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Bulandi Der Tak Kis Shakhsh ke Hisse ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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सोमवार, 2 नवंबर 2015

Bulandi Der Tak Kis Shakhsh ke Hisse

बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है

बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है

जी तो बहुत चाहता है इस कैद-ए-जान से निकल जाएँ हम
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है

अमीरी रेशम-ओ-कमख्वाब में नंगी नज़र आई
गरीबी शान से एक टाट के परदे में रहती है

मैं इंसान हूँ बहक जाना मेरी फितरत में शामिल है
हवा भी उसको छू के देर तक नशे में रहती है

मोहब्बत में परखने जांचने से फायदा क्या है
कमी थोड़ी बहुत हर एक के शज़र* में रहती है

ये अपने आप को तकसीम* कर लेते है सूबों में
खराबी बस यही हर मुल्क के नक़्शे में रहती है

शज़र  =  पेड़
तकसीम  =  बांटना