सोमवार, 4 सितंबर 2023

तेरे ही निशां ढूंढते हैं स्वरचित नज़्म बीना राय गाज़ीपुर


चांद तारों से तेरा हाल पूछते हैं
हर घड़ी तेरे ही निशां ढूंढ़ते हैं
नींद ये जालिम है जो पलकों
पर आती ही नहीं
नाम तेरा ले कर ही
मेरे दिन रैन गुजरते हैं
हर घड़ी तेरे ही निशां ढूंढ़ते हैं
शुक्रिया उम्मीद का दिल से
जो जाती ही नहीं
हम तो लेकर के ही जरिया
उम्मीदों का
इस रहे हयात में बढ़ते हैं
हर घड़ी तेरे ही निशां ढूंढ़ते हैं
ये घड़ी फुर्क़त की हमसे
ये कहती है
हम तो हर धड़कन में
तेरे बसते हैं
हर घड़ी तेरे ही निशां ढूंढ़ते हैं।
स्वरचित नज़्म
बीना राय
गाज़ीपुर



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