तू रोड़ा ना बन
राह दिखाने वाले के
राह में तू रोड़ा ना बन
आग बुझा दे ईर्ष्या की
कर ले अपना शीतल मन
आभार व्यक्त कर ईश्वर की
मुझ जैसी तुझको सखी मिली
जिसके मन पर पड़ी नहीं कभी
छल कपट की आवरण
जिसने पीड़ा अपनी व्यक्त की
तुझे मानकर अपनी बहन
माना वक्त की सतायी हूं मैं
पर इसका तंजं तुझे शोभा ना दे
तेरी प्रवृत्ति पहचान सका ना
कपटी तुझे मेरा भोला मन
क्या हासिल हुआ है तुझे बता
मुझ निर्दोष की झूठी निंदा कर
है अब भी वक्त, सम्हल जा सखी
दोस्ती का ना कर मैला दर्पण
मुझे ग़म नहीं की मैं तनहा हूं
मेरी नेकी मेरे साथ है
हां तेरी नीयत से जरूर
घायल मेरे जज़्बात हैं
तूने जलन के पैरों से रौंदी है
तेरे वास्ते मेरा अपनापन
मैं चतुर नहीं हूं तुझ जैसी
मुझे सत्य में है विश्वास मगर
तुझे जो करना है करती जा
रब साथ है हर पल मेरे
अब वही बनाएगा मेरी डगर
मुझे ठीक से तू पहचान ले
मैं अब भी हूं तेरी मान ले
मुझसे स्पर्धा की दौड़ में
कंटक से न भर अपना जीवन
अक्सर कहती थी तू ही सखी
यह जग मिथ्या माया है
तुझमें अपने पराये का भाव नहीं
बड़ी निर्मल तेरी काया है
मैं कहती हूं जो काया में ईश्वर है
वह भी हम पर गर्व करे
जब रखें समान हम कर्म-वचन
स्वरचित कविता
बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश
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