सुन रही हूं मैं
मिरी ही बात आजकल जा-ब-जा सुन रही हूं मैं
मिरे खिलाफ चल रही है एक हवा सुन रही हूं मैं
ना डर उसको है खैर ऐसी किसी हवा से यहां
क्यों कि वो खुद ही है एक तुफां सुन रही हूं मैं
मैं जिस दोस्त के राहों में फूल बरसाती रही
उसने बिछा रक्खा है वास्ते मिरे कांटा सुन रही हूं मैं
मैं हो जाऊं बदनाम और बेकदर इस ज़माने में
मिरे ही लोगों को बनाया गया जरिया सुन रही हूं मैं
पढ़ रही हूं अक्से-ख़ुश्बू प्यारी परवीन शाकिर की बादशाहे-
ग़ज़ल दनकौरी की शेर ताज़ा सुन रही हूं मैं
मैं अपने हौसले से खुशी हासिल कर रही लेकिन
लगे हैं लोग कुछ तोड़ने में ये हौसला सुन रही हूं मैं
मैं रोज जिंदगी से छुटकारे की मिन्नतें करती हूं मगर
जीकर देखो बीना, कहती मिरी क़जा सुन रही हूं मैं
स्वलिखित रचना
बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश
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