ग़रीबी और ज़िल्लत भरे जीवन के हक देते हो साहब।
फिर क्यो नही मुझको मेहनत का फल देते हो साहब।।
आदमी मैं भले ही पढ़ न पाया मेहनत तो करता हूँ न।
फिर क्यों नही मेरे मजदूरी को हक़ देते हो साहब।।
कभी बारिश कभी सूखा कभी वैसे की भारी दिक्कत
फिर क्यों नही तकलीफ से निपटने हल देते हो साहब।
मेरी दुनिया मैं भी भूख प्यास और लाचारी है ही न
फिर क्यों नही मुझको जीने का मरहम देते हो साहब।।
बेटी जवान और बेटे की पढ़ाई की चिंता भी जायज है
फिर क्यों नही मुझको शांति भरा कल देते हो साहब।।
रचना लव तिवारी
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