#क्या_पैमाने_हैं
नवगीत----कुमार शैलेन्द्र
चलो नाप लें
दिल-दरिया में,.
कितनी तानें हैं।
गोताखोरों की नज़रों के,
क्या पैमाने हैं ।
जल के बाहर.
सोनमछरियाँ,
व्याकुल बिन पानी।
पानी -पानी
पानी वाले,
मछुए मनमानी।
बूढा बरगद
ना जाने खुद,
क्या क्या ठाने है।।
दायें बायें
आगे पीछे,
फिसल रहे मोती ।
गहरी आँतें
मोटी चमडी़,
जा़र जा़र रोतीं।
नयनों में
अंधता दोष,
पर भृकुटी ताने हैं।।
बचपन में
जो दाँत शेर के,
गिन पीते थे पानी।
सदा उन्हीं
पीठों पर बैठे,
लिख पढ़ रामकहानी।
शाकुन्तल
बुलबुल परिभाषा,
भाऱत माने है।।
घर- छत
फाँद चोरनी जैसी,
दाखिल कई हवाएँ,
मन वासन्ती
पतझर झाँके,
धूप गंध-विधवाएँ,
शिखर प्राण
उत्तुंग चढे़ ,
ज्योतित परवाने हैं ।।
कुमार शैलेन्द्र
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