शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

किन किन हालातों से गुजर कर मिलती है कामयाबी और लोग एक पल में कह देते हैं किस्मत अच्छी थी

ऐसे ही हालातों से गुजर कर मिलती है कामयाबी और लोग एक पल में कह देते हैं किस्मत अच्छी थी मिडिल क्लास के सबसे निचले पायदान पर मौजूद सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठे लाखों आकांक्षीयो की कहानी जो एम बी इंजीनियरिंग,मेडिकल एवं अन्य प्रतिष्ठित परीक्षाओं की तैयारी करने में असमर्थ हैं।।

उन्हें उनके घरवालों से सिर्फ महीने का मकान किराया,घर के खेत में उपजी धान का चावल एवं गेहूं का आटा, गैस भराने के लिए एवं लुसेंट किताब खरीदने के रुपए ही मिल सकता है।।

उनके सामने इन सीमित संसाधनों से महीने निकालने की चुनौती पहले बनी रहती है।।इस दौरान खाना बनाने में कितना कम समय खर्च हो इसका भी ध्यान रखना होता है।। दाल भात एवं आलु का चोखा एक ही समय में कैसे बनता है ये सिर्फ इनको पता है।।

खाना जल गया हो या सब्जी में नमक कम हो या फिर चावल पका ही न हो, खाते समय सभी का स्वागत ऐसे किया जाता है मानो किसानों के मेहनत को कद्र करने का ठेका इन्हें ही मिला हो।।

मां बाप के दर्द को अपने सपनों में सहेजना कोई इनसे सीखे।।जिस समय जमाने को बाइक,आइफोन,फिल्म इत्यादि का आने का इंतजार रहता है उस समय इन्हें प्रतियोगिता दर्पण,वैकेंसी,रिजल्ट आदि का इंतजार रहता है।।जहां आज भी समाज में जात-पात, धर्म, संप्रदायिकता का जहर विद्यमान है वहीं इनके कमरे में एक ही थाली में विभिन्न जाति एवं धर्मों का हाथ निवाले को उठाने के लिए एक साथ मिलता है।। इससे बढ़िया समाजिक सौहार्द का उदाहरण कहीं और मिल ही नहीं सकता।

कुल मिलाकर इनका एक ही लक्ष्य है परीक्षा को पास कर मां बाप को वो सबकुछ देना जिसके लिए वो एक दिन तरसे थे।।मुझे गर्व है कि मैं ऐसे लड़कों पर जो अपने सपनो को मंज़िल तक ले जाने में सफल होते है।।



गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

जिंदगी बहुत अनमोल है (फिर हम तुम और नफ़रत क्यों)- राजेश कुमार सिंह श्रेयस कवि, लेखक,

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ज़िन्दगी अनमोल है, बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर मिलता है यह बात अक्सर कही -सुनी जाती है
प्रेम के दो मीठे बोल बोलने चाहिए। मीठी जुवां के दो मीठे बोल सुन कर,उसका पत्थर दिल पिघल गया। दिल बड़ा जल रहा था ,अब जाकर ठंडा हुआ इस दिल में तो आग लगी।आखिर ये चंद छोटी छोटी लाइने, ज़िन्दगी की ऐसी इबारते लिखती है, जो कभी भयानक आग सी लगा देतीं हैं और ये ही प्यार की मीठी बरसात करा देतीं है।

शब्दों की ये जादूगिरी दो दिलों को मिला देती हैं,तो कभी कभी ऐसा कहर बरपा देती है जो कभी हर पल साथ- साथ रहते थे, वे एक दूसरे के जान दुश्मन बन जाते हैं।

ना जाने हम उन बातों के बतकुच्चन को बतिया कर क्यों अपनी भड़ास निकालने में अपनी जीत समझते है, जो घर - घर में द्वेष के किस्से क्यों कहे जाते हैं l पारिवारिक विखरन का आधार बनते है।

सच में यह मन बड़ा अधम है अंहकारी बन कर खुद को बड़ा मान बैठता है।
ईर्ष्या की आग में जलता हुआ व्यक्ति स्वयं के तन मन को जलाता है।।

जबकि एक बात तो बड़ी ही स्पष्ट है, और सबको पता भी होती है कि व्यक्ति की अगली सांस उसकी है भी या नही, इसकी गारंटी बिल्कुल नही है l फिर भी न जाने क्या- क्या, और कैसे- कैसे दूषित विचार यह मन पाले रहता है कल मैंने सुन्दर काण्ड से जुडी एक पोस्ट डाली चर्चा थी कि रावण का अभिमान उसे ले डूबा वह अभिमानी बल्कि महाअभिमानी था
उसके अभिमान ने अपना ही क्या, उसके पूरे कुल का नाश करा कर ही दम लिया गुरु जी का फोन आया, शायद उन्होंने मेरी पोस्ट पढ ली थी गुरूजी के शब्दों के रूप में सोचे तो रावण हनुमान जी के विषय में कहता है ....

बोला विहासि महाअभिमानी।
मिला हमहि कपि बड़ गुर ग्यानी।।

इसी अहंकार की बात मैंने ऊपर कहा है शब्दों का माया जाल,भौकाल, और माल आदि ऐसे ऐसे फरेब हैं, जो रिश्तों की जमीन को नोच-चोथ देते हैं

राजस्थान के मेरे फेसबुक मित्र धनराज माली , जो ना सिर्फ अच्छे लेखक, कहानीकार, ब्लॉगर हैं, बल्कि एक अच्छे,सरल, और यथार्थवादी इंसान भी हैं l उनका कल का लेख पढ कर मुझे ऐसा लगा कि शायद वे मेरी ही बात को अपने ढंग से कह रहे हो l
सच में मेरी खुशियाँ मुझे मुबारक,वैसे ही दूसरों की खुशियाँ भी उन्हें भी मुबारक़ हो, यही खुश रहने का राज है।

विगत दिनों अपने साथ घटी एक घटना को सोच कर मै बार बार द्रवित और दुखित होता हूँ, और पश्चाताप भी करता हूँ,जहां खुशियों की दरखत को मैंने,खुद की आँखों की आगे चंद मिनटो में कटते देखा l जहां मुझे यह पता चला कि गम और ख़ुशी के बीच कितनी पतली झिल्ली है, जो थोड़ी सी बात से फट जाती है l मै इसमे भी अपनी बड़ी ग़लती मानता हूँ, और पाश्चाताप करता हूँ कि अपने ही कुछ शब्दों को जल्दी से समेट लेता , या बाँध लेता तो, शायद यह पीड़ा हमें या शायद और को नही होती l जहां हमारी खुशियाँ पुराने अंदाज में खिलखिलाती रहती, क्योंकि मै, तो उम्र में बड़ा था l मुझे तो थोड़ी अकल होनी चाहिए l खैर ये खुशियाँ अभी भी खोई नही हैं,उन्हें सवारूंगा l अपनी खुशियों को बाँटने और परोसबे के अनेकों युगत है।

अब मेरे मित्र श्री नन्दकिशोर वर्मा जी को ही ले ले,...पानी -पर्यावरण के लिये दिन रात दौड़ते है, अपनी छोटी क्षमता में बड़ा बड़ा काम करते है, एक पौधा गोमती के तीर पर रोपते है, तो ढेर सारी खुशियाँ अपनी झोली में भर लेते है। सच कहूँ तो उन्हें ख़ुशी देना और लेना खूब आता है। करोना का भयावह संक्रमण काल था, उस वक्त,मेरे वर्मा जी, मेरी बेटी की सगाई से जुडी मेरी हर उन मुश्किलों को हल कराने में जुटे थे, जो मेरे लिये कोई बड़ी समस्या हो l चाहें वह पुलिस परमिशन की बात हो, या विषम परिस्थितियों में तैयारी आदि की बात हो l कही कोई स्वार्थ नही, बस शायद वह उसमे अपनी खुशियाँ बटोर रहे हों l
ऐसे एक दो नही अनेकों, लोग हैं, जिनका जिक्र कर के मै इस लेख को अमर कर सकता हूँ।

मेरे गांव में मेरा एक भाई है, मेरे पिता जी के चचेरे भाई का बेटा " प्रमोद " बिल्कुल सामान्य सा बच्चा लेकिन आज अपने लेख में उसका जिक्र कर इस लेख को और महान करूँगा, क्योंकि वह खुशियाँ बटोरने वाला, इंसान है l गांव में जब कोई, कार्यक्रम, गमी -ख़ुशी हो मेरा प्रमोद वहाँ बड़ी लगन से, बड़ी सिद्दत से, लगा रहता l जी हाँ वह, उन खुशियों को बटोर रहा होता है, जिसे पाना किसी और के बस की बात नही है l पिछले दिनों उसकी बेटी की शादी थी l देर से जानकारी मिली, नही तो मै वहाँ पहुंच कर अपनी खुशियाँ भी बटोरता l फेसबुक पर मेरे अन्य ऐसे अनेक मित्र है, जैसे पशुपतिनाथ सिंह, लव -कुश तिवारी, डा ओमप्रकाश सिंह, धनंजय सिंह आदि जो निस्वार्थ भाव से कुछ ऐसा करते है, जहां खुशियाँ उनकी झोली भरती रहती हैं।

कहने सुनने को बहुत है, मद को फेक, एक नेक, सरल और सहज़ इंसान की भांति यदि ऐसी खुशियाँ बटोरता चला जाये तो खुशियों से झोली लबा लब भर जायेगी l
अंत में बस कुछ चंद शब्दों के साथ इस लेख को विराम देना चाहुँगा कि मेरे मित्र, खुशियों को पाने के ढेरों रास्ते हैं, ज़रा मुस्कुरा कर, प्यार के दो मीठे बोल बोलना आना चाहिए l थोड़ा हँसना और हँसाना सीखिए। प्यार के दो मीठे बोल के साथ गुदगुदाना और गुनगुना सीखिये l स्वयं की छोड़,दूसरों की खुशियों को सुन कर खुश होना सीखिये।

जिंदगी खुशगवार रहेगी हर तरफ प्यार की बहार बहेगी

हाँ एक शब्द इस जो इस लेख के शीर्षक में है , जो सबसे बुरा है, जिससे दूर रहने की जरुरत है,...
मै आज बहुत खुश हुआ कि इस लेख को पूरा लिखा, फिर भी एक भी स्थान पर उसका प्रयोग नही किया l इस कारण मेरा लेखन सार्थक रहा, यह भी मेरी ख़ुशी है l
बीता वर्ष जाने को है, नव वर्ष में नई खुशियाँ आने को है..खुश रहिये, मस्त रहिये, स्वस्थ रहिये है,
नववर्ष मंगलमय हो l
😍😍😍😍😍😍😍
जय हिन्द.....
©® राजेश कुमार सिंह "श्रेयस"
कवि, लेखक, समीक्षक
लखनऊ, उप्र


बुधवार, 29 दिसंबर 2021

सुती उठी बर्तन धोई लेके आई पनिया आ गईली घर मे जबसे हमरो दुल्हनिया- गीतकार अजय त्रिपाठी

पढ़ल लिखल मैडम से सोचली की बियाह करब
गऊवा में हमहु ऐडवांस कहलाइब
चश्मा लगाइब शूट बूट पेनब फेशन में
मैडम के संग में शहर घूमें जाईब

बाकी जबसे बियाह भईल जिनिगी मोर बेहाल भईल
घरवा में जहिया से आ गइली रानी
आ मेहरी के नोकर बनी घर मे रहत बानी
सगरो सोचलका पे फिर गईल पानी

सुती उठी बर्तन धोई लेके आई पनिया
आ गईली घर मे जबसे हमरो दुल्हनिया- २
सूती उठी बर्तन......

अपने सुतेली पहिले हमकें जगावली २
जगते रसोइया में तुरते पठावली २
मागेली चाय हमसे- २ बैठी के पलनिया
आ गईली घर.......२

रोजे रोजे हप्ता हप्ता भेषवा बनावली २
किसम किसम के होठलाली लगावली २
बाल कटवावेली-२जइसन गॉव के नचनिया
आ गईली घर.......२

एमए बीए पास हई रोबवा जमावेली २
प्यार से ना बोले डाटी डाट के बोलावेली २
तीर अस लागे इनकर-२ सगरो बचनिया
आ गईली घर.......२

केतना बताई पूनम होत बा ससतिया २
आफत में जिनगी पड़ल होता दूरगतिया २
ना जाने कइसन चलनी २ नैकी रे चलनिया
आ गइली घर......२

सुती उठी बर्तन धोई लेके आई पनिया

गीतकार अजय त्रिपाठी
सुप्रसिद्ध संगीतकार व गीतकार वाराणसी उत्तर प्रदेश


ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी फ़िजा महकी महकी हवा महकी महकी - जनाब गुलाम अली

ये कौन आ गई, दिलरुबा, महकी महकी - 2
फ़िज़ा महकी महकी, हवा, महकी महकी
ये कौन आ गई...

वो आँखों, में काजल, वो बालों में गजरा - 2
हथेली पे उसके, हिना महकी महकी
ये कौन आ गई...

ख़ुदा जाने किस किस की, ये जान लेगी - 2
वो क़ातिल अदा, वो क़ज़ा महकी महकी
ये कौन आ गई...

सवेरे सवेरे, मेरे, घर पे आई
ऐ हसरत, वो बाद-ए-सबा, महकी महकी
ये कौन आ गई...

फ़िज़ा महकी महकी, हवा, महकी महकी
ये कौन आ गई, दिलरुबा, महकी महकी
ये कौन आ गई...ये कौन आ गई...




सोमवार, 27 दिसंबर 2021

अगिया दहेज के अईसन तेज हो गईल बेटी जनमावल परहेज हो गईल दहेज गीत - मनोज तिवारी मृदुल

अगिया दहेज के अईसन तेज हो गईल
बेटी जनमावल परहेज हो गईल

बाप भईल कंस से भी बढ़ के कसाई
अपना जमलका देला बध कराई
कइसन माई बाप के करेज हो गईल
बेटी जनमावल परहेज...........

बेटियां के दुख का बा ई त के ना जाने
तबो निदर्दी लोगवा बने अनजाने
बेटहा त जुल्मी अंग्रेज हो गईल
बेटी जनमावल परहेज............

दिन नइखे ढेर अब त उहो युग आई
शादी बदे बबुआ कम्पटीशन देवे जाई
सुनी होखे शुरू अब त सेज हो गईल
बेटी जनमावल परहेज............

रोके अत्याचार जे कुकर्म बढ़ जाईहं
एकरे ई बोझ से धरती फ़ट जाईहं
पपवा के बहुते मोटा पेज हो गईल
बेटी जनमावल परहेज............





हुजूर आपका भी एहतराम करता चलूँ। इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूँ- जगजीत सिंह

हुजूर आपका भी एहतराम करता चलूँ।
इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूँ।।
हुजूर आपका भी एहतराम .......

निगाह-ओ-दिल की यही आखरी तमन्ना है।
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शाम करता चलूँ।।
हुजूर आपका भी एहतराम .......

उन्हें ये जिद के मुझे देख कर किसी को न देख।
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूँ।।
हुजूर आपका भी एहतराम ......

ये मेरे ख़्वाबों की दुनिया नहीं सही लेकिन।
अब आ गया हूँ तो दो दिन कयाम करता चलूँ।।
हुजूर आपका भी एहतराम .......

हुजूर आपका भी एहतराम करता चलूँ।
इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूँ।।



हर साल आयी मईया तोहरी दुअरिया कबो अईतु हमरो बखरिया माई जग तरनी-२ भोजपुरी पचरा मनोज तिवारी मृदुल

हर साल आयी मईया तोहरी दुअरिया
कबो अईतु हमरो बखरिया माई जग तरनी-२

नाही बाटे विद्या बुद्धि नाही बा ज्ञानवा
नही जानी हम मईया पुजवा के धनवा
हम त हई मईया पाँव के पूजरिया -२
कबो अईतु हमरो बखरिया.........

निर्धन के धन देलु कोढ़ीयन के तनवा
सेवक बझिनियन के देवेलु लालनवा
जब होला कृपा के जग पे नजरिया हो-२
कबो अईतु हमरो बखरिया............

है महारानी जगत भवानी
हमरा के तार देतू तब तोहखे जानी
हम त हई महारानी निपट अनाड़िया हो
कब लेबू हमरो खबरिया माई जग तरनी
कबो अईतु हमरो बखरिया.........

हर साल आयी मईया तोहरी दुअरिया
कबो अईतु हमरो बखरिया माई जग तरनी-२





मां शारदे कहा तू बीणा बजा रही है। किस मंजुगान से तू जग को लुभा रही है।।

मां शारदे कहा तू बीणा बजा रही है।
किस मंजुगान से तू जग को लुभा रही है।।
मां शारदे कहा तू बीणा........

किस भाव मे भवानी तू मग्न हो रही हो
विनती नही हमारी क्यो मातु सुन रही हो।।
मां शारदे कहा तू बीणा........

हम दीन बालक कब से विनती सुना रहे है।
चरणों मे तेरे माता हम सिर झुका रहे है।।
मां शारदे कहा तू बीणा........

अज्ञान तम हमारी! माँ शीघ्र दूर कर दे।
शुभ ज्ञान हममें माता माँ शारदे तू भर दे।।
मां शारदे कहा तू बीणा........

हमको दयामयी तू ले गोंद में पढ़ाओ।
अमृत जगत में हमको माँ ज्ञान का पिलाओ।।
मां शारदे कहा तू बीणा........

बालक सभी जगत के सुत मातु है तुम्हारे।
प्राणों से प्रिय तुम्हें हम पुत्र सब दुलारे।।
मां शारदे कहा तू बीणा........

मातेश्वरी तू सुन ले सुंदर विनय हमारी।
करके दया तू भरले बाधा जगत की सारी।।
मां शारदे कहा तू बीणा........

मेरी बेटी मेरा शान 
मेरे बड़े भाई की बेटी
भूमि तिवारी


कभी जाने नही दी है वतन की आबरू हमने किया है जान देकर आज खुद को सुखरू हमने।।

कभी जाने नही दी है वतन की आबरू हमने
किया है जान देकर आज खुद को सुखरू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन.....

हकीकत है ये कुर्बानी कभी तो गुल खिलायेगी
चमन को सींच कर अब तक बहाया जो लहू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन........

हमे है फख अपने ही वतन के काम आयी है।
दिलो में सरफरोशी की जो की थी आरजू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन.......

हमारी कामयाबी से जमाने भर में महकेंगे।
वफ़ादारी के फूलों को दिए है रंगबू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन.......

फ़िजा में यू ही लहराता रहेगा देश का परचम।
नही अब तक किया है दुश्मन के आगे सरनम हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन.....…...

ख़बर क्या थी निभायेंगे वही यो दुश्मनी जिसने।
गले मिलकर हजारों बार की है गफ़्तम हमनें।।
कभी जाने नही दी है वतन........

किया मजबूर हमको जंग लड़ने के लिए वर्ना।
न छोड़ी है कभी अपनी शराफ़त अपनी खू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन...........








गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

हम वो आखिरी लोग है जिसने सायकिल की सवारी को तीन चरणों मे सीखा है- लव तिवारी

बचपन में हमने गांव में साइकिल तीन चरणों में सीखी थी ,
पहला चरण - कैंची
दूसरा चरण - डंडा
तीसरा चरण - गद्दी ...

तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।
कैंची वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे।

और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना #सीना_तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और क्लींङ क्लींङ करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है।

आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था।
हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तुड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब #दर्द भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।

अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में।

मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी! जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं।
इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए। और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी ।

हम लोग की दुनिया की आखिरी_ पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !
पहला चरण कैंची
दूसरा चरण डंडा
तीसरा चरण गद्दी।

● हम वो आखरी पीढ़ी हैं, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं !!

😊😊


राते सुसकेली धनिया पलानी में करधनिया हेरागल पानी में भोजपुरी लोकगीत

बदन बा गरम आग पानी सेराइल
की जुलुम हो गइल बा नदी के नहाइल
बुझाता केहु के नजर बा, टे लागल
नहाते में ना जान कहा करधन हेराइल

राते सुसकेली धनिया पलानी में-२
करधनिया हेरागल पानी में -२

रहे पुरनकी असली चांनी
आ ऊपर से सोना के पानी २
छपरा से गढ़व्वले रहली २
एकर जोड़ा ना मिलिहे दुकानी में
करधनिया हेरागल पानी में.....

डाढ़ होगइल नदी के नहाइल
आ डाढ़ से करधन कहावा हेराइल -२
डाढ़ जे मंगिहे त कहावा से देहिब-२
रहले जीजाजी दिहले निसानी में
करधनिया हेराइल पानी में......

गइल जोहात कमर के नीचे
सड़ी खोल के लागली फ़ीचे
सब कुछ उलट पुलट के देखनी
खोजनी नदिया से अंगना दलानी में
करधनिया हेराइल पानी में........

राते सुसकेली धनिया पलानी में...२
करधनिया हेरागल पानी में -२







सोमवार, 20 दिसंबर 2021

कसम तिरंगे की है माँ लाज रखेंगें। हर पहलू से निपटने का अंदाज रखेगें।- श्री मंगला सिंह युवराजपुर

लानत है उस जीवन को जो माँ की लाज बचा न सके।
गीदड़ बन जाता है वह जो भृष्टाचार हटा न सके।।
कसम तिरंगे की है माँ लाज रखेंगें।
हर पहलू से निपटने का अंदाज रखेगें।

साथ मिले या न मिले गम नही है माँ
हम अकेले ही किसी से कम नही है माँ
हम संभल कर अपना कदम आज लिखेंगे।
कसम तिरंगे की ........

दिन काटे है वंशज मेरे खा घास की रोटी
छूने न देंगे हम कभी हिमगिरि की वो चोटी
तेरे सर पे हिन्द का हम ताज रंखेंगे।।
कसम तिरंगे की ........

भृष्टाचार को अब हम पनपने नही देंगे
स्वप्न गांधी जी का हम कभी नही मिटने देंगे
कायम अपने देश का स्वराज रंखेंगे।।
कसम तिरंगे की ........

हम उलझ रहे है पर सुलझ के रहेंगे,
क्या उचित है क्या नही समझ कर रहेंगे
पाक हर नापाक का मिज़ाज रंखेंगे।।
कसम तिरंगे की ........


रचना- मंगला सिंह पुत्र स्वर्गीय अच्छेलाल सिंह
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर २३२३३२


शनिवार, 18 दिसंबर 2021

जीवन कदम कदम पर एक परीक्षा है - आदरणीय गुरू जी श्री प्रवीण तिवारी पेड़ बाबा ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

जीवन कदम कदम पर एक परीक्षा है । जिसप्रकार हमें शिक्षा के दौरान विभिन्न परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, जैसे जैसे हम परीक्षाओं में सफल होते जाते हैं वैसे ही वैसे शिक्षा में आगे बढ़ते जाते हैं, साथ ही साथ परीक्षाएं और कठिन होती जाती हैं । कुछ लोग तो शिक्षा के दौरान कठिन प्रश्नपत्र देखकर परीक्षा ही छोड़ देते हैं और जीवन भर एक असफल जीवश जीते हैं । परंतु कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कठिन से कठिन परीक्षा में सफलता प्राप्त करते जाते हैं और बहुतों के जीवन को प्रेरणा देते हैं । जीवन में भी अनेकों ऐसे अवसर आते हैं जब हमें लगता है कि जीवन बहुत कठिन परीक्षा ले रहा है । ऐसा तभी हो सकता है, जब आपके जीवन का स्तर बहुत ऊँचाई पर जा रहा होगा । आप सफल होने की कोशिश कीजिए । शायद आप बहुतों के जीवन को प्रेरणा देने, प्रकाश देने के करीब हों । प्रकाश कौन दे सकता है जिसमें जलने की कष्ट सहने की सामर्थ्य हो ।👏






समाज सेवा साधना स्तर की हो ::आदरणीय गुरु जी श्री प्रवीण तिवारी पेड़ बाबा ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

समाज सेवा साधना स्तर की हो ::--
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समाज में पिछड़े एवं समस्याग्रस्त लोगों को आगे लाने तथा उनकी कठिनाइयों को सुलझाने का नाम समाज सेवा है ।

आज कुछ मनुष्य अच्छे से अच्छे डॉक्टरों से इलाज करवा लेते हैं वहीं बहुत से लोग ऐसे हैं जो एक एक दिन कष्ट मे बिताते हुए मौत के मुँह की तरफ बढ़ते जाते हैं ।

बहुत बच्चे अच्छे से अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं वहीं बहुत बच्चे ऐसे भी हैं जो बिना लक्ष्य के रहते हैं ।
राई और पहाड़ के इस अंतर को पाटने के लिए , पिछड़ेपन को दूर करने के लिए और उन समस्याओं को सुलझाने के लिए जो जीते जी मनुष्य को नरक की यातना में झुलसा देती है - करुणा की आवश्यकता है ।

यहाँ करुणा और दया में अंतर है । दया कमजोरों पर किया जाता है । जबकि करुणा कर्तव्यनिष्ठा से प्रेरित होता है । जैसे जब अपना भाई या बेटा बिमार हो जाता है तो लोग जमीन आसमान एक कर देते हैं । इसका कोई विज्ञापन नहीं करते और इसके बदले में कोई लाभ भी नहीं चाहते ।यही करुणा है , यही सेवा है ।

अब धारणा बदल चुकी है लोग समाज सेवा करने के स्थान पर समाज सेवी कहलाना अधिक पसंद करते हैं । यही कारण है कि लोग इस दिशा में नैष्ठिक प्रयास करने के स्थान पर अपने मुँह से अपनी बहादुरी और अपने पराक्रम का परिचय ज्यादा देते हैं ।





रविवार, 5 दिसंबर 2021

भारत देश के महान क्रांतिकारी श्री चंद्रशेखर आजाद और उनकी शव यात्रा -

जब चंद्रशेखर #आजाद की शव यात्रा निकली... देश की जनता नंगे पैर... नंगे सिर चल रही थी... लेकिन कांग्रेसियों ने शव यात्रा में शामिल होने से इनकार कर दिया था

- एक अंग्रेज सुप्रीटेंडेंट ने चंद्रशेखर आजाद की मौत के बाद उनकी वीरता की प्रशंसा करते हुए कहा था कि चंद्रशेखर आजाद पर तीन तरफ से गोलियां चल रही थीं... लेकिन इसके बाद भी उन्होंने जिस तरह मोर्चा संभाला और 5 अंग्रेज सिपाहियों को हताहत कर दिया था... वो अत्यंत उच्च कोटि के निशाने बाज थे... अगर मुठभेड़ की शुरुआत में ही चंद्रशेखर आजाद की जांघ में गोली नहीं लगी होती तो शायद एक भी अंग्रेज सिपाही उस दिन जिंदा नहीं बचता!
-शत्रु भी जिसके शौर्य की प्रशंसा कर रहे थे...

मातृभूमि के प्रति जिसके समर्पण की चर्चा पूरे देश में होती थी.. जिसकी बहादुरी के किस्से हिंदुस्तान के बच्चे-बच्चे की जुबान पर थे उन महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की शव यात्रा में शामिल होने से इलाहाबाद के कांग्रेसियों ने ही इनकार कर दिया था!

-उस समय के इलाहाबाद... यानी आज का प्रयागराज... इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में जिस जामुन के पेड़ के पीछे से चंद्रशेखर आजाद निशाना लगा रहे थे... उस जामुन के पेड़ की मिट्टी को लोग अपने घरों में ले जाकर रखते थे... उस जामुन के पेड़ की पत्तियों को तोड़कर लोगों ने अपने सीने से लगा लेते थे । चंद्रशेखर आजाद की मृ्त्यु के बाद वो जामुन का पेड़ भी अब लोगों को प्रेरणा दे रहा था... इसीलिए अंग्रेजों ने उस जामुन के पेड़ को ही कटवा दिया... लेकिन चंद्रशेखर आजाद के प्रति समर्पण का भाव देश के आम जनमानस में कभी कट नहीं सका!

- जब इलाहाबाद (आज का प्रयागराज) की जनता अपने वीर चहेते क्रांतिकारी के शव के दर्शनों के लिए भारी मात्रा में जुट रही थी... लोगों ने दुख से अपने सिर की पगड़ी उतार दी... पैरों की खड़ाऊ और चप्पलें उताकर लोग नंगें पांव चंद्रशेखर आजाद की शव यात्रा में शामिल हो रहे थे... उस समय शहर के कांग्रेसियों ने कहा कि हम अहिंसा के सिद्धांत को मानते हैं इसलिए चंद्रशेखर आजाद जैसे हिंसक व्यक्ति की शव यात्रा में शामिल नहीं होंगे!
- पुरुषोत्तम दास टंडन भी उस वक्त कांग्रेस के नेता थे और चंद्रशेखर आजाद के भक्त थे । उन्होंने शहर के कांग्रेसियों को समझाया कि अब जब चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु हो चुकी है और अब वो वीरगति को प्राप्त कर चुके हैं तो मृत्यु के बाद हिंसा और अहिंसा पर चर्चा करना ठीक नहीं है.. और सभी कांग्रेसियों को अंतिम यात्रा में शामिल होना चाहिए । आखिरकार बहुत समझाने बुझाने और बाद में जनता का असीम समर्पण देखने के बाद कुछ कांग्रेसी नेता और कांग्रेसी कार्यकर्ता डरते हुए चंद्रशेखर आजाद की शव यात्रा में शामिल होने को मजबूर हुए थे!

-चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु साल 1931 में हो गई थी... लेकिन उनकी मां साल 1951 तक जीवित रहीं... आजादी साल 1947 में मिल गई थी... लेकिन आजादी के बाद 4 साल तक भी उनकी मां जगरानी देवी को बहुत भारी कष्ट उठाने पड़े थे । माता जगरानी देवी को भरोसा ही नहीं था कि उनके बेटे की मौत हो गई है वो लोगों की बात पर भरोसा नहीं करती थीं । इसलिए उन्होंने अपने मध्यमा अंगुली और अनामिका अंगुली को एक धागे से बांध लिया था । बाद में पता चला कि उन्होंने ये मान्यता मानी थी कि जिस दिन उनका बेटा आएगा उसी दिन वो अपनी ये दोनों अंगुली धागे से खोलेंगी लेकिन उनका बेटा कभी नहीं लौटा... वो तो देश के लिए अपने शरीर से आजाद हो गया था...

- आजाद के परिवार के पास संपत्ति नहीं थी... गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ था... पिता की मृत्यु बहुत पहले ही हो चुकी थी... बेटा अंग्रेजों से लडता हुआ बलिदान हो चुका था... ये जानकर सीना फट जाता है कि आजाद की मां आजादी के बाद भी पड़ोस के घरों में लोगों के गेहूं साफ करके और बर्तन मांजकर किसी तरह अपना गुजारा चला रही थी!

- किसी कांग्रेसी लीडर ने कभी आजाद की मां की सुध नहीं ली... जो लोग जेलों में बंद होकर किताबें लिखने का गौरव प्राप्त करते थे और बाद में प्रधानमंत्री बन गए उन लोगों ने भी कभी चंद्रशेखर आजाद की मां के लिए कुछ नहीं किया!वो एक स्वाभिमानी बेटे की मां थीं... बेटे से भी ज्यादा स्वाभिमानी रही होंगी किसी की भीख पर जिंदा नहीं रहना चाहती थीं!लेकिन क्या हम देश के लोगों ने उनके प्रति अपना फर्ज निभाया है?