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वायु मुद्रा सूर्य मुद्रा ज्ञान मुद्रा ध्यान मुद्रा- युश महाराज ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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मंगलवार, 6 मार्च 2018

वायु मुद्रा सूर्य मुद्रा ज्ञान मुद्रा ध्यान मुद्रा- युश महाराज







सूर्य का अर्थ होता है अग्नि,  सूर्य मुद्रा को करने से हमारे भीतर के अग्नि तत्व संचालित होते हैं। सूर्य की अँगुली अनामिका को रिंग फिंगर भी कहते हैं। इस अँगुली का सीधा संबंध सूर्य और यूरेनस ग्रह से होता है । सूर्य ऊर्जा स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है और यूरेनस कामुकता, अंतर्ज्ञान और बदलाव का प्रतीक है। सूर्य को सेहत और उर्जा का प्रतीक माना जाता है। सूर्य मुद्रा को लोग अग्नि मुद्रा के नाम से भी जानते हैं।



यह मुद्रा पृथ्वी मुद्रा के विपरीत है । यह मुद्रा सूर्य के गुणों का हमारे शरीर में विस्तार करती है तथा पृथ्वी तत्व की अधिकता को कम करती है ।



वायु मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में वायु का संतुलन बना रहता है । आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर के अंदर चौरासी तरह की वायु होती है और वायु चंचलता की निशानी है वायु की विकृति मन की चंचलता को बढ़ाती है इसलिए मन को एक ही जगह स्थिर रखने के लिए वायु-मुद्रा का अभ्यास किया जाता है माना जाता है की जब तक शुद्ध वायु शरीर को प्राप्त नहीं हो जाती तब तक हमारा शरीर रोगी रहता है । शरीर को रोगों से बचाने के लिए वायु मुद्रा का अभ्यास किया जाता है ।  सामान्य तौर पर इस मुद्रा को कुछ देर तक बार-बार करने से वायु विकार संबंधी समस्या की गंभीरता 12 से 24 घंटे में दूर हो जाती है। चलिए जानते



अपने हाथ की तर्जनी उंगली को अपने अंगूठे से मिला लें लेकिन उंगली और अंगूठा सिर्फ एक-दूसरे को हल्के से छूते हुए ही हों उन पर दबाव नहीं पड़ना चाहिए। इसमें हाथों की आकृति ज्ञान मुद्रा जैसी बनती है इसीलिए इसे ध्यान ज्ञान मुद्रा  कहा जा सकता है। ध्यान मुद्रा  से लाभ-. इस मुद्रा को करने से दिमाग तेज होता है। मन को एक जगह लगाने वाली याददाश्त तेज होती है तथा नींद न आना और तनाव जैसे रोग समाप्त हो जाते हैं।