गुरुवार, 30 मार्च 2017

विवशता- मरती क्यों नही चिड़िया - एम डी सिंह

विवशता :::
चिड़िया
घर के सामने
पेड़ पर चीखती है
नारे लगाती है मेरे विरुद्ध
बच्चों के साथ चहचहा कर खेलती है
फुदक फुदक कर नाचती है
गड़ती है मेरी आंखों में
किरकिरी की तरह
मुझे हंसी क्यों नहीं आती
मेरे बच्चे मेरे साथ खेल क्यों नहीं पाते
आता है गुस्सा
चिढ़ाती है मुझको
मारता हूं ढेले भगाता हूं उसको
उड़-उड़ बार-बार बैठ जाती है
डरती क्यों नहीं चिड़िया
नहीं जानती
हूं कितना वहशी
बेदर्द स्वार्थी भय का प्रतीक
वह तो बस चिड़िया
जीभ का स्वाद पेट का आहार
मारता हूं रोज नोचता हूं पंख
भूनता हूं खाता हूं
चिड़िया पेड़ पर
घोसले में
फिर भी चाहचहाती है
मरती क्यों नहीं चिड़िया ?
डॉ एम डी सिंह


शुक्रवार, 17 मार्च 2017

काश ये रोशनी के शहर नही होते - डा एम डी सिंह

काश  ये  रोशनी  के  शहर नहीं  होते
तो  फिर  ये  हादसों  के घर नहीं होते

अस्ल  तल्खियां  गुनहगार  हैं  वरना
यूं  खंजर  कभी  खूँ  से तर नहीं होते

है  इल्म  जो हम सब  को  डराती  है
वरना   इतने  कहीं  पे  डर नहीं  होते

फिक्र झूठ को सच करने की न होती
सच मुच  अफवाहों  के पर नहीं होते

खोल गर निगाहें चलते कहीं तुम भी
मौत के  इल्जाम इतने सर नहीं होते

़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़डॉ एम डी सिंह

गुरुवार, 9 मार्च 2017

कश्मीर की नाजुक कली हो तुम- लव तिवारी

कश्मीर की नाजुक कली हो तुम
बिन कहे चहकती ग़ज़ल हो तुम

कोई नही तुम्हारा बिना मेरा यहाँ
मेरी जिंदगी और आशिकी हो तुम

कभी रातो में एक खुशनुमा ख़्याल
तो कभी दिलो की धङकन हो तुम

धुप और गर्मी सी बेहाल है  जिंदगी
शीतलता के लिए शज़र हो तुम

लहरों तूफान में डुबू अगर मैं कही
बन के साहिल किनारें की मंजिल हो तुम




रचना - लव तिवारी

रविवार, 5 मार्च 2017

आती कैसे नींद करवट को मैंने- ऍम डी सिंह

आती   कैसे   नींद  करवटों   को   मैंने  ख्वाब  लुटाते  देखा
आवारा   कमबख़्त   ख़यालों   को   मैंने  नीद  चुराते  देखा

कैसे  करूं  शिकायत  किसने मेरा  घर जलाया खाक किया
मेरे   ही   हाथों   मशाल  थी  जिन्हें  मैंने  आग  लगाते  देखा

पतवारों  को   छीन  हवाओं  ने  जब   नावों  के  बदले  पांव
मैंने  खुद  को  सर  ऊंचा  कर तूफानों को पास  बुलाते देखा

कभी   कालरें  मेरी   तुमने  मुड़  टूट  रही  हैं  कब  ये सोचा
दुनिया  ने   तमाशाई   बन  के  आस्तीनें  ऊपर  जाते   देखा

बड़ा  आदमी  बड़ी  हवेली  थी  फिर  भी आज न जाने क्यों
बेहद तंग सबिस्तां में लेजा कर ना किसने मुझे सुलाते देखा

 
सबिस्तां -शयनगृह
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़डॉ एम डी सिंह

शनिवार, 4 मार्च 2017

कल तक जो ख्वाब था वो हकीकत हो तुम - लव तिवारी

कल तक जो ख्वाब था वो हकीकत हो तुम
जिंदगी कैसे जिये अब मोहब्बत हो तुम

धड़कते दिल की आहट में शोर सा है खुशनुमा
तपतपाती धुप  में  एक शजर हो तुम

मेरी दुनिया तुमसे है और ग़ज़ल रंगीन भी
शायरी के हर लब्ज़ में एक बसर हो तुम

रात की तन्हाइयो में देते हो एक अहसास
बन जाती हो ग़ज़ल मेरी आशिकी हो तुम

ख्वाब का वो दौर जब तुम आती हो सामने
दिल झूम उठता है  बस हर ख़ुशी हो तुम

रचना -लव तिवारी 03-03-2017
संपर्क सूत्र- +91-8010060609
Visit- lavtiwari.blogspot.in\