भीष्म पितामह कुरुक्षेत्र में शरशैया पर पड़े थे..कृष्ण उनसे मिलने आये तो भीष्म बोले कृष्ण मैंने ऐसे कौनसे पाप किये हैं जिनकी इतनी बड़ी सजा मिली. मेरा पूरा शरीर तीरों से बिंधा पड़ा हैं. प्राण निकल नहीं रहे हैं....दर्द इतना हैं की शब्दों में नहीं कहा जा सकता..कृष्ण ने कहा सब पूर्व जन्मो का फल हैं. भीष्म ने कहा मैं पिछले जन्म देखने की कला जानता हूँ...मैंने पिछले 100 जन्म देख लिए हैं कृष्ण मैंने कोई कर्म ऐसा नहीं किया जिसका फल ये हो..कृष्ण ने कहा 101 वां भी देख लो...भीष्म ने देखा की वो अपने रथ से जा रहे थे..आगे सिपाही थे...एक सैनिक आया और बोला महाराज मार्ग में एक सर्प (सांप) पड़ा हैं. रथ उसपर से गुज़र गया तो वह मर जायेगा. भीष्म ने कहा नहीं वह मरना नहीं चाहिए...एक काम करो उसे किनारे फेंक दो. सैनिक ने उसे भाले से उठा कर खाई में फेंक दिया. वह सर्प खाई के एक कंटीले वृक्ष में उलझ गया. जितना प्रयास उससे निकलने को करता उतने ही कांटे उसके शरीर में घुस जाते. कई दिनों टाक उन्ही कांटो में फंसे रहने के बाद उसके प्राण निकले...तब कृष्ण ने कहा पितामह ये तो आपके द्वारा किया वह पाप था जो अनजाने में हुआ...उसका परिणाम इतने जन्मो बाद भी आपको भोगना पड़ रहा हैं...सोचिये जो लोग जान बूझ कर जीव हत्या करते हैं उनकी क्या दशा होगी??
कोई धर्म नहीं कहता की जीव हत्या करो...क़ुरबानी/बलि से आशय जीव की हत्या से नहीं अपितु अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग अल्लाह, इश्वर के प्रति करने से हैं...धर्म पाप का पर्यावाची नहीं विलोम हैं. हत्या से बचें...छुरी चलते वक़्त उस जीव की तड़प को महसूस करें...उसकी वेदना, पीड़ा, कराह, बद्दुआ ही दे सकती हैं आपको दुआ नहीं...
-लव तिवारी
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