लानत है उस जीवन को जो माँ की लाज बचा न सके।
गीदड़ बन जाता है वह जो भृष्टाचार हटा न सके।।
कसम तिरंगे की है माँ लाज रखेंगें।
हर पहलू से निपटने का अंदाज रखेगें।
साथ मिले या न मिले गम नही है माँ
हम अकेले ही किसी से कम नही है माँ
हम संभल कर अपना कदम आज लिखेंगे।
कसम तिरंगे की ........
दिन काटे है वंशज मेरे खा घास की रोटी
छूने न देंगे हम कभी हिमगिरि की वो चोटी
तेरे सर पे हिन्द का हम ताज रंखेंगे।।
कसम तिरंगे की ........
भृष्टाचार को अब हम पनपने नही देंगे
स्वप्न गांधी जी का हम कभी नही मिटने देंगे
कायम अपने देश का स्वराज रंखेंगे।।
कसम तिरंगे की ........
हम उलझ रहे है पर सुलझ के रहेंगे,
क्या उचित है क्या नही समझ कर रहेंगे
पाक हर नापाक का मिज़ाज रंखेंगे।।
कसम तिरंगे की ........
रचना- मंगला सिंह पुत्र स्वर्गीय अच्छेलाल सिंह
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर २३२३३२
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें