महात्मा गांधी और हम सब
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महात्मा और हम सबके मध्य
उतना ही अंतराल है
जितना आदर्श और व्यावहारिकता के बीच रहता है
बाबा साहेब ने ठीक कहा था
गांधी दोहरी भूमिका में थे
महात्मा की और राजनेता की
और वह समग्र सत्य के पक्षधर थे
महात्मा के सत्य में दोहरापन नहीं था
दोगलापन तो बिल्कुल नहीं
बाबा साहेब राजनेता के रूप में सत्य के एक पक्ष को छिपाने के पक्षधर थे
और जनता को उतना ही देना चाहते थे
जितने की वह हकदार थी
महात्मा गांधी सत्य पर सबका अधिकार मानते थे
और इसलिए उन्होंने सच को ज्यों का त्यों परोस दिया
वह भूल गए कि
वैयक्तिकता की आत्मसंतुष्टि उतना ही सुनना और पढ़ना चाहती है
जितने से उसकी अहमन्यता सदैव श्रेष्ठता की ग्रंथि में रह सके
जितने से उन सभी धारणाओं का भवन पुष्ट हो सके
जिन्हें चतुर और लोभी शिल्पकारों ने भरपूर भ्रांतियों के बालू
और न्यूनतम सत्य के सीमेंट पर खड़ा किया है
महात्मा गांधी मंहगे शिल्पकार हैं
उनकी कीमत सभी अदा नहीं कर सकते
उनकी सेवाएं लेने के लिए अपनी अधकचरी मान्यताओं अधपके ज्ञान की सीमाओं से बाहर आना पड़ता है
जल्दबाजी की प्रवृत्ति से जूझना पड़ता है
अपनी जाति और धर्म के बाड़े से निकलने के लिए छलांग लगानी पड़ती है
अपने वैचारिक खूंटे को खुद ही चरने के लिए जिद्दी दांतों को दांव पर लगाना पड़ता है
क्योंकि इस शिल्पकार के अनुसार, धैर्य ही धर्म का मूल है
उसका धर्म निर्माण की वकालत करता है, विध्वंस की नहीं
और निर्माण समय लेता है
एक तबका उसे राष्ट्रपिता कहता है
और बिगड़ैल पुत्र की भांति उसके अनुभवजनित निष्कर्षों को ठोकर मारता रहता है
जातीय और साम्प्रदायिक उन्माद को उकसाने वाली शक्तियों के साथ खड़ा रहता है
सत्ता के लिए राष्ट्र को खोखला करने वाली नीतियों का पक्षधर है
नाम में पिता की तरह गांधी जोड़ने के बावजूद
एक तबका भूल जाता है कि
उसके पिता सत्ता के साथ नहीं सत्य के साथ प्रयोग करते थे
एक आबादी उसके राष्ट्रपिता होने से असंतुष्ट है
चलो ठीक है
वह राष्ट्रपुत्र हैं
लेकिन इस राष्ट्र के ऐसे पुत्र को कम से कम तुम ही राष्ट्रपुत्र की उपाधि दे दो
जिसने राष्ट्रपिता कहा उसे कहने दो
तुमने क्या कहा
मजबूरी का नाम महात्मा गांधी?
क्या विवशता थी मोहनदास की
जिसने बैरिस्टरी, विलासिता और वैभव छोड़कर फकीरी अपना ली
कितना धन मिला था उसे रंगभेद से लड़ने के लिए
कौन सा लाभकारी पद लिया था उसने स्वाधीनता संग्राम में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने के लिए
आजादी के साथ उसे गोली मिली
और आजादी के बाद गाली
महामना की बगिया के एक आचार्य बता रहे थे कि
एक सेमिनार में वेदों को गरियाने वाले आचार्य ने
छात्रों और लोगों से अपील की थी:
गांधी को छोड़कर अम्बेडकर को अपनाने की
अभी उस दिन हिंदी के एक आचार्य समझा रहे थे कि
हरि के जन सभी हैं
लेकिन गांधी ने हमें ही हरिजन कहकर हमारे समुदाय का अपमान किया
मुझे वह घटना दिखने लगती है जब
अपने आश्रम में धारा के विरुद्ध जाकर महात्मा ले आए थे
एक परिवार जिसे नीच जाति का समझा जाता था
उनके आने से आश्रम में गांधी के विरुद्ध उनके अपनों का ही विद्रोह हुआ था
दान मिलने बंद हो गए थे
लेकिन गांधी तो फिर महात्मा थे
और तैयार थे निकलने के लिए और रहने के लिए
पास की अछूत बस्ती में सबके साथ
वह घटना दिखती है जब हजार हजार गालियां खाने और विरोध झेलने के बाद भी
गांधी
बाबा साहेब के मिशन और नीयत की पवित्रता और आवश्यकता के प्रबल पक्षधर थे
और उन्होंने बाबा साहेब को सत्ता में भेजने का मार्ग प्रशस्त किया
इसलिए दुख होता है जब सबसे प्रेम करने वाला महात्मा
सबकी घृणा का एकसमान शिकार हो जाता है
और सच तो यह है कि
उसकी नीतियों की आलोचना करते समय उतने ही छोटे दिखते हैं ईर्ष्यालु लोग
जितने कि उसके घुटनों के ऊपर रहने वाले अंतिम आदमी की कुल जमा पूंजी जैसी धोती
हां उससे गलतियां हुईं
और उसने मानी भी और लिखा भी
वह देवता नहीं था
लेकिन उसने मनुष्य के रूप में देवताओं की दिव्यता धारण कर ली थी
उसकी नीतियों की आलोचना होनी चाहिए
क्योंकि आधुनिक भारत ने उस जैसा समालोचक नहीं देखा
जब लोग येन केन प्रकारेण आजाद होना चाहते थे
तब उसे साधन की शुचिता दिखती थी
आपसी कलह जातिवाद गंदगी अशिक्षा स्त्रियों और कुछ जातियों की दुर्दशा
भाषा की अवनति और स्वाभिमान का अभाव
इत्यादि इत्यादि
सब एक मोर्चों पर लड़ते हैं
वह अनेक मोर्चों पर लड़ रहा था
उसके दुश्मन नहीं थे
उसने दुश्मन बनाए थे चुन चुनकर
उसने इनसे मुक्ति को ही मोक्ष माना
इसलिए वह लगातार चलता था
लड़ता था
दो हड्डी वाला सबसे बड़ा लड़ाका वही था
जिसके पास घोड़े की जगह एक बकरी थी
जिस पर चढ़ना तो दूर
जिसके दूध को पीने में भी वह शर्म का अनुभव करता था
क्योंकि उसकी संवेदना इसे भी हिंसा का कृत्य मानती थी
जिसके पास हथियार के स्थान पर बहुत सारे मूल्य थे
जिसे उसने भारतीय संस्कृति के सनातन मूल्यों से ग्रहण किया था
वह स्वयं व्यक्ति पूजा के विरुद्ध था
इसलिए हमारे तुम्हारे पूजा न करने से उसे रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता
लेकिन उसे आज भी फर्क पड़ता है
बहुत ज्यादा
मैंने उसकी तस्वीरों में एक करुणा देखी है
एक हताशा देखी है
वह भारत का पुत्र है
लेकिन इस भारत में रहने वाले हम सभी का पिता है
पिता न भी मानो तो एक महान पूर्वज तो है ही
इसलिए उसकी बातें और किताबें मुझे झकझोरती हैं
वह रोता है
जब उसके तमाम प्रयासों के बाद भी हिंदू और मुसलमान लड़ते हैं
वह आँखें नीची कर लेता है जब एक महाविद्यालय का ओबीसी प्रोफेसर एक छात्र को इसलिए पी एच डी नहीं करवाता क्योंकि छात्र सवर्ण है
और किसी जमाने में एक सवर्ण प्रोफेसर ने उसको पी एच डी नहीं करवाई थी
तो प्रतिशोध तो बनता है
मैंने अपने पिता महात्मा गांधी की आंखों में वह बेबसी देखी है
जब एक एस सी एस टी प्रोफेसर डॉ उमाशंकर तिवारी को अपने शोध का विषय इसलिए नहीं बनाना चाहता क्योंकि वह जन्मना ब्राह्मण हैं
और जब एक जन्मना ब्राह्मण एक नवोदित साहित्यकार से इसलिए बिदक जाता है क्योंकि उसके नाम में लगा पाण्डेय
ब्राह्मण वाला नहीं बल्कि भूमिहार वाला पाण्डेय है
महात्मा को वैसे ही दुख होता है
जैसे एक पिता को अपनी मृत्यु के बाद
अपने लड़कों को संपत्ति के विभाजन के लिए लड़ते हुए देखकर होता होगा
महात्मा गांधी अशांत हैं
उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली है
और न मिल पाएगी
क्योंकि उनके लिए राजनीति सेवा का एक माध्यम थी
उनके और हमारे बीच की खाईं कभी नहीं मिट सकती
मेरे पुत्र ने मुझसे एक झगड़े के बाद कहा था कि
तुम सही हो लेकिन मैं अभी तुम्हारी बातें नहीं समझ पाता
वैसे भी पुत्र अपने पिता को समझने लायक तब ही हो पाता है जब वह चालीस की उम्र पार कर लेता है
तो क्या भारत माता की संतानें अपने इस महान पूर्वज को भी तभी समझ पाएंगी
जब चार हजार वर्ष बीत जायेंगे
या
शायद कभी नहीं
क्योंकि
वह आदर्श को ही व्यावहारिकता मानते थे
और हम व्यावहारिकता को ही आदर्श।
माधव कृष्ण, इंदिरापुरम गाजियाबाद , २९ सितंबर २०२५
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