डा साहब की कविता अक्सर whatsaap पर आती है और पढ़ कर मन ख़ुशी के साथ उर्दू के कुछ नए शब्दो से भी सामना होता है
मकां नहीं एक दिन मकीन ढूंढोगे
कब्र के लिए दो गज जमीन ढूंढोगे
कब्र के लिए दो गज जमीन ढूंढोगे
हर हाथ फरेब बेचेने वालों सुन लो
किसी रोज तुम भी यकीन ढूंढोगे
किसी रोज तुम भी यकीन ढूंढोगे
खुदगर्जिओं के बाजार में खड़े बेकस
ऐ खुशफहम एक दिन ख़दीन ढूंढोगे
ऐ खुशफहम एक दिन ख़दीन ढूंढोगे
खुद पे बेईमान कुछ तो रहम करो
न मिलेगा जब तुम अमीन ढूंढोगे
न मिलेगा जब तुम अमीन ढूंढोगे
खत्म करने की फिक्र में हो जिसे आजकल
एक दिन तुम मादा जनीन ढूंढोगे
एक दिन तुम मादा जनीन ढूंढोगे
मकीन - रहने वाला
ख़दीन -दोस्त
अमीन - ईमानदार
मादा जनीन - गर्भस्थ बच्ची
ख़दीन -दोस्त
अमीन - ईमानदार
मादा जनीन - गर्भस्थ बच्ची
डॉ एम डी सिंह
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