शनिवार, 30 नवंबर 2019

चारों वर्णों के उदय ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र - लव तिवारी

ब्राह्मण 

              एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर वामपंथी विचारधारा और भीमवादी ईर्ष्या से भर उठते हैं, मुस्लिम समुदाय ब्राह्मण शब्द उच्चारण से भी कतराते हैं, आखिर ये शब्द ब्राह्मण है, क्या।क्यों इतनी नफ़रत इस एक नाम से?व्यवहार पटल और सामाजिक परिदृश्य से उक्त प्रश्न की समीक्षा:-

उत्पत्ति:-
                 मनुष्य योनि में सर्वप्रथम ब्राह्मण की उत्पत्ति होती है।यानी ब्राह्मण के सिवाय कोई और वर्ग नहीं था,उस समय और सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों की संख्या भी अत्यल्प थी,तब आवश्यकता भी उनकी सीमित ही थी,इसके पीछे दो कारण प्रयुक्त थे,मंत्र शक्ति और संख्या में अत्यल्पता। 

                जैसे जैसे आबादी बढ़ी,आवस्यकता में भी वृद्धि हुई,और आबादी का विस्तार ही उन्नत व्यवहार क्रम के पालन का सबसे बड़ा बाधक बना, जिससे संस्कार हीनता उत्पन्न हुई,और संस्कारहीनता ने अविद्या को जन्म दिया,जिसका परिणाम यह हुआ,की मंत्र शक्ति से मंत्र और भौतिक दोनों युक्ति का इस्तेमाल किया जाने लगा,मंत्रशक्ति के अवनमन और भौतिकता के उदय ने संचय को जन्म दिया,यही से संचय संरक्षण की आवश्यकता महसूस की जाने लगी।जिसके परिणाम स्वरूप एक मजबूत वर्ग का निर्माण हुआ,जिसे क्षत्रिय वर्ण के नाम से जाना जाता है।

                        क्षत्रिय समाज के उदय से जहाँ एक ओर भौतिकता को आरक्षण मिला,वही सत्ता नाम की दुर्व्यवस्था का भी उदय हुआ,और यही से शक्ति प्रदर्शन आरम्भ हुआ,जिसके कारण ज्यादा संचय और डर की भावना का जन्म हुआ,संचय और रक्षण के परिणाम स्वरूप क्षत्रियों को दिया जाने वाला कर ही वैश्य वर्ण का जन्मकारण बना।क्योंकि हम आपसे सेवा लेगा,तो हमारा कर्तव्य बनता है,की आपकी आवस्यकता की पूर्ति हम करें।यही आवस्यकता और आबादी विस्तार वैश्य वर्ण का जन्मकारण हुआ।

                     वैश्य समाज की उत्पत्ति से जहाँ एक ओर ब्राह्मण हासिये पर जाने लगे,वही भौतिकता के चरम के कारण वैश्य वर्ण निरन्तर आगे बढ़ता गया।परन्तु सभी की एक निश्चित सीमा होती है, उस सिमा के बाद अन्य का उदय निश्चित ही होता है।उसी प्रकार वैश्य में कार्यभार वृद्धि शुद्र या श्रमिक वर्ग की उत्पत्ति का कारण बना।एक ओर जहाँ संस्कार के अवनमन के कारण ही समस्त वर्गों का निर्णय हुआ,वही इन वर्णों में जटिलता और उपवर्ग विस्तार भी हुआ।

                   इस प्रकार चारों वर्णों के उदय का एकमात्र कारण संस्कार हनन ही था,जो जनसंख्या वृद्धि के परिणाम स्वरूप आरम्भ हुआ।और अन्य वर्णों में भी यही संस्कारजन्य अवनमन अनेक वर्गों का निर्माण का कारण बना।
                    उपर्युक्त आधार पर देखने से ज्ञात हो जाता है,की ब्राह्मण निश्चित ही संस्कर ही है, न यह कोई वर्ण है,न जाति है,न ही कोई पदवी।संदर्भ:-श्रुति।
अब प्रश्न यह उठता है,की जिस प्रकार यह तर्क दिया जाता है, की कर्म से सभी ब्राह्मण और शूद्र बनते हैं, वे कृपया यह बताने का कष्ट करें, की #ब्राह्मण_का_कर्तव्य_क्या_है? क्योंकि संस्कार का कोई व्यवहार कर्म तो लक्षित नहीं होता,और कर्म प्रकार से  देखा जाय तो कर्म सप्तभूमिका अनुसार ही होता है,जो उन्नत और उत्तम संस्कारजन्य ब्राह्मण होगा,वह उत्तम भूमिका में ही कर्म करेगा।और जो निम्न संस्कारजन्य होगा,वह निम्न।
                         यह प्रश्न यही पर दम तोड़ देता है,की कोई भी कर्म से ब्राह्मण या शूद्र होता है।अगर इस तर्क को स्वीकृति दी जाय, तो यह प्रमाणित करने की सामर्थ्य किसी मे भी नहीं, की ब्रह्मविद्या की ग्रहणशीलता अनेकों जन्मों के उत्तम संस्कार का परिणाम ही होती है।जो उसके पूर्वजन्मों के उत्तम कर्मों के फलस्वरूप उसे प्राप्त होती है।संदर्भ:-गीता,गरूण पुराण।

#दण्ड_विधान_से_ब्राह्मण:-
                                आजकल वामी और भीमवादियों से अक्सर सुनने को मिलता है, की #मनुस्मृति में वर्णित दंडविधान में सबसे कम या नगण्य सजा ब्राह्मण को ही बताई गई है, जबकि सर्वाधिक सजा शुद्र वर्ण को।उनके लिए एक सामान्य से तर्क जो मनुष्य उत्तम संस्कारजन्य वर्तन करने वाला हो,जिसके #समस्त_कर्म_अकृतक अवस्था के हों,भला वह किस प्रकार किसी को हानि पहुंचा सकता है,अगर दुर्भाग्यवश उससे किसी को कोई क्षति हो भी जाती है,तो वह उस क्षति का कारक स्वयं को ही स्वीकार कर स्वयं को नष्ट करना ज़्यादा उचित समझेगा।क्योंकि संस्कारजन्य हनन एक बार हुआ,तो उसकी भरपाई कठोर तप से ही पूरी की जा सकती है।जो कोई भी राजा या समाज उतनी कठोरतम सजा नहीं दे पाएगा।
          फिर भी मनुस्मृति में शुद्र की सज़ा का दुगना वैश्य,वैश्य का दुगना क्षत्रिय और क्षत्रिय का चार गुना सज़ा का प्रावधान ब्राह्मण के लिए किया गया है।राजकरण से सजा में चूक होने पर न केवल राजा का सिंहासन च्युत होना कहा गया है,बल्कि ब्राह्मण का तत्काल वानप्रस्थ जीवन का उल्लेख मिलता है।
                           इस प्रकार जो ब्राह्मण रूपी संस्कार को धारणा करने वाला है, वही ब्राह्मण है,वह जन्म से ही ब्राह्मण है,और अपने कर्म से ब्रह्मपद को पाने का अधिकारी बनता है।वरना गरूण पुराण के उल्लेख से अत्यंत नीच योनि को प्राप्त करने वाला बन चौरासी में ही भ्रमण करता है।

             ★★★ ★जय पशुराम- +919458668566 ★★★★





शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

कल एक छलावा है, आज पर यकीन कर- लव तिवारी

कल एक छलावा है, आज पर यकीन कर ।
जिंदगी का क्या भरोसा, इस पल को अजीज कर।।

रास्ते कई अनजाने है, चलना यहाँ संभल कर ।
हैं जमाना दुश्मन यहाँ, न कोई ऐसी तक़सीर कर ।।

मुझको मिला एक राही, रास्ते मे जो छोड़ गया ।
मैं किस पर भरोसा करू, मिला ऐसा तकदीर गर ।।

तक़सीर - भूल 
रचना- लव तिवारी
दिनांक - 29- नवम्बर-2019



दिन रात रहो मेरे पास तुम- लव तिवारी

कुछ दूर चलो मेरे साथ तुम ।
दिन रात रहो मेरे पास तुम ।।

तेरे बिना मुझे चैन कहाँ ।
आते रहो मुझे याद तुम ।।

ये जिंदगी नही अब तेरे बिना ।
बन जाओ मेरे हमराज़ तुम ।।

तुम बिन कोई मेरा नही ।
मिलते रहो हर बार तुम ।।

ये मौत का अब क्या भरोसा ।
आ जाओ मेरे अब पास तुम।।

रचना- लव तिवारी
दिनांक- 28 नवंबर 2019

गुरुवार, 21 नवंबर 2019

मुझे बहुत प्रिय था साथ तुम्हारा- लव तिवारी

 बहुत प्रिय था बस साथ तुम्हारा।
आते जाते तुम देखा करते थे जो चेहरा हमारा ।।

बड़ी हसीन दौर था और तुम्हारा साथ भी।
नरज किसकी लगी जो सबकुछ बिखर गया हमारा ।।

रचना- लव तिवारी
दिनांक- 20- नंवबर- 2019

बुधवार, 20 नवंबर 2019

मैंने तुम्हें चाहा कहने दो मुझे- लव तिवारी

मैंने तुम्हें चाहा, कहने दो मुझे ।
अब तो अपने दिल मे रहने दो मुझे।।

मेरे जज्बात मेरे दिल की तम्मना हो तुम ।
कब से नही देखा तुम्हे मिलने दो मुझे।।

आओ करीब तुम रखो न फासला मुझसे ।
करो रहम मुझ पर अब न बिछड़ने दो मुझे।।

तुम्हे छोड़ कर रही न कोई ख्वाईश अब तो
अगर बिछड़े तुम  तो मौत ही मिले मुझसे।।

रचना- लव तिवारी
दिनांक- 19- नंवबर-2019



शनिवार, 16 नवंबर 2019

आप की घुड़सवारी किसी की जिंदगी है- लव तिवारी

आपकी घुड़सवारी,किसी की जिंदगी हैं। हर एक जीव जीव होता है दर्द सबको होता हैं,चोट सबको लगती हैं,खून सबको आता हैं,लेकिन ये बेजुबान हैं,ये अपना दर्द आपकी नही बता सकते। एक घुड़सवारी के पीछे इनका दर्द शायद ही कोई जानता हो,जीतता तो सिर्फ इंशान हैं,इस बेजुबान की आँखों पर पट्टी बंधी होती हैं,इसे हार जीत का पता नही,बस आपके इशारों पर दौड़ता हैं,और आपको जीता भी देता हैं, आपकी जीत के पीछे इनका कितना दर्द हैं वो कभी नही सोचा? 

ग़ाज़ीपुर के समाज सेवी प्रवीण तिवारी पेड़ बाबा - लव तिवारी

मेरे पैतृक गांव युवराजपुर ग़ाज़ीपुर से गहरा तालुकात है माननीय श्री प्रवीण तिवारी पेड़ बाबा जी का ननिहाल मेरे गांव मेंं है। आदरणीय गुरू जी श्री प्रवीण तिवारी  का आशीर्वाद हम दोनों भाइयों के छात्र जीवन पर रहा है । आदरणीय गुरु जी को समर्पित ये चार लाइन की कविता

खुद की कश्ती का खुद ही पतवार बनो ।
हो सके निर्बलों के जीवन का मददगार बनो।।

जिंदगी में एक तमन्ना एक ख्वाईश रखो तुम।
मिल जाये दुखिया कोई उसका तुम फरमान बनो।।

नही खुदा इस धरती पर ना कोई भगवान यहाँ।
किसी गरीब की सेवा कर धरती का वरदान बनो ।।

रचना- लव_तिवारी
दिनांक- 15 नंवबर 2019
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर
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बुधवार, 6 नवंबर 2019

जीव हत्या पाप है -लव तिवारी

भीष्म पितामह कुरुक्षेत्र में शरशैया पर पड़े थे..कृष्ण उनसे मिलने आये तो भीष्म बोले कृष्ण मैंने ऐसे कौनसे पाप किये हैं जिनकी इतनी बड़ी सजा मिली. मेरा पूरा शरीर तीरों से बिंधा पड़ा हैं. प्राण निकल नहीं रहे हैं....दर्द इतना हैं की शब्दों में नहीं कहा जा सकता..कृष्ण ने कहा सब पूर्व जन्मो का फल हैं. भीष्म ने कहा मैं पिछले जन्म देखने की कला जानता हूँ...मैंने पिछले 100 जन्म देख लिए हैं कृष्ण मैंने कोई कर्म ऐसा नहीं किया जिसका फल ये हो..कृष्ण ने कहा 101 वां भी देख लो...भीष्म ने देखा की वो अपने रथ से जा रहे थे..आगे सिपाही थे...एक सैनिक आया और बोला महाराज मार्ग में एक सर्प (सांप) पड़ा हैं. रथ उसपर से गुज़र गया तो वह मर जायेगा. भीष्म ने कहा नहीं वह मरना नहीं चाहिए...एक काम करो उसे किनारे फेंक दो. सैनिक ने उसे भाले से उठा कर खाई में फेंक दिया. वह सर्प खाई के एक कंटीले वृक्ष में उलझ गया. जितना प्रयास उससे निकलने को करता उतने ही कांटे उसके शरीर में घुस जाते. कई दिनों टाक उन्ही कांटो में फंसे रहने के बाद उसके प्राण निकले...तब कृष्ण ने कहा पितामह ये तो आपके द्वारा किया वह पाप था जो अनजाने में हुआ...उसका परिणाम इतने जन्मो बाद भी आपको भोगना पड़ रहा हैं...सोचिये जो लोग जान बूझ कर जीव हत्या करते हैं उनकी क्या दशा होगी??

कोई धर्म नहीं कहता की जीव हत्या करो...क़ुरबानी/बलि से आशय जीव की हत्या से नहीं अपितु अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग अल्लाह, इश्वर के प्रति करने से हैं...धर्म पाप का पर्यावाची नहीं विलोम हैं. हत्या से बचें...छुरी चलते वक़्त उस जीव की तड़प को महसूस करें...उसकी वेदना, पीड़ा, कराह, बद्दुआ ही दे सकती हैं आपको दुआ नहीं...
-लव तिवारी