सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

कब्र के लिए दो गज जमीन ढुढोगे - एम डी सिंह

डा साहब की कविता अक्सर whatsaap पर आती है और पढ़ कर मन ख़ुशी के साथ उर्दू के कुछ नए शब्दो से भी सामना होता है

मकां नहीं एक  दिन  मकीन  ढूंढोगे
कब्र  के  लिए  दो  गज  जमीन  ढूंढोगे
हर  हाथ  फरेब  बेचेने  वालों सुन  लो
किसी  रोज  तुम  भी  यकीन  ढूंढोगे
खुदगर्जिओं  के  बाजार  में खड़े बेकस
ऐ  खुशफहम  एक  दिन  ख़दीन  ढूंढोगे
खुद  पे  बेईमान  कुछ  तो  रहम  करो
न  मिलेगा  जब  तुम  अमीन  ढूंढोगे
खत्म करने की फिक्र में हो जिसे आजकल
एक  दिन  तुम  मादा  जनीन  ढूंढोगे

मकीन - रहने वाला
ख़दीन -दोस्त
अमीन - ईमानदार
मादा जनीन - गर्भस्थ बच्ची 

डॉ एम डी सिंह


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