तुम देना ज़हर
दोस्ती में मुझे तुम देना ज़हर
मैं पीऊंगी उसे भी अमृत कर
चाहते हो क्या बताओ तो सही
मेरा सबकुछ तुमपर न्यौछावर
मिलती है खुशी गर इसी से तुम्हें
भोंक लेना मिरे पीठ में खंजर
तुम दे दो मुझे तीरगी अपनी
और ले लो मिरे हिस्से की सहर
कर्ण ने भी दल नहीं बदला
हार रहा था दुर्योधन अगर
माफ़ करते चलो सबको बीना
जिंदगी है बड़ी ही ये मुख़्तसर
स्वरचित कविता
बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश
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