साप्ताहिक मानव धर्म संगोष्ठी
स्थान: द प्रेसीडियम इंटरनेशनल स्कूल योग कक्ष, अष्टभुजी कॉलोनी, बड़ी बाग, लंका, गाजीपुर
दिन: शनिवार, 20 सितंबर 2025
समय: शाम 630 बजे से 930 बजे तक
आयोजक: नगर शाखा, श्री गंगा आश्रम, मानव धर्म प्रसार
१. हम जब प्रार्थना में कहते हैं कि जैसे अजामिल, गणिका और अहिल्या को अपने तार दिया था, वैसे ही मुझे भी तार देना। वास्तव में ईश्वर सर्वज्ञ है इसलिए उन्हें याद नहीं दिलाया जाता। हम अपने आप को याद दिलाते हैं कि जब इस नाव में बैठ गए हैं तो हमें पार हो ही जाना है।
२. जब भीष्म पितामह ने पांडवों को मारने की प्रतिज्ञा ले ली, तब भी पांडव बड़े आराम से थे। भगवान कृष्ण ने मुस्कराकर पूछा कि, आप लोगों को चिंता क्यों नहीं है? पांडवों ने कहा कि, जब आप हैं तो हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए अपना नियत कर्म निष्ठापूर्वक करते हुए फल या भविष्य की चिंता गुरुदेव और ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।
३. गुरुदेव महाराज ने १९६२ में मानव धर्म का प्रसार प्रारंभ किया। वह धर्म के मूल भाव से भटक रहे मनुष्य की दुर्दशा से दुखी थे। उन्होंने सुख पाने का एकमात्र मार्ग बताया, दूसरों को सुख देना।
४. जीवन का एक लक्ष्य है, ईश्वर प्राप्ति। वह गुरु के बिना संभव नहीं है। परमहंस बाबा गंगारामदास जी जैसा गुरु मिलना सौभाग्य की बात है। गुरुदेव निर्बल को सबल बनाते हैं इसलिए उनके विचारों पर अमल करें।
५. भगवान कृष्ण को बालपन में एक फ़लवाली ने अपना सब कुछ एक मुट्ठी दाने के लिए दे दिया। वह फलवाली आगे चलकर बहुत समृद्ध महिला बनीं। हमें इस कथा से प्रेरणा लेते हुए किसी भी श्रमिक के श्रम का उचित मूल्य देना चाहिए।
६. वादे नावलम्बय:। नारद भक्तिसूत्र कहता है कि भक्त वाद विवाद में नहीं पड़ता। विवादों से शांति भंग होती है, उलझन बढ़ती है और तत्व निर्णय भी नहीं होता।
७. सत्संग का एकमात्र सदुपयोग है, आत्मावलोकन करना और अपने दोषों को दूर करना। जैसे अपने अंदर बैठे जातीय अभिमान को समाप्त करना भी मानव धर्म के सत्संग का ऐसा ही फल है।
८. परमात्मा अहंकार ही खाता है। इसलिए हमें जीवन में उन क्षणों का स्वागत करना चाहिए जिन क्षणों में हमारे अहंकार को धक्का लगता है। अपमानित अनुभव करने के स्थान पर ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए कि हम अहंकार में झुलसने से बच गए।
९. दूसरों के दोषों का छिद्रान्वेषण करने के स्थान पर हम आँखें बंद कर अपने कर्मों को देखें। सत्संग में आने वाले बच्चों का व्यक्तित्व निर्माण होता है और यह अमूल्य है। सदगुरु अन्य गुरुओं से अलग होता है क्योंकि वह सत की ओर प्रवृत्त करता है।
१०. किसी भी समस्या, तनाव या अवसाद में केवल भगवान का नाम लेना चाहिए और तत्क्षण मनुष्य के क्रोध या काम या लाभ के सभी आवेग समाप्त हो जाते हैं।
११. कबीर साहब की उल्टी वाणी को उलटबांसियां भी कहते हैं। "कंबल बरसे भीगे पानी" संत कबीरदास की उलटी वाणी या गूढ़ उपदेशों में से एक है, जिसका अर्थ है कि जब भक्ति रूपी "कंबल" यानी ईश्वर का सुरक्षा कवच बरसता है, तब ज्ञान या आत्मा का "पानी" पूरी तरह से उस भक्ति में "भीग" जाता है। यह दर्शाता है कि ईश्वर की प्राप्ति या मोक्ष के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति का हृदय भक्ति में पूरी तरह डूब जाता है, जिससे बाहरी मनोविकार जैसे काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार की गर्मी शांत हो जाती है।
१२. "नौका डूबे सिल उतराय" कबीरदास के दोहे की एक पंक्ति है जिसका अर्थ है कि जब नाव डूब जाए तो क्या पत्थर तैरता है। यह दर्शाता है कि जो भी अच्छा काम या ज्ञान प्राप्त हुआ है, वह सब व्यर्थ हो गया, क्योंकि व्यक्ति ने समय रहते कोई अच्छा काम नहीं किया। यह पंक्ति इस बात पर जोर देती है कि व्यक्ति को अपना समय और जीवन व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए, बल्कि हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए और ईश्वर भक्ति में लीन रहना चाहिए।
१३. साधना, सेवा, सत्संग के लिए महर्षि पतंजलि ने साधकों के लिए तीन योग्यताएं बनाईं, दीर्घकाल तक इन्हें करना है, निरंतरता बनी रहनी है, श्रद्धा के साथ करना है।
१४. तीरथ करें एक फल, संत मिले फल चार। सदगुरु मिले अनंत फल कबीर कहें विचार। महाराज जी कहते थे कि आशीर्वाद लेने के लिए बर्तन चाहिए। सबका बर्तन फूटा है इसलिए आशीर्वाद की वर्षा होने के बाद भी बर्तन में आशीष भर नहीं पाता। इसलिए पात्रता होने चाहिए और पात्रता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
१५. धर्म ही सोना है और भारत इसीलिए सोने की चिड़िया कहा जाता था क्योंकि यहां धर्म और धर्म का जीवन जीने वाले महापुरुष ऋषि रहते थे। सोना लेने के लिए मिट्टी फेंकना पड़ेगा। धर्म सोना है, और सांसारिकता मिट्टी है।
आज का भजन
धोबिया जल बिच मरत पियासा । टेक
जल में ठाढ़ पिवै नहिं मूरख, अच्छा जल है खासा ।
अपने घर का मर्म न जानै, कर धोबिन की आशा । १
छिन में धोबिया रोवै धोवै, छिन में होत उदासा ।
आपै बरै कर्म की रस्सी, आपन गर के फाँसा । २
सच्चा साबुन ले नहिं मूरख, है संतन के पासा ।
दाग पुराना छूटत नाहीं, धोवत बारह मासा । ३
एक रती को जोर लगावै, छोड़ि दियो भरि मासा ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, आछत अन्न उपासा । ४
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