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भारत में राजनिति की दुर्गम स्थिति ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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रविवार, 5 जून 2016

भारत में राजनिति की दुर्गम स्थिति

लम्बा सफर और सफ़र के साथी मोबाइल फ़ोन और कुछ किताबे , किताबो को लेकर एक विशेष रोचक बात जहाँ में है  किताबो में जो बात है वो कही और नहीं, पुरे सफ़र किताबो के सहारे  तो नहीं गुजारी जा सकती , फिर क्या किताब के साथ मोबाइल फ़ोन का जिक्र किया था हमने, अक्सर सफ़र को रोचक और यादगार बनाने जे लिए मोबाइल फ़ोन में पुराने फिल्मो का कुछ बेहतरीन कलेक्शन होते है , आज के सफ़र में एक फ़िल्म सूत्रधार को देखने और भारतीय राजनीती की मिलती जुलती मिशाल को दर्शाती इस फ़िल्म की विशेष कहानी है

भारतीय राजनीती भी इसी तरह के सूत्रधार पर आधारित रह कर सीमट सी गयी है जैसे फ़िल्म में  कुमार जब तक राजनीती में नहीं रहता उसे देश सेवा और अपने गांव क्षेत्र का विकास चाहिए होता है लेकिन राजनीती में जाने के बाद वो भी कई साजिश और संयत्र को अंजाम देता है, वास्तविकता को दर्शाती एक जब तक कोई व्यक्ति नेता नहीं रहता उसमे देश प्रेम और सेवा की भावना होती है जैसे वो नेता बनता है उसे अपने कुर्सी और राजनीति में अपने और ऊँचे और बड़े पदों की पाने की लालसा बढ़ती जाती है, इस काम को अंजाम देने के लिए उसके द्वारा विभिन्न प्रकार के अनैतिक कार्य को अंजाम देना पड़ता है , भारतीय पूर्व प्रधानमंत्रियों में मेरे सबसे योग्य और निष्टावान वक्तित्व के दो प्रधानमंत्री मेरे आदरणीय है एक तो स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ,  भारतीय सामाजिक व्वस्था को सही ढंग से चलने के लिए संविधान ने मुख्य रूप से  कार्यपालिका , न्यायपालिका और व्वस्थापलिका का गठन किया और जब व्वस्थापलिका का पूरा दायित्व जब भारत के ऐसे राजनीतिज्ञों के हाथ होगी जो फ़िल्म सूत्रधार जैसे कार्यो को अंजाम देगे , मैंने किसी राजनैतिक पार्टी का इस पोस्ट में नाम नहीं लिया है इस पोस्ट को अन्यथा न ले
प्रस्तुति
धन्यबाद - लव तिवारी