अवध के छोड़ के प्रभु चल दिहली बन में,
पीछे लक्ष्मण भाई
अरे बिलखी बिलखी के कह सिया सुकुमारी
जग में होत बा हसाई
सुन ल ए रघुराई
सुखवा के रतिया संग में बितवनी
दुःख ओ में हथवा बटाईब
बहुत कठिन बाटे वन की डगरिया
रुक जईती ए सिया अवध नगरिया
बाबू जी के बात मनिह आदर दिह माई के
रखीह ध्यान तनी छोटकन भाई के-२
रहिह कौशल्या माता केकई के कगरिया
रुक जईती ए सिया अवध नगरिया
बहुत कठिन बाटे वन की डगरिया
रुक जईती ए सिया अवध नगरिया
सही नाही पईबु धनी धूप बरसात के
लाग जाई ठार तोहके पुष वाली रात के-२
बन में मिली नाही महल अटरिया
रुक जईती ए सिया अवध नगरिया
बहुत कठिन बाटे वन की डगरिया
रुक जईती ए सिया अवध नगरिया
रचना पंडित अजय त्रिपाठी गीतकार संगीतकार वाराणसी उत्तर प्रदेश
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