रिश्तों की दीवार खड़ी तो दर का होना बनता है
माता-पिता हैं पास फिर तो डर का होना बनता है
चला आ रहा जो मुद्दत से दुनिया का दस्तूर है यह
पत्नी का हो गया जुगाड़ तो घर का होना बनता है
बिना उड़े न मिले आकाश बड़े बुजुर्ग हैं बता गए
सपने जुटा लिए हैं कुछ तो पर का होना बनता है
घिसट -घिसट ना चले जिन्दगी दौड़ लगाना तो होगा
बोझ जग का ढोना है तो सर का होना बनता है
दिखना है तो जलना होगा धू-धू करके
कर्म पथ पर
बहते हुए पसीने से तो तर का होना बनता है
डॉ एम डी सिंह
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