आती कैसे नींद करवटों को मैंने ख्वाब लुटाते देखा
आवारा कमबख़्त ख़यालों को मैंने नीद चुराते देखा
आवारा कमबख़्त ख़यालों को मैंने नीद चुराते देखा
कैसे करूं शिकायत किसने मेरा घर जलाया खाक किया
मेरे ही हाथों मशाल थी जिन्हें मैंने आग लगाते देखा
मेरे ही हाथों मशाल थी जिन्हें मैंने आग लगाते देखा
पतवारों को छीन हवाओं ने जब नावों के बदले पांव
मैंने खुद को सर ऊंचा कर तूफानों को पास बुलाते देखा
मैंने खुद को सर ऊंचा कर तूफानों को पास बुलाते देखा
कभी कालरें मेरी तुमने मुड़ टूट रही हैं कब ये सोचा
दुनिया ने तमाशाई बन के आस्तीनें ऊपर जाते देखा
दुनिया ने तमाशाई बन के आस्तीनें ऊपर जाते देखा
बड़ा आदमी बड़ी हवेली थी फिर भी आज न जाने क्यों
बेहद तंग सबिस्तां में लेजा कर ना किसने मुझे सुलाते देखा
बेहद तंग सबिस्तां में लेजा कर ना किसने मुझे सुलाते देखा
सबिस्तां -शयनगृह
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़डॉ एम डी सिंह
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