कभी जाने नही दी है वतन की आबरू हमने
किया है जान देकर आज खुद को सुखरू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन.....
हकीकत है ये कुर्बानी कभी तो गुल खिलायेगी
चमन को सींच कर अब तक बहाया जो लहू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन........
हमे है फख अपने ही वतन के काम आयी है।
दिलो में सरफरोशी की जो की थी आरजू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन.......
हमारी कामयाबी से जमाने भर में महकेंगे।
वफ़ादारी के फूलों को दिए है रंगबू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन.......
फ़िजा में यू ही लहराता रहेगा देश का परचम।
नही अब तक किया है दुश्मन के आगे सरनम हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन.....…...
ख़बर क्या थी निभायेंगे वही यो दुश्मनी जिसने।
गले मिलकर हजारों बार की है गफ़्तम हमनें।।
कभी जाने नही दी है वतन........
किया मजबूर हमको जंग लड़ने के लिए वर्ना।
न छोड़ी है कभी अपनी शराफ़त अपनी खू हमने।।
कभी जाने नही दी है वतन...........
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें