दीप जले
रजनी के गांव में प्रकाश पर प्रतिबंध टले
दीप जले दीप जले दीप जले दीप जले
कजरारी छांवों में
अंधियारी नावों में
आंखों से ओझल उन
सुरमई दिशाओं में
दिवस के पड़ावों में सूरज के पांव ढले
दीप जले दीप जले दीप जले दीप जले
प्रकाश बिन बत्तियां
डूबने को किश्तियां
जुगनू भी कस रहे
मनुष्यों पर फब्तियां
किचराई आंखों को अमावस न और छले
दीप जले दीप जले दीप जले दीप जले
मन के अंधियारे में
दुख के गलियारे में
विध्वंस गीत गा रहे
जंग के चौबारे में
बिछी हुई चौपड़, न शकुनी चाल और चले
दीप जले दीप जले दीप जले दीप जले
डाॅ एम डी सिंह
(दीपावली की बहुत-बहुत बधाइयां )