
चुप लोग ही तो बोलते हैं जनाब जोर सेभर देते हैं चुप रहकर भी दिमाग शोर सेखुशियां बटोर कर वे रख लेते हैं चुपचापगुस्सा भी तह कर रखते रहते हैं भोर सेसुनता है भला सोचिए कौन आपके सिवाजब बोलती हैं कभी हड्डियां पोर-पोर से महज आंसू नहीं दोस्त टपकते हैं हर घड़ीकभी रक्त भी उबलते हैं आंखों की कोर सेमत सोचिए सिर्फ बर्फ ही जमेगी पहाड़ परनिकलेगी फूट आग भी चोटी की ओर सेडाॅ एम डी स...