी इंसान भी हैं l उनका कल का लेख पढ कर मुझे ऐसा लगा कि शायद वे मेरी ही बात को अपने ढंग से कह रहे हो l
सच में मेरी खुशियाँ मुझे मुबारक,वैसे ही दूसरों की खुशियाँ भी उन्हें भी मुबारक़ हो, यही खुश रहने का राज है।

विगत दिनों अपने साथ घटी एक घटना को सोच कर मै बार बार द्रवित और दुखित होता हूँ, और पश्चाताप भी करता हूँ,जहां खुशियों की दरखत को मैंने,खुद की आँखों की आगे चंद मिनटो में कटते देखा l जहां मुझे यह पता चला कि गम और ख़ुशी के बीच कितनी पतली झिल्ली है, जो थोड़ी सी बात से फट जाती है l मै इसमे भी अपनी बड़ी ग़लती मानता हूँ, और पाश्चाताप करता हूँ कि अपने ही कुछ शब्दों को जल्दी से समेट लेता , या बाँध लेता तो, शायद यह पीड़ा हमें या शायद और को नही होती l जहां हमारी खुशियाँ पुराने अंदाज में खिलखिलाती रहती, क्योंकि मै, तो उम्र में बड़ा था l मुझे तो थोड़ी अकल होनी चाहिए l खैर ये खुशियाँ अभी भी खोई नही हैं,उन्हें सवारूंगा l अपनी खुशियों को बाँटने और परोसबे के अनेकों युगत है।

अब मेरे मित्र श्री नन्दकिशोर वर्मा जी को ही ले ले,...पानी -पर्यावरण के लिये दिन रात दौड़ते है, अपनी छोटी क्षमता में बड़ा बड़ा काम करते है, एक पौधा गोमती के तीर पर रोपते है, तो ढेर सारी खुशियाँ अपनी झोली में भर लेते है। सच कहूँ तो उन्हें ख़ुशी देना और लेना खूब आता है। करोना का भयावह संक्रमण काल था, उस वक्त,मेरे वर्मा जी, मेरी बेटी की सगाई से जुडी मेरी हर उन मुश्किलों को हल कराने में जुटे थे, जो मेरे लिये कोई बड़ी समस्या हो l चाहें वह पुलिस परमिशन की बात हो, या विषम परिस्थितियों में तैयारी आदि की बात हो l कही कोई स्वार्थ नही, बस शायद वह उसमे अपनी खुशियाँ बटोर रहे हों l
ऐसे एक दो नही अनेकों, लोग हैं, जिनका जिक्र कर के मै इस लेख को अमर कर सकता हूँ।

मेरे गांव में मेरा एक भाई है, मेरे पिता जी के चचेरे भाई का बेटा " प्रमोद " बिल्कुल सामान्य सा बच्चा लेकिन आज अपने लेख में उसका जिक्र कर इस लेख को और महान करूँगा, क्योंकि वह खुशियाँ बटोरने वाला, इंसान है l गांव में जब कोई, कार्यक्रम, गमी -ख़ुशी हो मेरा प्रमोद वहाँ बड़ी लगन से, बड़ी सिद्दत से, लगा रहता l जी हाँ वह, उन खुशियों को बटोर रहा होता है, जिसे पाना किसी और के बस की बात नही है l पिछले दिनों उसकी बेटी की शादी थी l देर से जानकारी मिली, नही तो मै वहाँ पहुंच कर अपनी खुशियाँ भी बटोरता l फेसबुक पर मेरे अन्य ऐसे अनेक मित्र है, जैसे पशुपतिनाथ सिंह, लव -कुश तिवारी, डा ओमप्रकाश सिंह, धनंजय सिंह आदि जो निस्वार्थ भाव से कुछ ऐसा करते है, जहां खुशियाँ उनकी झोली भरती रहती हैं।

कहने सुनने को बहुत है, मद को फेक, एक नेक, सरल और सहज़ इंसान की भांति यदि ऐसी खुशियाँ बटोरता चला जाये तो खुशियों से झोली लबा लब भर जायेगी l
अंत में बस कुछ चंद शब्दों के साथ इस लेख को विराम देना चाहुँगा कि मेरे मित्र, खुशियों को पाने के ढेरों रास्ते हैं, ज़रा मुस्कुरा कर, प्यार के दो मीठे बोल बोलना आना चाहिए l थोड़ा हँसना और हँसाना सीखिए। प्यार के दो मीठे बोल के साथ गुदगुदाना और गुनगुना सीखिये l स्वयं की छोड़,दूसरों की खुशियों को सुन कर खुश होना सीखिये।

जिंदगी खुशगवार रहेगी हर तरफ प्यार की बहार बहेगी

हाँ एक शब्द इस जो इस लेख के शीर्षक में है , जो सबसे बुरा है, जिससे दूर रहने की जरुरत है,...
मै आज बहुत खुश हुआ कि इस लेख को पूरा लिखा, फिर भी एक भी स्थान पर उसका प्रयोग नही किया l इस कारण मेरा लेखन सार्थक रहा, यह भी मेरी ख़ुशी है l
बीता वर्ष जाने को है, नव वर्ष में नई खुशियाँ आने को है..खुश रहिये, मस्त रहिये, स्वस्थ रहिये है,
नववर्ष मंगलमय हो l
😍😍😍😍😍😍😍
जय हिन्द.....
©® राजेश कुमार सिंह "श्रेयस"
कवि, लेखक, समीक्षक
लखनऊ, उप्र