मेरा कोई इतिहास नहीं है !
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कोई अपना खास नहीं है ।
अपनों से भी आस नहीं है ।
बिखरे हुए इस तन मन में
पलभर की भी साँस नहीं है ।
कोई अपना खास नहीं है ।
अपनों से भी आस नहीं है ।
प्यासा हूँ पर प्यास नहीं है ।
जिंदा हूँ आभास नहीं है ।
नफ़रत की इस दुनिया में
मैं भी हूँ एहसास नहीं है ।
कोई अपना खास नहीं है ।
अपनों से भी आस नहीं है ।
कोई प्रियतमा पास नहीं है ।
जीवन में अब रास नहीं है ।
उम्मीदों के इस पतझड़ में
बनने को देवदास नहीं है ।
कोई अपना खास नहीं है ।
अपनों से भी आस नहीं है ।
दुनिया पर विश्वास नहीं है ।
मन में हास परिहास नहीं है ।
लिखी सबने अपनी गाथा
मेरा कोई इतिहास नहीं है ।
कोई अपना खास नहीं है ।
अपनों से भी आस नहीं है ।
मेरा मन निराश नहीं है ।
बगिया में सुवास नहीं है ।
धन्ना सेठ बन नहीं पाया
मेरा कोई दास नहीं है ।
कोई अपना खास नहीं है ।
अपनों से भी आस नहीं है ।
जिंदादिली अब लाश नहीं है ।
मंज़िल तिनका घास नहीं है ।
मानवता का हूँ मैं रक्षक
पल में मेरा नाश नहीं है ।
कोई अपना खास नहीं है ।
अपनों से भी आस नहीं है ।
लुटने को कुछ खास नहीं है ।
'बेबस' तनिक उदास नहीं है ।
दिया दान में सब कुछ अपना
नफ़रत भी अब पास नहीं है ।
कोई अपना खास नहीं है ।
अपनों से भी आस नहीं है ।
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जनवादी कवि -©️®️🙏🏾
एम•एस•अंसारी "बेबस"
ग्राम - चरौवाँ
तहसील - बिल्थरा रोड
बलिया उ•प्र•
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