हां ! सफ़र में भी मैं तुम्हे तलाश रहा था |
तुम्हारे साथ बिताये पलों की कहानी
किसी और को सुना रहा था।
खिड़की की सीट भी मुझे अकेलापन
महसूस करा रही थी ,
हां शायद ! तुम्हारे ना होने का
एहसास दिला रही थी |
उस सफर में तुम्हारी अजीब सी हरकतें,
हंसी-मजाक, मस्तीयां और वो बातें
वो सारी चीजें याद आ रही थी ,
हां ! ये आँखे हर शक्श में शायद
तुम्हे ही तलाश रही थी |
ये जानते हुए भी कि इस सफ़र में
तुम साथ नहीं हो ,
न जाने क्यूं मैं हर तरफ तुम्हे ही निहार रहा था |
तुम्हारे साथ बिताये पलों की कहानी
किसी और को सुना रहा था...
हां , सफ़र में भी मैं तुम्हे तलाश रहा था ...!!!
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