सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

शरारत के बन्दे शराफत की बातें - एम डी सिंह

शरारत  के   बंदे  शराफत  की  बातें
मवाली के धंधे  हिफाजत  की  बातें

हैरानी   में   सब   को   डाले  हुए  हैं
नियत  मैं   दंगे   इबादत   की   बातें

चोरों   के   घर  सिपाहियों  की दावत
मक्कारी  के फंदे  हिरासत  की  बातें

कोयले  की   दलाली  सफेदी के संग
बैठे   खुद  नंगे   नफासत   की  बातें

पास ना जिनके आज जेब में अधेली
दिखावट  में  चंगे  विरासत  की बातें

.............डॉ एम डी सिंह


सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

कब्र के लिए दो गज जमीन ढुढोगे - एम डी सिंह

डा साहब की कविता अक्सर whatsaap पर आती है और पढ़ कर मन ख़ुशी के साथ उर्दू के कुछ नए शब्दो से भी सामना होता है

मकां नहीं एक  दिन  मकीन  ढूंढोगे
कब्र  के  लिए  दो  गज  जमीन  ढूंढोगे
हर  हाथ  फरेब  बेचेने  वालों सुन  लो
किसी  रोज  तुम  भी  यकीन  ढूंढोगे
खुदगर्जिओं  के  बाजार  में खड़े बेकस
ऐ  खुशफहम  एक  दिन  ख़दीन  ढूंढोगे
खुद  पे  बेईमान  कुछ  तो  रहम  करो
न  मिलेगा  जब  तुम  अमीन  ढूंढोगे
खत्म करने की फिक्र में हो जिसे आजकल
एक  दिन  तुम  मादा  जनीन  ढूंढोगे

मकीन - रहने वाला
ख़दीन -दोस्त
अमीन - ईमानदार
मादा जनीन - गर्भस्थ बच्ची 

डॉ एम डी सिंह


शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

मेरी ग़ज़लों में तू और तुझ पर मैं फ़िदा हूँ - लव तिवारी

जान ले लेती है मेरी ये होंठो पर तेरी काली तिल
लोग कहते हैं कि मयकदो का वासिन्दा हूँ

ज़ुल्फ़ तेरे जो लगते है एक सुहानी छाव की तरह
दुनिया समझी है मै घने जंगल का परिंदा हूँ

तेरे सख्सियत से उभरे मेरे हुनर और क़ाबलियत
मेरी ग़ज़लों में तू और तुझ पर मैं फ़िदा हूँ

ये आँखे चेहरा और इसपर एक गुलाबी लिबास
कयामत हो जाती तभी तो मैं मर कर भी जिन्दा हु




गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

तेरे हुस्न की क्या तारीफ करू- लव तिवारी

तेरे हुस्न की क्या तारीफ करू
तू सबसे अलग है और सबसे हसीन

तुझे जब से देखा भूल गया
मुझे क्या मिला और क्या नही

तेरे ज़ुल्फ़ की सुखद छांव में
मुझे मिलता है एक सुकून सही

तेरे एक झलक को पाने को
मैं कब से हूँ  बेचैन  यही

तू मिल गयी तो सबकुछ मिला
मुझे किसी बात का अब मलाल नही

रचना- लव तिवारी


बिगड़ लेने दे इतना सुधरने का मज़ा आ जाये डॉ एम डी सिंह

कद्दावर   के   आगे   मुकरने  का  मजा  आए
हो   सामने   पहाड़   ठुकरने   का  मजा आए

राहें   न   बत   आसां   रहबर    और   हमको
दुश्वार   डगर   हो   गुजरने   का   मजा  आए

चढ़ने  दे  दोस्त  इतना  नीचे न  दिखे कुछ भी
गहरी    हो   घाटी   उतरने   का   मजा   आए

मिल जाए गर किसी के  सपनों को पर हमीसे
फिर ख्वाब कुछ अपने कुतरने का मजा आए

नसीहतें   सभी   तेरी   हम   मान   लें   नासेह
बिगड़  लेने  दे  इतना  सुधरने  का मजा आए

.......डॉ एम डी सिंह

सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

याद आयी माँ बहुत जब खत मिला - जसवंत सिंह

याद आयी माँ बहुत जब खत मिला-2
रुक न पाया आँसुओ का सिलसिला
याद आयी माँ........

माँ के हर अल्फ़ाज से गम की उठी ऐसी लहर
सो सका न चैन से एक पल भी रात भर
वक़्त से करता रहा रो कर गिला
याद आयी........

कितने बचपन के सुहानी  दिन जहन पर छा गए
संग जिनके खेलता था याद वो सब आ गए
कैसे अब लौटेगा वो बचपन भला
याद आयी माँ .........

मैं शहर की भीड़ में आया तो आकर खो गया
मेरा चेहरा मुझसे ही कुछ अजनबी सा हो गया
फूल ख्वाबो का नही कोई खिला
याद आयी माँ ........

भेजती है बहन राखी, रो के लिखती है मुझे
तू तो मुझको भूल बैठा कैसे मैं भूलू तुझे
टूट जाता है मेरा तब हौसला
याद आयी माँ.........

दर बदर भटका हु कितना नौकरी के वास्ते
माँ को कैसे मैं लिखू गुजरे है क्या क्या वास्ते
चाह कर मैं नही पाता भुला
याद आयी माँ.........

आगे लिखती है माँ कैसे रखूं मैं हौसला
कोई पंछी तक न अपना भूलता है घोसला
आ सहा जाता नही अब फासला
याद आयी माँ......


रविवार, 5 फ़रवरी 2017

सुबह से शाम तक तेरा ख्याल रहता है - लव तिवारी

सुबह से शाम तक तेरा ख्याल रहता है
तुम जो मेरे नही हो इसका मलाल रहता है

बड़ी उम्मीद है तुमसे जो तुम हो जाओगे अपने
इसी वास्ते तुझपर हरदम ख़ुमार रहता है

कभी सोते कभी जागते सोचता हूं तुम्हें अक्सर
खुली और बन्द आँखों से तेरा दीदार होता है

बड़े दुश्मन है दुनिया में इस दिल्लगी के
यहाँ फ़रेबी बन कर चमत्कार होता है

हालात अपने जो बत्तर हुए तुम्हे चाहने से
तेरे करार से जिंदगी बहाल होता है

रचना- लव तिवारी
05-02-2017

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

गांव तेरे गोद में बचपन सुहाना बीत गया- लव तिवारी

गांव तेरे गोद में बचपन सुहाना बीत गया
चंद गलिया और अपनों में दिन पुराना बीत गया

पनघटों पर भरती गगरी और रात की लोरिया
ऐसी जिंदगी को देखते-2 एक जमाना बीत गया

मैं बड़ा क्यों हुआ और आया क्यों परदेश में
आज कुछ सोचूँ तो रोऊ मुस्कुराना बीत गया

खेत और खलिहान के वो पग डंडों से रास्ते
चिड़ियों की कतुहल के स्वर का आना बीत गया

गांव की गोरी की मुस्काती छवि और प्यार भी
कैसे उनको भूलू मैं उनका शर्माना बीत गया

चाँदनी रातो में छत पर मिलने को बेकरारी सी
थी नजाकत और शराफ़त फिर ख़ामोशी से आना बीत गया

प्रस्तुति- लव तिवारी
रचना- 02-02-17



बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

सरस्वती बंदना - सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे।


ज्ञान विद्या वाणी वीणा संगीतसुधा व आचरण की देवी मां भगवती सरस्वती के जन्मदिवस व वसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।
सभी में सद् बुद्धि का संचार हो।